पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/४१६

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

। लगीं। कुशवाहा सामन्त एक-एक करके अपनी सेनायें लिये हुए आमेर की राजधानी के वाहर एकत्रित होने लगे। बूंदी राज्य के हाड़ा, करौली के यादव, शाहपुरा के सीसोदिया, खींची लोग तथा जाट सेनायें आकर वहाँ पहुँच गयी। आमेर राज्य के पंचरंगी झंडे के नीचे सब मिलाकर एक लाख सैनिकों का समारोह हुआ। इस विशाल सेना को लेकर अभयसिंह के साथ युद्ध करने के लिये जयसिंह मारवाड़ की तरफ रवाना हुआ। साथ में युद्ध के बाजे बज रहे थे। मारवाड़ की सीमा पर गगवाना नामक स्थान पर आमेर राज्य की विशाल सेना पहुँच गयी और वहीं पर मुकाम करके वह अभयसिंह के आने का रास्ता देखने लगी। अभयसिंह को आमेर की इस विशाल सेना के आने का समाचार मिला। उसने बीकानेर को छोड़ दिया और अपनी सेना लेकर आमेर की सेना की तरफ रवाना हुआ। बख्तसिंह को नागौर में इन सब बातों का समाचार मिला। यह जानकर कि आमेर और मारवाड़ के बीच एक भयानक संग्राम होने जा रहा है, वह बहुत चिंतित हो उठा । उसने इस भीषण परिस्थिति की पहले कल्पना भी न की थी। ईर्ष्यालु होकर अभयसिंह के प्रति उसने जो एक योजना बनायी थी, वह कुछ और चीज थी। परन्तु आपसी द्वेष के परिणाम स्वरूप राठौर वंश का जो यह सर्वनाश होने जा रहा था, उसको देखकर और उसके सम्बंध में अनेक प्रकार की कल्पनायें करके वह अत्यंत भयभीत हो उठा। उसको योजना का यह उद्देश्य न था। वह राठौड़ वंश का सर्वनाश देखना नहीं चाहता था। इसलिये उसकी समझ में आ गया कि आमेर की यह विशाल सेना अभय सिंह पर आक्रमण करके मारवाड़ का विध्वंस और विनाश करेगी और उस अवस्था में न केवल मारवाड़ की शक्तियाँ नष्ट हो जायेगी, बल्कि मारवाड़ राज्य को जो गौरव प्राप्त हुआ है, उसका पतन हो जायेगा। वख्त सिंह नागौर से चलकर अभयसिंह के पास पहुंचा और वर्तमान परिस्थिति पर विचार करते हुए उसने कहा - "बीकानेर को जिस प्रकार आपने घेरा था, उसका घेरा वैसा ही रहने दीजिये। वहाँ से इस समय सेना हटाना ठीक नहीं है। आमेर के राजा के साथ युद्ध करने के लिये मैं अकेला काफी हूँ। अभयसिंह ने उसकी बातों को स्वीकार कर लिया। वख्तसिंह नागौर लौट गया। उसने अपने सामन्तों को युद्ध के लिये तैयार होकर आने के लिये संदेश भेजा। नागौर राज्य में युद्ध की तैयारियाँ होने लगी। आने वाले सामन्तों को अफीम का शर्वत पिलाना शुरू किया गया और उसके बाद कुमकुम का जल उनके ऊपर छिड़का जाने लगा। नागौर के सभी सामन्त अपनी सेनाओं के साथ आकर वहाँ पहुँच गये। सभी ने अफीम का शर्वत पिया। उसके बाद नागौर में एकत्रित आठ हजार राजपूतों की सेना में युद्ध के बाजे वजे । उस सेना को लेकर वख्त सिंह नागौर के बाहर निकला और एक वाजरे के खेत के पास जाकर वख्त सिंह ने ऊँचे स्वर से कहा - "इस समय हम आमेर की विशाल सेना के साथ युद्ध करने के लिये जा रहे हैं। इसलिये जो लोग उस युद्ध में जाने के लिये अपने हृदय से उत्सुक हों, वही हमारे साथ चले और वाकी लोग प्रसन्नता के साथ अपने घरों को लौट जायें। यदि आप लोगों में से कोई पराजित होने की अवस्था में भागने की इच्छा रखता हो तो मैं ईश्वर का नाम लेकर उसको लौट जाने की आज्ञा देता हूँ। इसके बाद वख्तसिंह ने अपना घोड़ा वाजरे के खेत में ले जाकर दौड़ाया। इसका अभिप्राय यह था कि उसके हट जाने पर जो लोग लौटकर घर जाना चाहते हैं, वे चले जायेंगे। कुछ देर में वाजरे के खेत से लौट कर वख्तसिंह ने देखा कि आठ हजार सैनिकों और सरदारों में पाँच हजार से कुछ अधिक लोग युद्ध के लिये मौजूद हैं। बाकी लोग वहाँ 462