में मुगल बादशाहत के सम्बन्ध में जो निर्णय कर लिये थे, उनके अनुसार वह सैयद वन्धुओं से जाकर मिल गया। अजीतसिंह मुगल बादशाह के साथ बहुत समय तक कठपुतली वनकर रहा। इसके कारण राजस्थान के राजपूतों की दृष्टि में उसकी मर्यादा भंग हो गयी। परन्तु वह क्या कर रहा था, इसे वह स्वयं जानता था। उसने नौरोजा के उत्सव में राजपूत स्त्रियों और राजकुमारियों का जाना बन्द कराया। राजपूत लड़कियों के बादशाह के साथ होने वाले विवाहों पर रोक लगायी। गोहत्या बन्द कराने की चेष्टा की। हिन्दुओं के विरुद्ध जजिया कर को विरोध किया। इन सब बातों के साथ-साथ वारशाह ने यह भी स्वीकार किया कि हिन्दुओं के मन्दिरों में बरावर शंखध्वनि होगी। हिन्दुओं के धार्मिक कार्यो में किसी प्रकार की बाधा नहीं पैदा की जायेगी। अजीतसिंह ने इन सब बातों के साथ अपने राज्य की सीमा की भी वृद्धि की। सम्वत् 1772 के जेठ महीने में मुगल बादशाह ने अजीतसिंह को गुजरात का शासक नियुक्त किया। इसके पश्चात् अजीत दिल्ली छोड़कर जोधपुर चला गया। जजिया कर से हिन्दुओं को मुक्ति दी गयी। इसका प्रभाव सम्पूर्ण हिन्दू-समाज पर पड़ा और सभी लोगों ने अजीतसिंह की प्रशंसा की। इस वर्ष अजीतसिंह ने अपने राज्य में अनेक प्रकार के परिवर्तन किये। वह अपने पुत्र अभय सिंह को साथ में लेकर राज्य के सभी हिस्सों में घूमा। सबसे पहले वह जालौर मैं गया और वहीं पर रहकर उसने वरसात के दिन व्यतीत किये । शरद ऋतु के आते ही अजीतसिंह ने अपनी सेना लेकर मेवासा से आबू और सिरोही के देवड़ा लोगों पर आक्रमण किया और नीमाज पर अधिकार करते ही देवड़ा लोगों ने आत्म-समर्पण किया और उसकी अधीनता स्वीकार कर ली। उन लागों ने कर देना आरम्भ कर दिया। इन्हीं दिनों में पालनपुर से फिरोजखाँ ने आकर अजीतसिंह से भेंट की और उसको वहुत सम्मान दिया। थिराड का राजा अजीतसिंह को कर के रूप में वर्ष में एक लाख रूपये दिया करता था। कलवी लोगों के नेता क्षेमकर्ण ने भी उसकी अधीनता मंजूर की। शक्तावत, चम्पावत और विजय भंडारी शासन की व्यवस्था ठीक करने के लिए एक वर्ष पहले पाटन भेजे गये थे। वे सव वहाँ से आकर अजीतसिंह से मिले। सम्वत् 1773 में अजीतसिंह ने हलवद के झाला को पराजित किया और उसको अधीन बनाकर उसने नवानगर के जाम लोगों पर आक्रमण किया। वे लोग शूरवीर और पराक्रमी थे। उनको अजीतसिंह की शरण में आना पड़ा। उन्होंने कर में तीन लाख रूपये और पच्चीस युद्ध की प्रसिद्ध घोड़ियाँ देकर अजीतसिंह को प्रसन्न किया। इस प्रकार अपने राज्य को शक्तिशाली बनाकर अपनी सेना के साथ अजीतसिंह द्वारिका चला गया। वहाँ की तीर्थयात्रा करके वह जोधपुर की राजधानी लौट आया। अजीतसिंह ने जोधपुर आकर सुना कि इन्द्रसिंह ने इन दिनों में नागौर पर अधिकार कर लिया है। उसने उसी समय अपनी सेना तैयार की और नागौर पहुँचकर उसने इन्द्रसिंह को राज सिंहासन से उतार दिया। सम्वत् 1774 में दिल्ली के दरवार में विद्रोह पैदा हुआ। दिल्ली में फर्रुखसियर का शासन चल रहा था। यह विद्रोह सैयद बन्धुओं के विरोध में था। एक तरफ मुगल अमीर उमराव और दूसरी तरफ दोनो सैयद भाई थे। यह विद्रोह अधिक बढ़ गया और उसके भीषण रूप को देखकर वादशाह ने अजीतसिंह को बुलवाया। हुसैन अली इस समय दक्षिण में था। अवदुल्ला वादशाह के विरुद्ध छिपे तौर पर विद्रोहियों की सहायता कर रहा था। 441
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