अमीर खाँ के साथ सुवाई सिंह की जो मित्रता कायम हुई, उसकी खुशी में अमीर खाँ ने उसको और उसके राठौर सामन्तों को अपने यहाँ आमंत्रित किया। निश्चित दिन और समय पर सवाई सिंह राठौर सामन्तों के साथ अमीर खाँ के शिविर पर गया। सन् 1864 फरवरी के मास में नागौर से सवाई सिंह के साथ राठौर सामन्तों के अतिरिक्त पाँच सौ सैनिक अमीर खाँ के निमंत्रण में भाग लेने के लिए पहुंचे। अमीर खाँ ने आमंत्रित सवाई सिंह और उसके साथ के लोगों को बड़े सम्मान के साथ अपने दरवार में विठाया। सवाई सिंह के साथ उसने पगड़ी बदली। इस समय सवाई सिंह बहुत प्रसन्न हो रहा था। उसे विश्वास हो रहा था कि अमीर खाँ की सहायता से निश्चय ही में मानसिंह को सिंहासन से उतार सकूँगा। अमीर खाँ के दरबार में नाच और गाना आरंभ हुआ। रूपवती नर्तकी के नृत्य और गाने को सुनकर सभी राजपूत आनन्द विभोर हो उठे। अमीर खाँ दरवार से किसी कार्य के लिए चला गया था। उस समय भी नृत्य वरावर होता रहा। उसके गानों को सुनकर सवाई सिंह स्वयं बहुत प्रसन्न हो रहा था। एकाएक नृत्य वन्द हो गया और हजारों पठानों ने अपनी भयानक तलवारों के साथ वहाँ पहुँचकर आक्रमण किया। उस समय सवाई सिंह को मालूम हुआ कि अमीर खाँ ने भयानक रूप से हमारे साथ विश्वासघात किया है। आक्रमणकारी पठानों की संख्या अधिक थी। इसलिए उस दरवार में आये हुए सभी सामन्त काट-काटकर फेंक दिये गये। सवाई सिंह भी जान से मारा गया। अमीर खाँ ने उसका कटा हुआ सिर राजा मानसिंह के पास भेज दिया। सवाई सिंह के साथ जो पाँच सौ राठौर राजपूत आये थे, वे इस संहार को देखकर एक साथ घबरा उठे और भागने के लिए तैयार हुए। उसी समय पठानों के द्वारा वे भी मारे गये धौंकल सिंह नागौर में था। अमीर खाँ के द्वारा इस नर-संहार का समाचार पाकर नागौर की सेना अपने प्राणों की रक्षा के लिए इधर-उधर भाग गयी। अमीर खाँ सेना के साथ नागौर में पहुँचा और उसने वहाँ की सम्पूर्ण संपत्ति लूट ली। वख्तसिंह ने नागौर के दुर्ग में जो युद्ध की बहुत-सी सामग्री एकत्रित की थी, उसको अमीर खाँ ने अपनी सेना के अधिकार में दे दिया। उस दुर्ग की तीन सौ तोपें लेकर अमीर खाँ ने अपने दुर्गों को रवाना की। इसके बाद अपनी योजना में सफल होकर वह सेना के साथ जोधपुर चला गया। वहाँ पर राज मानसिंह ने उसका अपूर्व स्वागत किया। इसी समय मानसिंह ने अमीर खाँ को दस लाख रुपये पुरस्कार में दिये और मूंडवा तथा कुचेरा नाम के दो ग्राम, जिनकी वार्षिक आमदनी तीस हजार रुपये थी, अमीर खाँ को दिये। इसके अतिरिक्त राजा मानसिंह से अमीर खाँ को एक सौ रुपये प्रति दिन के हिसाब से दिये जाने लगे। सवाई सिंह ने अपने पूर्वजों का बदला लेने के लिए मानसिंह और मारवाड़ का सर्वनाश करने के लिए जो विष बोया था, उसके द्वारा सवाई सिंह का सर्वनाश हुआ। जिस विष के द्वारा शत्रु का विनाश किया जाता है, वही विष विनाश करने वाले के लिए भी विष हो जाता है। सवाई सिंह के जीवन की घटनाओं का अध्ययन करने से मनुष्य को इसी बात की शिक्षा मिलती है। सवाई सिंह मानसिंह का सर्वनाश करने के लिए चला था। परन्तु अंत में उसका स्वयं सर्वनाश हुआ। मानसिंह अब भी जीवित रहा और उसने जोधपुर का सिंहासन अपने अधिकार से जाने नहीं दिया। मारवाड़ की इन घटनाओं से हमें विश्वास कर लेना चाहिए कि मनुष्य का षड़यंत्र दूसरों को नहीं, उसी का विनाश करता है। प्रकृति के इस नियम पर मनुष्य को धैर्य के साथ विश्वास रखना चाहिए। वह सदा सुरक्षित रहे। I 504
पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/४५८
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।