इसी समय अभयसिंह ने अपनी सेना में युद्ध के बाजे वजवाये। उसके बाद दोनों तरफ से भयंकर गोलों की वर्षा आरंभ हुई। लगातार तीन दिनों तक गोलों की मार होती रही । उसमें सरवुलंद खाँ का लड़का मारा गया। तीन दिनों के वाद तलवारों और भालों की मार आरंभ हुई। चम्पावत कुशल सिंह युद्ध करते हुये मारा गया। दोनों तरफ से तलवारों और भालों की जो भीषण मार-काट हो रही थी, उसमें अभयसिंह और वख्तसिंह ने शत्रुओं के बहुत-से आदमियों का संहार किया। अंतिम दिन जव आठ घड़ी दिन वाकी रह गया था, सरवुलंद खाँ युद्ध-क्षेत्र से भाग गया। परन्तु उसकी अग्रवर्ती सेना का सेनापति उसके बाद भी युद्ध करता रहा । बख्तसिंह ने आगे बढ़कर उस पर आक्रमण किया और अपनी तलवार से सरवुलंद खाँ के सेनापति अलियार के मस्तक के दो टुकड़े कर डाले। उसी समय वह गिर कर मर गया। अलियार के मरते ही राजपूतों की सेना ने विजय का डंका बजाया। सरवुलंद खाँ घायल होकर युद्ध क्षेत्र से भागा था। अहमदाबाद के इस युद्ध में शत्रु के चार हजार चार सौ तिरानवे आदमी मारे गये। इनमें से एक सौ व्यक्ति पालकियों पर बैठकर युद्ध कर रहे थे और आठ हाथियों पर । राठौड़ सेना के एक सौ वीस प्रसिद्ध सरदार और अश्वारोही सैनिक मारे गये। सात सौ सैनिक घायल हुये। इस युद्ध में सरवुलंद खाँ की पूर्ण रूप से पराजय हुई। उसके सैनिक और सरदार बहुत अधिक संख्या में मारे गये। सरवुलंद खाँ अव निराश हो चुका था। दूसरे दिन प्रात:काल आकर अभयसिंह के सामने उसने आत्मसमर्पण किया। वह कैद कर लिया गया। उसके साथ-साथ उसके बहुत से आदमी कैद किये गये। अभयसिंह ने सरबुलंद खाँ को बंदी अवस्था में आगरा भेज दिया। उसके साथ जो दूसरे लोग कैद किये गये थे, घायल होने के कारण उनमें से बहुतों की मार्ग में ही मृत्यु हो गई। इस युद्ध में राठौड़ सेना के अनेक सामन्त और मारवाड़ राजवंश के ऐसे लोग भी मारे गये जिनकी मृत्यु से अभयसिंह को अत्यधिक शोक हुआ। अभयसिंह ने सत्रह हजार नगरों के गुजरात पर, नौ हजार नगरों के मारवाड़ पर और एक हजार नगरों पर अन्युत्र राज्य किया। ईडर, भुज, वागड़, सिन्ध, सिरोही, फतेहपुर, झुंझुनूं, जैसलमेर, नागौर, वाँसवाड़ा, लुनावाड़ा, हलवध आदि राज्यों के राजा और सामन्त अभयसिंह की अधीनता में शासन करते थे। राजा रामचन्द्र ने विजयादशमी के दिन लंका को विजय किया था। सम्वत् 1787 सन् 1731 ईसवी की उसी विजयादशमी को अभयसिह ने सरवुलंद खाँ पर विजय प्राप्त की और उसे कैद करके आगरा भेज दिया। विजयी अभयसिंह ने गुजरात पर अधिकार करके सत्रह हजार सैनिकों की सेना वहाँ की रक्षा के लिये रखी और अन्यान्य कीमती चीजों के साथ-साथ गुजरात को लूटकर चार करोड़ रुपये नकद, एक हजार चार सौ तोपें,वंदूकें और युद्ध का वहुत-सा सामान वह अपने साथ जोधपुर ले गया, जिससे उसने अपने दुर्गों को शक्तिशाली बनाया। 458
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