पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/४२३

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छह स्थानों पर लगातार दोनों सेनाओं की मार-काट हुई। अंत में रामसिंह की पराजय हुई। वह युद्ध क्षेत्र से भाग गया। वख्तसिंह विजयी होकर अपनी सेना के साथ जोधपुर की तरफ रवाना हुआ। उसके जोधपुर के निकट पहुँचते ही राठौड़ों ने उसका स्वागत किया। वहाँ पहुँचकर वख्तसिंह ने जोधपुर पर अधिकार किया और उसके बाद वह श्रेष्ठ राठौड़ों के परामर्श से वहाँ के सिंहासन पर बैठा । वगड़ी के जेतावत सामन्त ने वख्तसिंह के मस्तक पर राजतिलक किया। इसके बदले में उस सामन्त को उपाधि दी गई। वख्तसिंह ने रामसिंह को पराजित करके न केवल तलवार के वल से जोधपुर का राजसिंहासन प्राप्त किया, बल्कि उसने अच्छे व्यवहारों के द्वारा वहाँ के बहुमत से सामन्तों की सहानुभूति भी अपने पक्ष में कर ली। इस दशा में रामसिंह से कोई अन्देशा उसको न रह गया। फिर भी उसने जोधपुर के श्रेष्ठ पुरुषों को अपने पक्ष में कर लेने का इरादा किया। राजस्थान के प्रत्येक राज्य में पुरोहित और कवि पूर्वजों के अधिकारी माने जाते हैं। इस प्रकार वहाँ एक पुरानी व्यवस्था । उसके अनुसार मंत्री के पद पर उसका पुत्र और पुरोहित के पद पर पुरोहित का पुत्र नियुक्त किया जाता है। यही व्यवस्था राज्याधिकार के सम्बंध में भी यहाँ पर है। इसीलिए अयोग्य और उग्र स्वभाव का होने पर भी रामसिंह अपने पिता अभयसिंह के सिंहासन पर बैठा. था। लेकिन वह इस पैतृक अधिकार को अधिक समय तक भोग न सका। उसने अपने चाचा वख्तसिंह के विरुद्ध आक्रमण किया और उसके फलस्वरूप वह सिंहासन से उतारा गया। जोधपुर राज दरवार के सभी मंत्रियों और सामन्तों ने वख्तसिंह का समर्थन किया। परन्तु वहाँ का पुरोहित वख्तसिंह के पक्ष में न रहा । उस पुरोहित का नाम था जग्गू । इस जग्गू ने रामसिंह को उग्र और अयोग्य समझकर भी समर्थन किया था। जोधपुर के सिंहासन पर वख्तसिंह के बैठने पर रामसिंह ने राजा जयपुर के यहाँ जाकर आश्रय लिया। पुरोहित जग्गू पूरी तौर पर रामसिंह के पक्ष में था। उसने रामसिंह को फिर से राजसिंहासन पर बैठाने का प्रयास किया और इसके लिए मराठों की सहायता प्राप्त करने की इच्छा से जग्गू दक्षिण की तरफ चला गया। जग्गू का कार्य वखसिंह से छिपा न रहा। उसने सोचा कि पुरोहित जग्गू मराठों की सहायता लेकर मारवाड़ के विनाश की चेष्टा कर रहा है। इसलिए इस पुरोहित को अपने अनुकूल बनाने की कोशिश क्यों न की जाये। इसके सम्बंध में अनेक प्रकार की बातें सोच-समझकर वख्तसिंह ने राजनीति से काम लिया। उसने कविता में एक पत्र लिखकर जग्गू पुरोहित के पास भेजा। उसका आशय इस प्रकार है - “हे मधुकर जिस फूल के सौरभ पर आप आसक्त हो रहे हैं, उसका पेड़ आँधी के आने से नष्ट होकर गिर गया है, उसके सभी पत्ते सूख गये हैं। अव आप क्यों वेकार उसके काँटों में उलझना चाहते हैं।" वख्तसिंह की इस स्पष्ट वात को पढ़कर पुरोहित को वड़ी प्रसन्नता हुई। वख्तसिंह ने पुरोहित का सम्मान करने के लिये संदेश भेजा,जिसे पुरोहित ने स्वीकार कर दिया। वख्तसिंह ने जोधपुर के सिंहासन पर बैठकर बड़ी बुद्धिमानी के साथ वहाँ के लोगों को अपने अनुकूल बना लिया था। उसमें इस प्रकार के गुण थे, जिनसे राजस्थान के लोग सदा प्रसन्न रहते थे। रामसिंह का दूत दक्षिण में पहुँचा और वहाँ के मराठा नेताओं से मिलकर रामसिंह को जोधपुर के सिंहासन पर बैठाने के लिये उसने पूरी चेष्टा की । दक्षिण के मराठा रामसिंह की सहायता करने के लिये तैयार हो गये। लेकिन जव उनको मालूम 469