बिना खाये-पिये कोई भी मनुष्य कितने दिन जीवित रह सकता है। यही परिस्थिति जालौर के दुर्ग में मानसिंह और उसकी सेना की थी। इसलिये विवश होकर मानसिंह ने अवसर पाकर और उस दुर्ग से निकल कर मारवाड़ के गाँवों और नगरों को लूटना आरंभ किया। उस लूट में मानसिंह के सैनिक खाने-पीने की सामग्री अधिक लेकर अपने दुर्ग में आ जाते और मौका पाकर वे लोग फिर लूटने के लिये निकल जाते । भीमसिंह की सेना इस लूट को रोक न सकी। इसका नतीजा यह हुआ कि मानसिंह और उसकी सेना के सामने खाने-पीने की जो कठिनाइयाँ थीं, वे बहुत-कुछ कम हो गयी। इस प्रकार की लूट में मानसिंह का जीवन एक बार बड़े संकट में पड़ गया। वह अपने सैनिकों के साथ दुर्ग से वाहर गया था और लूट कर जैसे ही वह लौटा, भीमसिंह की सेना ने उस पर आक्रमण किया। मानसिंह उस समय पैदल था और भीमसिंह के सैनिकों के द्वारा उसके कैद हो जाने में देर न थी, उसी समय मानसिंह के सामन्त ने उसको अपनी तरफ पकड़ कर खींचा और अपने घोड़े पर बैठा कर वह बड़ी तेजी के साथ वहाँ से चला गया। इस प्रकार उस भयंकर संकट से मानसिंह के प्राणों की रक्षा हो सकी। राजस्थान के किसी भी राज्य में जब कभी आपसी विद्रोह पैदा होता था उस समय राज्य के सामन्त एक न रह कर दोनों तरफ के सहायक वन जाते थे। राजस्थान के अनेक राज्यों में इस प्रकार देखा जा चुका था। मारवाड़ में इस समय भीमसिंह और मानसिंह में संघर्ष चल रहा था। इसलिये वहाँ के सामन्त दोनों तरफ के सहायक हो रहे थे। कुछ सामन्त भीमसिंह के साथ और कुछ मानसिंह के साथ भी थे। भीमसिंह का पक्ष प्रवल और शक्तिशाली था। इसलिये कितने ही सामन्त भीमसिंह का पक्ष छोड़कर मानसिंह के समर्थक बन गये थे। भीमसिंह के पक्ष के अनेक सामन्तों के निकल जाने का एक और भी कारण था। सभी सामन्त भीमसिंह को कठोर, अव्यवहारिक और अत्याचारी समझते थे। सामन्तों के साथ भीमसिंह का व्यवहार अच्छा न था। जो सामन्त अपनी सेनाओं को लेकर जालौर के दुर्ग पर आक्रमण करने गये थे, उनको उसमें सफलता न मिलने के कारण भीमसिंह ने उनके सम्बन्ध में कई बार ऐसी बातें कही थी, जो सामन्तों के सम्मान के विल्कुल विरुद्ध थीं। जालौर के दुर्ग में भीमसिंह की विशाल सेना को सफलता न मिलने का एक यह भी कारण था। भीमसिंह के व्यवहारों से अनेक वार अपमानित होकर मारवाड़ के अनेक सामन्त राज्य को छोड़कर बाहर चले गये और वहीं पर रहने लगे। भीमसिंह ने उनकी परवाह न की और उसने उनकी जागीरों पर अपना अधिकार कर लिया। इन्हीं दिनों में भीमसिंह ने नीमाज के दुर्ग पर आक्रमण करने के लिये एक सेना भेजी और उस दुर्ग पर अधिकार करके भीमसिंह ने भयानक रूप से उसका विध्वंस किया। इसके बाद भीमसिंह ने उस सेना को भी जालौर के दुर्ग पर अधिकार करने के लिये भेज दिया। भीमसिंह के द्वारा भेजी हुई इस वैतनिक सेना ने जालौर के नगर पर अधिकार कर लिया। इससे मानसिंह के सामने भयानक संकट पैदा हो गया। मारवाड़ की वैतनिक सेना के आ जाने से मानसिंह को मिलने वाली बाहरी सहायता से निराश हो जाना पड़ा। इन दिनों में फिर उसके सामने खाने-पीने की कठिनाइयाँ भयानक रूप से बढ़ गयी। अब उसके सामने दो ही वातें थी। वह अपने सैनिकों के साथ या तो भूखे रहकर प्राण दे सकता था अथवा भीमसिंह के सामने आत्म समर्पण कर सकता था। इन दोनों में उसे क्या करना चाहिये, इसका निर्णय करना उसके लिये वहुत कठिन हो गया। 490
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