- बाद भीमसिंह की विधवा रानी के गर्भ से बालक पैदा हुआ। रानी ने मानसिंह से भयभीत होकर नवजात शिशु को एक टोकरी में छिपा कर विश्वासी अनुचर के द्वारा पोकरण में सवाईसिंह के पास भेज दिया। सवाईसिंह उस बालक को देखकर बहुत प्रसन्न हुआ और बड़ी सावधानी के साथ उसके पालन-पोषण का प्रबंध करा दिया। दो वर्ष तक उस बालक के जन्म को छिपाकर रखा गया। मानसिंह ने सिंहासन पर बैठकर सामन्तों के साथ अच्छा व्यवहार न किया। जिन सामन्तों ने जालौर के दुर्ग के घेरे के समय उसकी सहायता की थी, उनके सम्मान का उसने ख्याल रखा। परन्तु जो सामन्त भीमसिंह के समर्थक थे, मानसिंह ने अपने शासन के दिनों में उनके साथ कठोर और अनुचित व्यवहार आरंभ किया। जिन दिनों में मानसिंह जालौर के दुर्ग में बन्द था, उसके वंशज दो प्रधान सामन्तों ने उसकी सहायता की थी। जो लोग इसके पक्ष में थे, उनमें भाटी वंश के राजपूत सैनिक थे और कायमदास की अधीनता में विष्णु स्वामी नाम का एक सैनिक दल भी था।। पोकरण का सामन्त मानसिंह से अप्रसन्न था। इधर अनेक सामन्तों के साथ उसका अपमान जनक व्यवहार बढ़ जाने के कारण सवाई सिंह को मौका मिल गया। उसने अपने सामन्तों को बुलाकर भीमसिंह के नवजात शिशु के जन्म का सव हाल बताया और उसने यह भी प्रकट किया कि मैंने इस शिशु के जन्म का समाचार किस प्रकार अब तक छिपाकर रखा है। इस शिशु का नाम धौंकल सिंह रखा गया। उसने यह भी कहा कि दो वर्ष तक मैंने धौंकलसिंह का पालन-पोषण किया है। राजा मानसिंह ने जन्म के बाद इस राजकुमार को नागौर तथा सिवाना देने का वादा किया था। इसलिए इस शिशु को वे दोनों नगर मिल जाने चाहिए। सामन्तों की सम्मति से राजकुमार के जन्म का समाचार मानसिंह को जाहिर करना निश्चय किया गया । सवाई सिंह ने राजा मानसिंह के पास जाकर कहा -"महाराज भीमसिंह की विधवा रानी से जो शिशु उत्पन्न हुआ था,उसका पालन-पोषण इन दो वर्षों में मेरे द्वारा हुआ है । उस शिशु का नाम धौकलसिंह है । आप ने इनको नागौर और सिवाना देने का वादा किया था। इसलिए उन दोनों नगरों को देकर आपको अपनी प्रतिज्ञा का पालन करना चाहिए।" सवाई सिंह के मुख से इस बात को सुनकर मानसिंह ने कहा "इस बात का पता लुगा लेने पर और निश्चय कर लेने पर कि धौकलसिंह भीमसिंह की विधवा रानी का पुत्र है, मैं निश्चित रूप से अपनी कही हुई बात को पूरा करूँगा।" भीमसिंह की विधवा रानी ने अपने शिशु धौकलसिंह को पोकरण भेज दिया था और वह स्वयं जोधपुर के महल में रहती थी। मानसिंह ने धौकलसिंह के जन्म का पता लगाना आरम्भ किया। भीमसिंह की रानी ने सुना कि इस बात का अनुसंधान हो रहा है कि धौकल सिंह मेरा बेटा है अथवा नहीं। वह घबरा उठी। उसने सोचा कि यदि मैं धौकलसिंह को अपना पुत्र स्वीकार करती हूँ तो मेरा यह छोटा बालक मानसिंह के द्वारा सहज ही मारा जायेगा। इसलिए उसने सोच समझकर सभी के सामने मानसिंह के पूछने पर कहा-“धौकलसिंह मेरा लड़का नहीं है।" रानी के मुख से इस बात को सुनकर राजा मानसिंह को बड़ी प्रसन्नता हुई। उसकी सम्पूर्ण चिन्ता मिट गयी। सामन्त सवाई सिंह ने जो कुछ सोच रखा था, उसका एक साथ विष्णु का भक्त होने के कारण यह दल विष्णु स्वामी दल के नाम से प्रसिद्ध था । महन्त कायमदास के हितों की रक्षा के लिये इस दल के लोगों ने भीषण युद्ध किया था और आवश्यकता पड़ने पर ये लोग दूसरों का साथ भी देते थे। 1. 492
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