पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/४१

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श्री गणेश हुआ। अश्व अथवा वाजस्व का इंदुवंश सिंधु नदी के दोनों किनारों के प्रदेशों में आबाद हो गया। अश्व लोग इंदुवंशी थे। लेकिन यही नाम सूर्यवंशी की एक शाखा का भी पाया जाता है। उनके संबंध में लिखा गया है कि वे लोग घोडों की सवारी करते थे और घोड़ों की पूजा भी करते थे और सूर्य देवता को घोड़े की बलि भी देते थे। जेटिक जाति में प्रचलित अश्वमेघ यज्ञ इस बात का एक प्रधान प्रमाण है कि इस जाति के लोगों की उत्पत्ति सीथियन लोगों से हुई, क्योंकि यह प्रथा सीथियन लोगों की बहुत पुरानी है। ईसा से 1200 वर्ष पहले, सूर्यवंशी राजाओं में गंगा और सरयू के तट पर अश्वमेघ यज्ञ किया जाता था। इसी प्रकार की प्रथा जेटी लोगों में साइरस के समय थी। घोड़े की पूजा और उसका बलिदान देना राजपूतों में आज तक पाया जाता है। स्कैंडीनेविया में घोड़े की पूजा की प्रथा का प्रचार जेटी जाति में अस्सी लोगों द्वारा हुआ और सू, सुएवी, कट्टी, सुकिम्बी और जेटी नामक समस्त प्राचीत जर्मन जातियों ने इस प्रथा का प्रचार जर्मनी के जंगलों और एल्व तथा वेजर नदियों के आस-पास किया। दूध के समान सफेद को लोग ईश्वर का अंश मानते थे और उसकी हिन-हिनाहट से भविष्य में होने वाली घटनाओं का अनुमान लगाते थे। इस प्रकार का विश्वास गंगा और जमुना के समीप रहने वालों में उस समय से फैला हुआ था, जब स्कैंडीनेविया के पर्वतों और बाल्टिक समुद्र के किनारे तक कोई मनुष्य कभी पहुँच भी नहीं पाया था। चीन और तातार के इतिहास लेखकों के अनुसार, बुद्ध और फो ईसा से 1027 वर्ष पहले थे । वाक्ट्रिया और जेहुन नदी के किनारे बसने वाले यूची लोग वादं में जेटा अथवा जेटन के नाम से प्रसिद्ध हुए। उनका साम्राज्य एशियाई भाग में बहुत समय चला और वह भारतवर्ष में भी फैला हुआ था। यूनानी लोग इनसे इन्डोसीथी के नाम से परिचित थे। उनके जीवन की बहुत-सी बातें तुर्कों की तरह की थीं। शेषनाग देश से तक्षक जाति के आने का समय इसा पूर्व छठी शताब्दी माना गया है। मूल उत्पत्ति एक होने का सबसे बड़ा प्रमाण भाषा की अपेक्षा धर्म भी है। इसलिये कि भाषा में हमेशा परिवर्तन होता रहा है । लेकिन रीति-रिवाज और धार्मिक विश्वास सदा एक रहते हैं। टैसिटस अपने लेखों में स्वीकार करता है कि जर्मन का प्रत्येक मनुष्य प्रातःकाल उठने पर सबसे पहले स्नान करता था। इसका स्पष्ट अर्थ यह है कि जर्मनी के प्राचीन निवासियों की उत्पत्ति जर्मनी की तरह के किसी शीत प्रधान देश की नहीं हो सकती। निश्चित रूप से उनकी उत्पत्ति का स्थान पूर्वी देशों में कहीं पर था। सीथियन, किम्बी, जट, कट्टी और सुएबी लोगों की बहुत-सी बातें दूसरी जातियों के साथ मिलती हैं और वे राजपूतों में अब तक पाई जाती हैं । धार्मिक विश्वासों की समानता पूर्ण रूप से इस बात को साबित करती हैं कि सभी जातियों की मूल उत्पत्ति एक थी । जर्मनी के प्राचीन लोग टुइस्टो (मयूरी अर्थात् बुध) और अर्था (पृथ्वी) को अपना मुख्य देवता मानते थे। स्कैण्डीनेविया की जेटी जातियों में सुयोनीज अथवा सुएबी एक प्रसिद्ध जाति थी। वह बाद में अनेक जातियों में विभाजित हो गयी थी। उन जातियों के लोग पृथ्वी की पूजा करते थे और उसे प्रसन्न करने के लिए मनुष्य की बलि । देते थे। सुएबी लोग ईसिस (ईस, गौरी) की पूजा करते थे। उदयपुर में अब तक गौरी का त्यौहार मनाया जाता है और उसके मनाने का तरीका ठीक वैसा ही है जैसा कि ऊपर लिखी हुई जातियाँ प्राचीन काल में मनाया करती थीं । इस प्रकार के वर्णन हेरोडोटस ने अपने ग्रंथों किये हैं। 41