बर्बाद कर दिया था। उसके अत्याचारों से पाली, पीपाड़, बोलाऊ और दूसरे बहुत से नगर बुरी तरह से नष्ट हो गये थे। जिन सामन्तों ने मान सिंह का साथ छोड़कर धौकलसिंह का पक्ष लिया था, उनके नगरों में भी अमीरखाँ ने जाकर लूटमार के साथ सर्वनाश किया। यह देखकर उन सामन्तों ने अमीरखाँ का विरोध किया। मारवाड़ के इस विध्वंस का सबसे बड़ा अपराधी पोकरण का सामन्त सवाईसिंह था। खाने-पीने और वेतन देने की व्यवस्था के न हो सकने पर सवाईसिंह से कहा गया कि वह अपने नगर से इतना धन लावे, जिससे खाने -पीने और वेतन की व्यवस्था की जा सके। सवाई सिंह ने इस बात को स्वीकार कर लिया। उसने अपने साथी सामन्तों की सहायता से धन एकत्रित किया, उसके साथ-साथ उसने अपनी संग्रह की हुई सम्पत्ति लाकर दी। उससे कुछ दिनों तक खाने-पीने का काम चलता रहा। उसके बाद धन के अभाव में फिर वही दशा पैदा हो गयी। जयपुर राज्य का खजाना इसके पहले ही खाली हो चुका था। मारवाड़ के जो सामन्त मानसिंह को छोड़कर जयपुर की सेना में आकर मिल गये थे, सवाईसिंह ने उनसे धन की माँग की। मारवाड़ के जिन चार सामन्तों ने अन्त में मानसिंह का साथ छोड़ा था और सवाईसिंह से जाकर मिल गये थे, उन्होंने सवाईसिंह की धन की माँग का विरोध किया और विरोधी होकर वे अमीरखाँ से जाकर मिल गये। वे चारों सामन्त मानसिंह का साथ देने के लिए फिर से आपस में परामर्श करने लगे। उन सामन्तों के अमीरखाँ से मिल जाने का कारण था। वे लोग सवाईसिंह के धन माँगने पर बहुत असंतुष्ट हुए और उसका साथ छोड़ देने के लिए उन चारों सामन्तों ने आपस में निर्णय कर लिया। इस दशा में उनके लिए यह जरूरी था कि वे किसी एक पक्ष मे होकर चलें और इसीलिए वे अब फिर मानसिंह के पक्ष का समर्थन करने की बात सोचने लगे। वे चारों सामन्त इस बात को भली भाँति जानते थे कि अमीरखाँ धन का लोभी है और इसी लोभ में वह जयपुर की सेना के साथ आया है, उन चारों सामन्तों ने मिलकर अमीर खाँ के सामने एक प्रस्ताव उपस्थित किया और उसके अनुसार उन लोगों ने अमीरखाँ को समझाया कि जयपुर का राजा जगतसिंह अपनी सम्पूर्ण सेना के साथ जोधपुर में मौजूद है। जयपुर इस समय बिल्कुल अरक्षित दशा में है। इसलिए उस राज्य पर आक्रमण करके अपरिमित सम्पत्ति लूटी जा सकती है। अमीर खाँ के साथ उन सामन्तों की यह बातचीत बड़े मौके पर हुई। अमीर खाँ ने मारवाड़ राज्य के पीपाड, पाली और बीलाडा इत्यादि नगरों को जब लूटा था तो जयपुर के राजा जगतसिंह ने कठोरता के साथ उसका विरोध किया था। इसलिए जगतसिंह के असंतोष को अमीर खाँ पहले से ही जानता था। इस समय सामन्तों के उकसाने पर वह जयपुर में आक्रमण करने के लिए सहज ही तैयार हो गया और चारों सामन्तों के साथ वह अपनी सेना लेकर जयपुर की तरफ रवाना हुआ। जगतसिंह को जब यह मालूम हुआ तो उसने अपने प्रधान सेनापति शिवलाल को कई हजार सैनिकों की सेना देकर अमीरखाँ को दमन करने के लिए भेजा। शिवलाल अपनी सेना के साथ रवाना हुआ और जयपुर के रास्ते में उसने अमीर खाँ की सेना पर आक्रमण किया। शिवलाल की सेना अमीर खाँ और चारों सामन्तों की सेनाओं से बहुत बड़ी थी। इसलिए अमीरखाँ और चारों सामन्त घबराकर लूनी नदी की तरफ भागने लगे। शिवलाल की सेना ने उनका पीछा किया। अमीर खाँ और उसके साथी भागकर लूनी नदी के दूसरी तरफ निकल गये और कुछ देर में वे गोविन्दगढ़ पहुँच गये। 498
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