पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/४३०

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कोई बालक किसी जागीर का अधिकारी बन जाता है तो वह अपने पिता के अधिकारों से वंचित हो जाता है। देवीसिंह ने पोकरण का अधिकार प्राप्त कर लेने के बाद भी अपने पिता के अधिकारों की लालसा न छोड़ी और जिन दिनों में विजय सिंह जोधपुर के सिंहासन पर अपनी शक्तियों को लगातार खो रहा था, उस समय देवीसिंह का ध्यान मारवाड़ राज्य की ओर आकर्षित हुआ। वह निरंतर जोधपुर के सिंहासन को प्राप्त करने की चेष्टा करने लगा। इसके लिए उसने अपनी शक्तियों का संगठन किया। वह इन दिनों में राज्य का एक सामन्त था और जो सामन्त मारवाड़ के दरबार में आकर किसी भी राजनैतिक परिस्थिति का निर्णय किया करते थे, देवीसिंह भी उनमें से एक था। ऊपर लिखा जा चुका है कि इन दिनों में विजय सिंह की शक्तियाँ विल्कुल निर्बल हो गयी थीं और इस निर्बलता का राज्य के सामन्त अनुचित लाभ उठा रहे थे। उन पर विजय सिंह का कोई प्रभाव न रह गया था। जो सामन्त ऐसा कर रहे थे, देवी सिंह उनमें प्रमुख था। सामन्तों में इस बढ़ती हुई अराजकता को देखकर विजय सिंह के मन में अत्याधिक दुःख होता था। वह किसी प्रकार अनियंत्रित सामन्तों को अपने नियंत्रण में लाना चाहता था, लेकिन इसके लिये उसे कोई रास्ता मिलता न था। राजस्थान में राजकुमार की धात्री को बहुत सम्मान देने की पुरानी प्रथा है। उसी के अनुसार विजयसिंह भी अपनी धात्री को सम्मान की दृष्टि से देखता था। धात्री से जो वालक उत्पन्न होते थे, उनको राजकुमारों का भाई मानकर उनको धाभाई कहा जाता था। इन धाभाइयों को वयस्क होने पर राज्य में ऊँचे पद मिला करते थे। वहाँ की यह पुरानी प्रथा थी। राजा विजय सिंह की धात्री का एक लड़का था। जग्गू उसका नाम था। विजय सिंह का धाभाई होने के कारण राज्य में उसने बहुत सम्मान पाया था। यह जग्गू वयस्क होने पर अत्यंत बुद्धिमान और दूरदर्शी सावित हुआ। जग्गू विजय सिंह से बहुत प्रेम करता था और अपने अच्छे परामर्शों से वह उसको सदा सावधान किया करता था। विजयसिंह भी जग्गू पर विश्वास करता था और किसी भी संकट के समय वह जग्गू के परामर्श को अधिक महत्त्व देता था। दोनों के बीच इस प्रकार श्रद्धा का भाव बहुत दिनों से चला आ रहा था। विजय सिंह के मन में राज्य की दुरवस्था के कारण जो चिन्ता और अशांति रहा करती थी, उसको उसने जग्गू से कई बार प्रकट किया। विजय सिंह की इन चिन्ताओं को सुनकर जग्गू स्वयं बहुत मर्माहत होता था और वह किसी प्रकार विजय सिंह की इस अशांति और चिन्ता को दूर करना चाहता था। मारवाड़ के सामन्तों को नियंत्रण में लाने और राजा विजय सिंह की शक्तियों को प्रबल बनाने के लिये वह अनेक प्रकार के उपाय सोचने लगा। जग्गू ने एक योजना तैयार की और उसने राज्य के सामन्तों को समझा-बुझाकर इस बात के लिये राजी कर लिया कि राज्य की रक्षा के लिए एक शक्तिशाली वैतनिक सेना रखी जाये और वह किसी भी संकट के समय राज्य की रक्षा करे। सामन्तों ने जग्गू की इस बात को स्वीकार कर लिया। उस सेना के लिये यह भी निश्चय हो गया कि वेतन की अदायगी सामन्तों के द्वारा होगी। सामन्तों से नई-नई सेना के रखे जाने और उसको वेतन दिये जाने के सम्बन्ध में जब स्वीकृति मिल गई तो जग्गू ने कई सौ पुरबिया राजपूतों को अपने यहाँ रखकर पूर्व निश्चय के अनुसार एक वैतनिक सेना तैयार की। राजस्थान के सभी राज्यों में सैनिकों को 476