पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/४४३

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1 जालिम सिंह मारवाड़ राज्य के सिंहासन पर बैठने का पूर्ण रूप से अधिकारी था। परन्तु वह अवसरवादी और अनावश्यक रूप से युद्ध प्रिय न था। वह एक कवि था। साहित्य के साथ वह विशेष रुचि रखता था।1 मारवाड़ के सिंहासन पर बैठकर भीमसिंह ने राज्य के वास्तविक अधिकारी जालिम सिंह को राज्य में आने तक का अवसर नहीं दिया। उसके भाग जाने के बाद भीमसिंह अपने भविष्य के सम्बन्ध में अनेक प्रकार की वातें सोचने लगा। वह सोचने लगा कि अब जालिम सिंह के लौट कर आने की आशंका न होने पर भी जोधपुर का सिंहासन संकटहीन नहीं है। भीमसिंह के इस प्रकार सोचने का कारण था। विजय सिंह के सात लड़के थे। उसकी मृत्यु के समय केवल जालिम सिंह और सरदार सिंह जीवित थे। सरदार सिंह, सामंत सिंह, भीमसिंह और शेरसिंह के कारण सिंहासन के अधिकार का किसी भी समय संघर्ष उपस्थित हो सकता था। उसका अनुमान अभी से भीमसिंह करने लगा और इस आने वाले संकट को निर्मूल करने का उसने दृढ़ निश्चय कर लिया। भीमसिंह स्वभाव अत्यन्त कठोर और निर्भीक था। उसने अपने चाचा सरदार सिंह और शेर सिंह को मरवा डाला। शेरसिंह ने भीमसिंह को गोद लिया था। परन्तु उसने इसकी भी कुछ परवाह न की। इस समय भीमसिंह के जीवन से तीनों संकट समाप्त हो गये। जालिम सिंह भाग कर चला गया। उसके दोनों चाचा मारे जा चुके थे। लेकिन इतने से ही उसको शान्ति न मिली। वह सोचने लगा कि सामन्त सिंह का पुत्र शूरसिंह और गुमानसिंह का पुत्र भान सिंह जिसको विजय सिंह की प्रेमिका युवती उपपत्नी ने गोद लिया था और विजय सिंह जिसको मारवाड़ का शासक बनाना चाहता था, अभी तक जीवित हैं। शूरसिंह अपने अच्छे व्यवहारों के कारण सबका प्रिय हो रहा था, वह भीमसिंह के बड़े भाई का लड़का था। इसलिये भीमसिंह उसके प्राणों का नाश करके अपने राज्य को संकटहीन वनाने का विचार करने लगा। भीमसिंह को मानसिंह सबसे बड़ा शत्रु दिखायी देने लगा। मानसिंह जालौर के दुर्ग में रहता था। इसलिये उसके का नाश करने के उद्देश्य से भीमसिंह एक सेना लेकर रवाना हुआ और उसने जालौर के दुर्ग को घेर लिया। यह दुर्ग वहुत मजबूत बना हुआ था और शत्रु उस पर सहज ही अधिकार नहीं कर सकते थे। भीमसिंह को उसमें सफलता दिखाई न पड़ी। राठौरों की जो सेना उसके साथ आयी थी, वह कई महीने तक उस दुर्ग को घेरे पड़ी रही। लेकिन उसका कोई परिणाम न निकलने पर भीमसिंह ने वहाँ का उत्तरदायित्व अपने सेनापति को सौंपा और वह स्वयं जोधपुर की राजधानी लौट गया। इसके बाद भी राठौर सेना वहाँ पर घेरा डाले पड़ी रही। मानसिंह के अधिकार में इतनी सेना न थी कि वह भीमसिंह की सेना से युद्ध कुर सकता। इसीलिये दुर्ग के भीतर रहकर वह अपनी रक्षा करता रहा। इस अवस्था में और बहुत दिन बीत गये। खाने-पीने की कठिनाइयाँ बढ़ गयीं। उस दुर्ग की बनावट इतनी सुदृढ़ थी कि उसमें शत्रु का प्रवेश न हो सकता था। लेकिन कई महीने बीत जाने के कारण मानसिंह और उसकी साथ की सेना की कठिनाइयाँ बहुत बढ़ गयी। 1. यतीज्ञानचन्द्र जिसे मैं आदरणीय गुरु के रूप में मानता था। वह दस वर्ष तक लगाकर मेरे साथ रहा । यती ज्ञान चन्द्र ने जालिम सिंह की योग्यता की मुझसे प्रशंसा की थी। उसने बताया कि जालिम सिंह को कविता का बहुत अच्छा ज्ञान था और यह भी स्वीकार किया कि मैंने अनेक वातों की जानकारी जालिम सिंह से प्राप्त की है 489