देवड़ा के सभी सामन्त अपनी-अपनी सेनायें लेकर अभयसिंह की विशाल सेना में जाकर मिल गये। इसके पश्चात् अभयसिंह सरस्वती नदी के निकटवर्ती पालनपुर और सिद्धपुर होकर सरवुलंद खाँ का दमन करने के लिए आगे बढ़ा और वहाँ पहुँचकर अपनी सेना का मुकाम करके उसने सरवुलंद खाँ के पास अपना एक दूत भेजा और उसके द्वारा अभयसिंह ने कहला भेजा . "मुगल बादशाह के युद्ध की जितनी सामग्री पर उसने अधिकार कर रखा है। उन सबको वह तुरंत लौटा दे। राज्य की सम्पूर्ण आमदनी और खर्च का हिसाब करके जो कुछं बादशाह का निकले, उसे वह तुरंत दे दे। इसके साथ-साथ अहमदावाद और उसके समस्त दुर्गों से विद्रोही लोग निकल जावें।" अभयसिंह के दूत से इस माँग को सुनकर सरवुलंद खाँ जरा भी भयभीत नहीं हुआ। उसने अहंकार के साथ उत्तर दिया-“अहमदावाद का मैं राजा हूँ । जब तक जिन्दा हूँ, अहमदाबाद नहीं छोड़ सकता।" सरबुलंद खाँ का उत्तर पाकर अभयसिंह ने अपने साथ के सभी राजाओं और सामन्तों के साथ बैठकर परामर्श किया। सरवुलंद खाँ ने जो उत्तर दिया था, वह सबको बताया गया । चम्पावत वंश के अहवा के हरनाथ का बेटा सामन्त कुशलसिंह अभयसिंह के दाहिनी ओर बैठा हुआ था। सरबुलंद खाँ का उत्तर सुनकर सबसे पहले उसने सम्मति दी। उसके बाद कुम्पावत वंश के सामन्त कन्हीराम जो अभयसिंह की बायीं ओर बैठा था बोला- "हम सबको अब अधिक देर करने की जरूरत नहीं है।" मेड़ता के सामन्त केशरी सिंह और ऊदावत वृद्ध सामन्त ने कुछ समय तक इस पर विचार किया कि अब हम लोगों को क्या करना चाहिये। इसी समय जोधावंश के खौरवा के सामन्त ने कहा - "मेरी समझ में युद्ध के बाजे बजने चाहिये। मैं तो युद्ध करने के लिये आया हूँ, इस समय और कुछ विचार करना बिल्कुल व्यर्थ है।" यह कहकर वह चुप हो गया। जेतावत फतेहसिंह और करणोत अभयमल्ल ने जोधा सामन्त की बातों का समर्थन किया। बड़ी देर तक परामर्श करने के बाद युद्ध करना निश्चित किया गया। सभी लोग एक साथ युद्ध कह कर चिल्ला उठे । उस समय सभी के मनोभावों में उत्तेजना की तरंगें उठ रही थीं। वे प्रत्येक अवस्था में सरबुलंद खाँ का उत्तर सुनकर युद्ध करना चाहते थे। इसीलिये परामर्श के अंत में युद्ध की आवाजें करने लगे। सवकी बातों को सुनने के बाद अभयसिंह के भाई वख्त सिंह ने उपस्थित राजाओं और सामन्तों को सम्बोधित करके कहा “आप सभी लोग अपने-अपने शिविर में विश्राम करें। मैं अकेला सेना लेकर सरबुलंद खाँ के साथ युद्ध करने को जाता हूँ। बख्तसिंह की बात समाप्त होते ही लाल रंग का जल लाया गया और जल के उस पात्र को अभयसिंह के सामने रखा गया। अभयसिंह ने बैठे हुये राजाओं और सामन्तों पर उस जल को छिड़कते हुए कहा “इस युद्ध में सवको विजय प्राप्त करनी है। उसके अभाव में हम लोग स्वर्ग की यात्रा करेंगे।" जिस समय अभयसिंह अपने साथ के राजाओं और सामन्तों के साथ परामर्श कर रहा था, सरवुलंद खाँ ने युद्ध की तैयारी की। अपने नगर के प्रत्येक मार्ग पर उसने दो हजार सैनिक और पाँच-पाँच तोपें लगवा दीं। उन तोपों पर यूरोप के लोग नियुक्त थे। बंदूकों को लिये हुए यूरोप का शक्तिशाली दल सरबुलंद खाँ के साथ रक्षक के रूप में था। सरबुलंद खाँ ने युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिये अनेक प्रकार के साधनों का आश्रय लिया था और . वह युद्ध आरंभ होने की प्रतीक्षा कर रहा था। 457
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