- व्यवस्था होने से शान्ति कायम हो सकती है और आप लोगों को संतोष मिल सकता है, इस वात को समझने के लिये मैं आप सबके पास आया हूँ।” विजय सिंह के इस प्रश्न को सुनकर सामन्तों ने तीन प्रस्ताव सामने रखे। जो निम्नलिखित है: 1. धाभाई की अधीनता में जो वैतनिक सेना है, उसको राज्य से निकाल दिया जाये। 2. राजा को आत्म-समर्पण करके सामन्तों के पट्टे हम लोगों के अधिकार में दे देने होंगे। 3. न्यायालय दुर्ग से हटा कर नगर में रखा जाये। विजयसिंह ने सामन्तों के प्रस्ताव में कही गयी तीनों वातों को ध्यान से सुना और गंभीरता के साथ उन पर विचार किया। पहली और तीसरी वात में उसको कुछ भी विरोध न था। पहली वात के सम्बन्ध में वह जानता था कि धाभाई के द्वारा जो वैतनिक सेना रखी गयी है, उसी से सामन्तों को इस प्रकार का व्यवहार करने के लिये तैयार होना पड़ा इसलिये उस वैतनिक सेना को समाप्त कर देना ही इस समय बुद्धिमानी की वात मालूम होती है। तीसरी बात में सामन्त लोग राजकार्य दुर्ग की अपेक्षा नगर में चाहते हैं। इसमें भी हमको कोई विशेष आपत्ति नहीं हो सकती । परन्तु दूसरी बात में जो माँग की गयी है, उससे राजा का प्रभुत्व पूरे तौर पर समाप्त हो जाता है। सामन्तों को जागीरें देकर जो पट्टे लिखे जाते हैं, उन पर अधिकार केवल राजा का रहता है। यदि वह अधिकार भी हमारे हाथ से निकल गया तब तो हमारा अस्तित्व ही समाप्त हो जाता है। विजय सिंह कुछ समय तक सामन्तों के प्रस्ताव पर विचार करता रहा। उसने अन्त में . समझा कि वर्तमान परिस्थितियों में सामन्तों को अप्रसन्न करना भविष्य के लिये अच्छा नहीं दिखाई देता। इसलिये उसने बहुत कुछ सोच-विचार कर सामन्तों के प्रस्ताव की तीनों बातों को स्वीकार कर लिया। इससे सभी सामन्त संतुष्ट होकर अपने-अपने राज्यों को चले गये। चम्पावत सामन्त अपनी सेना के साथ विजय सिंह को लेकर जोधपुर की राजधानी चला. गया। गोर्धन के परामर्श के अनुसार विजय सिंह ने सामन्तों से भेंट की और उनके प्रस्ताव की तीनों बातों को उसने स्वीकार कर लिया। इसके परिणामस्वरूप सामन्त लोग संतोष के साथ अपने-अपने नगरों को वापस चले गये और उनके द्वारा जो संकट उपस्थित हो सकता था, उसकी संभावना न रही। इसके कुछ ही दिनों के पश्चात् गुरु आत्माराम की भयानक बीमारी का समाचार विजय सिंह को मिला। वह गुप्त रूप से गुरुदेव के पास गया। विजयसिंह को अपने समीप देखकर गुरुदेव ने कहा- “महाराज, आप कुछ चिन्ता न करे। मेरी मृत्यु के साथ-साथ आपकी विपदाओं का अन्त हो जायेगा।" गुरुदेव की इस बात का जो अभिप्राय था, उसे साफ-साफ धाभाई जग्गू ने विजय सिंह को बताया। वह अभिप्राय उन दो को छोड़कर किसी तीसरे को मालूम न हो सका। गुरुदेव के मर जाने पर विजय सिंह ने दिखावे में वहुत दुःख प्रकट किया। उसके बाद सर्व साधारण को यह बताया गया कि जोधपुर के दुर्ग में गुरुदेव का अंतिम संस्कार होगा। इस घोषणा के अनुसार राजधानी के दुर्ग में गुरुदेव के अंतिम संस्कार की तैयारियाँ श्चित् दिन और समय पर वहाँ पहुँचने के लिये राजा के अंत:पुर से लेकर राजधानी तक स्त्रियाँ दुर्ग के लिये रवाना हुई। अंत:पुर से जो स्त्रियाँ दुर्ग की तरफ चलीं, उनकी रक्षा के लिये राज्य की सेना उनके साथ-साथ चली । मारवाड़ के सामन्तों के पास 479 होने लगीं।
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