। मारवाड़ के इतिहास में इस बात का स्पष्ट उल्लेख किया गया है कि सम्राट मोहम्मद शाह ने अभयसिंह की मर्यादा को बढ़ाने के लिये सात हीरों का एक आभूषण उसी समय उपहार में दिया । उसके साथ-साथ उसने और भी वहुमूल्य चीजें अभयसिंह को भेंट में दी। सम्वत् 1786 के आषाढ़ महीने में अभयसिंह अहमदावाद और अजमेर के शासन की सनद लेकर दिल्ली से विदा हुआ। मुगल साम्राज्य के अनेक भागों में विभक्त होने की परिस्थिति सरबुलंद खाँ के विद्रोही होने के साथ-साथ आरंभ हुई। सन् 1730 ईसवी के जून महीने में अभयसिंह दिल्ली से रवाना हुआ। वह सीधा अजमेर की तरफ आगे बढ़ा । उस तरफ जाने में उसके दो उद्देश्य थे। अजमेर के शासन की सनद उसे वादशाह से मिल चुकी थी। वहाँ पर अधिकार कर लेने से न केवल मारवाड़ में उसकी शक्तियाँ मजबूत हो जाती थीं, बल्कि राजस्थान के समस्त राज्यों की कुंजी उसके हाथ में आ जाने को थी। दिल्ली से अजमेर जाने में उस समय उसका पहला उद्देश्य यह था। दूसरा उद्देश्य यह था कि अभयसिंह इस भयानक समय में जयसिंह के साथ परामर्श करना चाहता था। आमेर का राजा जयसिंह किस अभिप्राय से इस समय अजमेर आया था, इसका स्पष्टीकरण राठौड़ों के इतिहास में नहीं किया गया। परन्तु दूसरे ग्रंथों में जो उल्लेख किया गया है, उससे जाहिर होता है कि जयसिंह पुष्कर तीर्थ में अपने स्वर्गीय पूर्वजों का श्राद्ध करने के लिये अजमेर गया था। अजमेर में अभयसिंह और जयसिंह की भेंट हुई। दोनों राजाओं ने एक ही स्थान पर विश्राम किया और साथ-साथ बैठकर भोजन किया। उसी अवसर पर दोनों ने वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियों पर बहुत देर तक गंभीरता के साथ परामर्श किया। उस परामर्श की अनेक वातें मुगल साम्राज्य के विध्वंस और विनाश की थी। अजमेर पहुँचकर अभयसिंह ने अपने कार्यकर्ताओं को आवश्यक स्थानों पर नियुक्त किया। इसके बाद वह मेड़ता चला गया। उसका छोटा भाई बख्तसिंह वहाँ पहले से ही पहुँच चुका था। वह अभयसिंह से सम्मान पूर्वक मिला। बख्तसिंह को नागौर राज्य के शासन की सनद इस समय मिल गयी थी। दोनों भाई सेना और सामन्तों के साथ मेड़ता से जोधपुर की तरफ रवाना हुये। मार्ग में अभयसिंह ने सामन्तों को विदा करते हुये कहा "विद्रोही सरवुलंद खाँ के साथ युद्ध करने के लिये बहुत शीघ्र जाना है। इसलिये आप लोग देर न करें और अपनी सेनायें लेकर जोधपुर में आ जावें। अभयसिंह की बात को सुनकर सभी सामन्त प्रसन्नता के साथ अपने-अपने राज्यों को चले गये। अभयसिंह वख्तसिंह के साथ जोधपुर पहुँचा। उसके पश्चात् सरबुलंद खाँ के साथ युद्ध करने की वह तैयारी करने लगा। मारवाड़ के राठौड़ सामन्त अपनी सेनाओं के साथ एक-एक करके जोधपुर में आने लगे। सब सामन्तों के आ जाने पर और सेना के तैयार हो चुकने पर वड़वानल, मगरमुखन और जमराज इत्यादि तोपों की पूजा की गयी। बकरों का वलिदान किया गया। युद्ध की सम्पूर्ण तैयारी हो चुकने के बाद अभयसिंह के मन में एक नया विचार उत्पन्न हुआ। इस समय उसके अधिकार में एक विशाल शक्तिशाली सेना थी। उसके द्वारा उसने अपने पड़ौसी सिरोही के विद्रोही राजा को परास्त करने का इरादा किया । सिरोही का राजा जिस प्रकार उपद्रवी था, उसी प्रकार वह स्वाभिमानी और तेजस्वी भी था। सिरोही का शासन अव तक स्वतंत्र रूप से चल रहा था। सिरोही का राज्य पहाड़ों के ऊपर था। उस राज्य में उग्र स्वभाव के आदमी रहते थे। वे युद्ध करने में भयानक थे। सिरोही के राजा के 455
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