अपना मेल रखता था। एक दिन बादशाह के पास कृपाराम मौजूद था। अभयसिंह और जयसिंह भी वहाँ पर मौजूद थे। अवसर पाकर कृपाराम अभयसिंह के बल पराक्रम की प्रशंसा करने लगा। उसी समय वादशाह ने कहा - "मैंने सुना है कि आप तलवार चलाने में बहुत ख्याति रखते हैं।" वादशाह की बात सुनकर अभयसिंह ने उत्तर दिया - "मैं आवश्यकता पड़ने पर उसका प्रयोग करता हूँ।” वादशाह ने कहा "किसी मौके पर मैं आपकी तलवार का कमाल देखना चाहता हूँ।” अभयसिंह ने उसको स्वीकार कर लिया। वादशाह की आज्ञा से अभयसिंह की शक्ति की परीक्षा लेने के लिए एक भयानक भैंसा लाया गया और सभी लोगों से जाहिर किया गया कि आज अभयसिंह इस भैंसे के साथ अपनी तलवार का हाथ दिखावेगा। इस बात को सुनते ही वहाँ पर बहुत-से लोग दर्शक वन कर एकत्रित हुए। एक बड़ी भीड़ के बीच में वह भयानक और खूखार भैंसा लाकर खड़ा किया गया । उस भैंसे को देखते ही लोगों को भय मालूम होता था। वह मनुष्यों पर बड़ी तेजी के साथ आक्रमण करता था। उस भैंसे को देखकर अभयसिंह अपने विश्राम गृह में गया और वहाँ उसने अन्य दिनों की अपेक्षा दोगुनी अफीम का सेवन किया। उस समय उसे मालूम हो गया कि जयसिंह ने अपमानित करने के लिए यह षड़यंत्र रचा है। वह क्रोध से उन्मत्त हो उठा। विश्राम गृह से लौटकर वह वादशाह के पास आकर खड़ा हो गया। वादशाह ने मुस्कराते हुये अभयसिंह की तरफ देखा। अभयसिंह वादशाह का अभिप्राय समझ गया। वह अपने स्थान से भैंसे की तरफ बढ़ा। भैंसा बड़ी तेजी से अभयसिंह की तरफ चला। उसके पास आते ही अभयसिंह ने अपने दोनों हाथों से उसके दोनों सींग पकड़ लिए और उसको घसीट कर वह जयसिंह की तरफ ले गया। बादशाह ने अभयसिंह को उधर जाने से रोका। लेकिन अभयसिंह ने इसकी कुछ परवाह न की और उसने अपने दाहिने हाथ में तलवार लेकर एक ही आघात से उस भयानक और खूखार भैंसे की गर्दन काट कर कर उसका सिर अलग कर दिया। गर्दन के कटते ही उस भैंसे का शरीर जयसिंह के पास गिरा और दवते-दवते वह वच गया। बादशाह ने अभयसिंह की इस वहादुरी की प्रशंसा की। मारवाड़ पर अभयसिंह के शासन काल में प्रसिद्ध नादिरशाह ने हिन्दुस्तान पर आक्रमण किया था। उस समय घबराकर वादशाह मोहम्मदशाह ने नादिरशाह के साथ युद्ध करने के लिये राजपूत राजाओं को सेनाओं के साथ बुलवाया। परन्तु कोई राजपूत राजा नहीं आया। अभयसिंह भी नहीं गया। करनाल के युद्ध में मोहम्मदशाह की पराजय हुई। नादिरशाह की विजयी सेना ने दिल्ली में प्रवेश करके भयानक नरसंहार किया और अमानुषिक अत्याचारों के साथ नादिरशाह की फौज ने वहाँ पर लूट-मार की। राजस्थान का कोई भी राजा नादिरशाह के विरोध के लिए आगे नहीं बढ़ा। सीहाजी के वंश में जितने भी राठौड़ मारवाड़ के सिंहासन पर बैठे, अभयसिंह उनमें से एक योग्य शासक था लेकिन आमेर के राजा जयसिंह के कहने से उसने दिल्ली दरवार मे जाकर मुगलों की जो अधीनता स्वीकार की थी और उसके वाद उसके पिता अजीतसिंह की जिस प्रकार हत्या हुई थी, उसके द्वारा अभयसिंह के गौरव को एक भयानक आधात पहुँचा। सभ्यता की प्रत्येक अवस्था में अपराध स्वयं अपराधी को दंड देता है। अभयसिंह को उसका दंड मिला। उस दंड के फलस्वरूप मारवाड़ में अभयसिंह के मरते ही जो 465
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