लगवा दी। उसके बाद वह बीलाडा पर आक्रमण करने के लिए आगे बढ़ा। यह नगर उन दिनों में व्यवसाय के लिए बहुत प्रसिद्ध हो रहा था। बीलाडा नगर में प्रवेश करते ही एक साथ गोलों की वर्षा हुई । उसमें सवल सिंह मारा गया और उसके दूसरे दिन उसका मृत शरीर लूनी नदी के किनारे जलाया गया। राज्य के निरंकुश प्रधान सामन्तों के मारे जाने पर मारवाड़ में एक साथ परिवर्तन हुआ। राजकर्मचारियों की अनुशासनहीनता बहुत-कुछ समाप्त हो गयी और प्रजा में फैली हुई अराजकता मिटने लगी। कृषि और व्यवसाय के बढ़ने से राज्य की आर्थिक दशा में परिवर्तन हुआ। मारवाड़ के उन दिनों का वर्णन करते हुए उस समय के ग्रंथों में लिखा गया है कि थोड़े ही दिनों के भीतर मारवाड़ में सभी कार्य शान्तिपूर्ण होने लगे और पिछले दिनो में जो अशान्ति बढ़ गयी थी, उसके दूर हो जाने से मारवाड़ राज्य में शेर और बकरी एक घाट पानी पीने लगे। मारवाड़ राज्य में अब जो सामन्त रह गये थे उनमें और विजय सिंह में किसी प्रकार का संघर्ष बाकी न रहा। इसलिए राज्य की शक्तियाँ धीरे-धीरे उन्नत होने लगी और सामन्तों के साथ विजयसिंह के सम्बन्धों में स्नेह और माधुर्य पैदा हो गया। सभी सामन्त अपने राजा को सम्मान की दृष्टि से देखने लगे। इन दिनों में विजयसिंह ने अपने राज्य के साथ-साथ चरित्र में भी अनेक परिवर्तन किये थे। उसमें जो स्वाभाविक निर्बलता थी, उसको दूर करके उसने अपने साहस और पराक्रम का परिचय दिया। इन्हीं दिनों में उसने विद्रोही खोसा और सराई जाति के लोगों पर आक्रमण करने की तैयारी की और वहाँ पहुँचकर उसने राजाओं के साथ युद्ध किया। वहाँ पर विजयी होकर विजय सिंह ने अमरकोट के दुर्ग पर अधिकार कर लिया। विजयसिंह इन दिनों में निर्भीकता से काम ले रहा था। उसने मारवाड़ की सीमा पर जो भाग जैसलमेर राज्य में मिला लिया गया था, उस पर अधिकार कर लिया ओर गोडवाडा राज्य को मेवाड़ के राणा से छीन कर उसने अपने राज्य में मिला लिया। मारवाड़ में यह राज्य बहुत प्रसिद्ध माना जाता था। इसके पहले गोडवाडा राज्य पाँच शताब्दी तक मेवाड़ के राणा के अधिकार में रह चुका था। उसके मारवाड़ में मिल जाने के बाद राणा का उस पर कोई अधिकार न रहा। स्वर्गीय पिता के न रहने के बाद रामसिंह के साथ विजय सिंह का जो संघर्ष पैदा हुआ था और उसके फलस्वरूप अजमेर देकर उसे मराठों को कर देना पड़ा था उससे विजय सिंह की राजनीतिक और आर्थिक शक्तियाँ बहुत दीन-दुर्बल हो गयी थीं। उन्हीं दिनों में सामन्तों की स्वेच्छाचारिता के कारण और देवीसिंह के विद्रोही व्यवहारों से विजय सिंह की असमर्थता भयानक रूप से बढ़ गयी। परन्तु उस प्रकार के सभी संकट अब समाप्त हो गये थे। राज्य के वर्तमान सामन्त अब संगठित रूप से चल रहे थे। मारवाड़ के बुरे दिनों का अब अंत हो चुका था। राज्य में किसी प्रकार आपसी विरोध और संघर्ष न रह गया था। परन्तु अजमेर में मराठों की शक्तियाँ अब भी प्रबल हो रही थीं और विजय सिंह अभी तक उनसे अजमेर वापस न ले सका था। प्रताप सिंह इन दिनों जयपुर का शासक था। वह योग्य प्रतिभाशाली और तेजस्वी था। मराठों के अत्याचारों से जयपुर का जो विनाश हो रहा था, उससे वह मन ही मन बहुत दुखी हो रहा था। सम्वत् 1843 सन् 1787 ईसवी में उसने अपने दूत के द्वारा संदेश भेजा कि “मराठा लोग राज्य में भयानक अत्याचार कर रहे हैं। इसलिए हम सब लोगों का कर्तव्य है कि उनको परास्त करने के लिए हम सभी संगठित हो जावें। इसके लिए मैंने सभी 482
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