अध्याय-41 अभयसिंह का शेष वृत्तान्त सरवुलंदखाँ को परास्त करके और जयपुर पर अधिकार करके अभयसिंह जोधपुर चला गया। जयपुर से अपरिमित सम्पत्ति और युद्ध की सामग्री ले जाकर उसने जोधुपुर को सुदृढ़ बना लिया। इन दिनों में अभयसिंह ने जो कीर्ति प्राप्त की थी, वह उसके गौरव के लिये किसी प्रकार कम न थी। जोधपुर में उसके जीवन के दिन अब शांतिपूर्वक व्यतीत होने लगे। अभयसिंह ने वृद्धावस्था में प्रवेश किया था। उसकी शक्तियाँ अव धीरे-धीरे निर्बल पड़ने लगी। उसके छोटे भाई वख्तसिंह का साहस और शौर्य उसकी अवस्था के अनुसार बढ़ रहा था। संघर्ष और संग्राम के दिनों में जो ममता और स्नेह परायणता काम करती है, शान्ति के दिनों में वह कायम नहीं रहती। अभयसिंह ने इन दिनों में जो गौरव प्राप्त किया था, उससे वख्तसिंह के मनोभावों में ईर्ष्या की उत्पत्ति हुई । वह अभयसिंह को द्वेष भरी दृष्टि से देखने लगा। इस ईर्ष्या के प्रमुख कारण क्या थे, इसका कोई उल्लेख उस समय के ग्रंथों में कहीं नहीं मिलता। जो कुछ लिखा गया है उससे जाहिर होता है कि बख्तसिंह अपने आप को साहसी और पराक्रमी समझता था। अभयसिंह को इन दिनों में जो गौरव मिला था, उसका श्रेय वह अपने आपको कम न देता था। इस दशा में मिले हुए गौरव का पूर्ण रूप से अधिकारी अभयसिंह बना। कुछ इस प्रकार की परिस्थितियों ने अभयसिंह के विचारों में उलझन पैदा की। बख्तसिंह को अपने इन विचारों में राठौड़ कवि करणीदान से सहायता मिली। करणीदान सरवुलंद खाँ के साथ होने वाले युद्ध में शामिल था। उसके बाद जब अभयसिंह जोधपुर आकर शांति और सुख के दिन व्यतीत करने लगा, उस समय करणीदान जोधपुर छोड़कर नागौर में वख्तसिंह के पास चला गया। अभयसिंह के प्रति बख्तसिंह के विचारों में जो ईर्ष्या उत्पन्न हुई थी, उसका स्पष्ट उल्लेख न मिलने पर भी यह जाहिर होता है कि राठौड़ कवि करणीदान के जोधपुर से नागौर चले जाने पर उसका प्रादुर्भाव हुआ। वख्तसिंह कवि करणीदान के साथ अपने उन विचारों के संबंध में परामर्श करता रहा। करणीदान ने दोनों भाईयों के बीच एक षड़यंत्र पैदा करने का कार्य किया। उसके अनुसार निश्चय हुआ कि आमेर के राजा जयसिंह के साथ यदि अभयसिंह का कोई संघर्ष पैदा हो सके तो अपने को सफलता मिल सकती है। बीकानेर का राजा छोटा किन्तु स्वतंत्र था। वह राठौड़ वंश की एक शाखा में उत्पन्न हुआ था और स्वतंत्र रूप से राज्य कर रहा था। अभयसिंह ने इन्हीं दिनों में उसकी स्वतंत्रता 459
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