जीवन की इस भयंकर परिस्थिति में आक्रमणकारी सेना के प्रधान के दूत ने दुर्ग में पहुँचकर मानसिंह से कहा -“महाराज, इस दुर्ग को मारवाड़ की जिस सेना ने घेर रखा है, उसके सेनापति के आदेश से मैं आपसे यह कहने आया हूँ कि हम सब लोग आप की आज्ञा मानने के लिये तैयार हैं और राजा भीमसिंह के स्थान पर हम सब लोग आप को देखना चाहते हैं इसलिये निर्भीक होकर आप दुर्ग से निकल कर बाहर आ जाइये।" मानसिंह ने अपने परिवार को छोड़कर जालौर के दुर्ग में ग्यारह वर्ष व्यतीत किये थे और भयानक विपदाओं का सामना किया था। सम्वत् 1860 कार्तिक, सन् 1804 ईसवी के दिसम्बर महीने में मानसिंह को दूत के द्वारा यह समाचार मिला और उसके साथ ही मालूम हुआ कि भीमसिंह की मृत्यु हो गई है, मानसिंह ने इस समाचार पर विश्वास न किया। यद्यपि दूत ने राजमंत्री इन्द्रराज के हाथ का लिखा पत्र लाकर मानसिंह के हाथ में दिया था। इस सन्देश को ठीक-ठीक समझने के लिये राजगुरु देवनाथ को शत्रु के शिविर में भेजा गया और उसके बाद जब सन्देश की सत्यता का समाचार मिल गया तो मानसिंह अपने दुर्ग से वाहर निकला। जो राठौर सेना उसको कैद करने के लिये आई थी। उसने बड़े सम्मान के साथ मानसिंह का स्वागत किया। सन् 1804 के जनवरी महीने में मानसिंह का राजतिलक हुआ। इन दिनों में मारवाड़ की परिस्थिति बड़ी भयानक हो गई थी और सम्पूर्ण राज्य एक वार विध्वंस हो चुका था। मारवाड़ के सिंहासन पर बैठकर भी मानसिंह ने शान्तिपूर्ण दिनों की आशा न की। विजयसिंह ने देवीसिंह को कैद करके जिस प्रकार उसकी हत्या की थी, उसके लड़के सबल सिंह ने पिता का बदला लेने के लिये जिस सर्वनाश का विष वोया था, उसका वर्णन किया जा चुका है। मानसिंह के सिंहासन पर बैठने के समय देवीसिंह का पौत्र और सबल सिंह का वेटा सवाई सिंह पोकरण का सामन्त था। उसने असंतुष्ट होकर जोधपुर का राज दरवार छोड़ दिया और दूसरे सामन्तों के साथ मिलकर उसने एक नयी योजना का निर्माण कार्य आरम्भ किया। उसने चोपासनी नामक स्थान पर राज्य के सामन्तों को बुलाकर कहा – “स्वर्गीय भीमसिंह की रानी गर्भवती है। इसलिये हम और आप सभी लोग इस बात की प्रतिज्ञा करें कि यदि रानी के पुत्र उत्पन्न होगा तो मानसिंह को सिंहासन से उतार कर उसका राजतिलक किया जायेगा।" सवाईसिंह रण कुशल होने के साथ-साथ प्रभावशाली था। उसकी उत्तेजना पूर्ण बातों को सुनकर उपस्थित सामन्तों ने उसके प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। उसके बाद इसी आशय का एक प्रस्ताव लिखा गया, उस पर सभी लोगों ने हस्ताक्षर कर दिये। अपने इस कार्य में सफलता पाकर सवाई सिंह बहुत प्रसन्न हुआ। भीमसिंह की गर्भवती रानी इन दिनों दुर्ग में रहा करती थी। सवाई सिंह सभी सामन्तों के साथ उस दुर्ग में गया और भीमसिंह की रानी को दुर्ग से लाकर नगर के राजमहल मे रखा। सामन्तों का निर्णय राजा मानसिंह को मालूम हो गया और उससे जव सामन्तों ने उसका जिक्र किया तो मानसिंह ने बड़ी बुद्धिमानी के साथ स्वीकार किया कि यदि रानी के पुत्र पैदा होगा तो वह मारवाड़ का उत्तराधिकारी होगा और उसके सम्मान को बढ़ाने के लिए नागौर तथा सिवाना की जागीरें उसको दे दी जायेंगी। लेकिन यदि रानी के लड़की पैदा हुई तो ढूँढार के राजकुमार के साथ उसका विवाह किया जायेगा।" राजा मानसिंह के इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लेने पर किसी सामन्त ने कुछ न कहा। उन सामन्तों के साथ पोकरण का सामन्त सवाई सिंह भी मौजूद था। कुछ दिनों के 491
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