सवाईसिंह और रामचन्द्र के छिपाने के बाद भी अधिक समय तक वह समाचार छिप न संका। जगतसिंह की माता ने जयपुर से उस सेना के विनाश का समाचार उसके पास भेजा, जिसे सुनकर जगतसिंह ने सवाईसिंह पर वहुत क्रोध किया। जयपुर के दूत से उस समाचार को पाकर जगतसिंह जोधपुर से चला गया। उसके सामने षड़यंत्रकारी अमीरखाँ का भयानक भय पैदा हो गया। जगतसिंह ने जोधपुर की राजधानी की लूट में वीस तोपों के साथ जो सम्पत्ति पायी थी उसको अपने सामन्तों के पास भेजकर उसने मराठा सेना के सेनापति को बुलाया। जगतसिंह के सामने इस समय भयानक संकट था।1 मराठा सेनापति के आ जाने पर जगतसिंह ने कहा-“इस समय मेरे सामने बड़ा संकट है। आपकी सहायता से सकुशल जयपुर पहुँच जाने पर मैं आपको पुरस्कार में बारह लाख रुपये दूंगा। मराठा सेनापति ने जगतसिंह की इस बात को स्वीकार कर लिया। परन्तु जगतसिंह को जब मालूम हुआ कि अमीरखाँ एक बड़ी सेना के साथ जयपुर के रास्ते में मौजूद है तो वह बहुत घबरा उठा और किसी प्रकार उसने जयपुर जाने का साहस न किया। उसने अपना दूत भेज कर अमीरखाँ से बातचीत कराई। उसमें अमीरखाँ ने नौ लाख रुपये लेकर इस वात को मंजूर किया कि जगतसिंह के जयपुर जाने में मैं कोई विरुद्ध कार्यवाही न करूँगा। जगतसिंह ने अमीरखाँ की माँग को स्वीकार कर लिया। अपने प्राणों की रक्षा के लिए उसने धन की परवाह न की और पानी की तरह सम्पत्ति को बहाकर जोधपुर से वह जयपुर के लिए रवाना हुआ। अपने शिविर में उसने आग लगा दी। जिससे उसका वहुत-सा मूल्यवान सामान जल कर राख हो गया। उसके बाद उसने अपना प्यारा हाथी अपने हाथों से मार डाला। क्योंकि उसकी इच्छा के अनुसार वह तेजी से अपनी पीठ पर बिठाकर उसे ले न जा सका था। मराठा सेनापति ने बारह लाख रुपये लेकर जगतसिंह को जयपुर पहुँचा देने का वादा किया था और अमीरखाँ ने नौ लाख रुपये लेकर किसी प्रकार का उत्पात न करने का वादा किया था। फिर भी, जगतसिंह अपने राज्य में पहुँच न सका। जिन चार सामन्तों ने अमीर खाँ को उकसा कर जयपुर पर आक्रमण करने के लिए तैयार किया था, वे जगतसिंह के शत्रु बन गये। उन्होंने निश्चय कर लिया कि मारवाड़ का धन लूट कर हम उसे जयपुर न.ले जाने देंगे। इसके लिए उन सामन्तों ने मेड़ता से बीस मील पूर्व की तरफ जा कर जगतसिंह के आने के रास्ते में मारवाड़ के अगणित राठौरों को एकत्रित किया और इन्दराज सिंधी को अपना सेनापति बनाया। इन्दराज सिंधी राजा मानसिंह के पहले के राजाओं के शासनकाल में मारवाड़ के दीवान के पद पर काम कर चुका था। उस समय एकत्रित राठौरों के साथ बैठकर चारों सामन्तों ने निश्चय किया कि राजा मानसिंह का हम लोगों पर जो अविश्वास था और उसने हमको शत्रुओं के साथ मिला हुआ समझ लिया था, उस संदेह को दूर करना हम सबका कर्तव्य है । मारवाड़ की लूट का धन जगतसिंह अपने साथ जयपुर लेकर जा रहा है। उसे लूटकर राजा मानसिंह को हम लोग अर्पित कर दें ऐसा करने से मानसिंह का विश्वास हम सन् 1806 ईसवी के पहले की बात है। जगतसिंह ने मराठा सेनापति सिंधिया के पास सहायता के लिए अपने दूत के द्वारा एक पत्र भेजा था। उस समय मैं सिंधिया के शिविर में मौजूद था। बापू सिंधिया, वालाराव इंगले और जीन वैपटिस्ट की सेनायें सिंधिया की अधीनता में काम कर रही थीं। उन सेनाओं को रवाना होते मैंने स्वयं देखा था। सन् 1807 में जयपुर में मैंने वहाँ की सेना के विनाश चिन्ह भी देखे थे। 1. 500
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