मारवाड़ पर आक्रमण करने के लिए मुगलों की विशाल सेना लेकर सैयद वन्धु दिल्ली से रवाना हुये। अजीतसिंह को मुगलों के इस आक्रमण का समाचार मिला । उसने अपने परिवार को अभयसिंह के साथ मरु प्रदेश के राडधड़ा नामक स्थान पर भेज दिया।1 मुगल सेना ने जोधपुर की राजधानी को वहाँ पहुँच कर घेर लिया। उसके बाद वादशाह की तरफ से अजितसिंह के पास आदेश भेजा गया कि उसे भविष्य में अपने अच्छे व्यवहारों का प्रमाण देना होगा और इसकी जमानत में उसका लड़का अभयसिंह वादशाह के दरवार में वरावर रहेगा और समय-समय पर उसे भी वहाँ जाना पड़ेगा। अजीतसिंह ने इस आदेश को मानने से इन्कार कर दिया। परन्तु दीवान के कहने-सुनने और कवि केसर के परामर्श से उसने उस आदेश को स्वीकार कर लिया। केसर कवि ने उसे समझाते हुए कहा "बादशाह के इस आदेश को मानने में कोई हानि नहीं है। दौलत खाँ ने जिस समय मारवाड़ पर आक्रमण किया था, मारवाड़ के राजा राव गंगा ने अपने पुत्र मालदेव को इसी प्रकार के आदेश के अनुसार दरवार में रहने के लिये भेजा था।" अजीतसिंह ने राडधड़ा से अभयसिंह को बुलाया और उसके आ जाने पुर सम्वत् 1770 आपाढ़ महीने के अन्त में उसे हुसैनअली के साथ दिल्ली भेज दिया। वहाँ पहुँचकर राजकुमार अभयसिंह ने बादशाह से पांच हजार सेना के अधिकार का पद प्राप्त किया। पुत्र को भेजने के वाद अजीतसिंह भी दिल्ली के लिये रवाना हुआ। वहाँ पहुँचकर उसने उन शूरवीर राठौड़ों की मृत्यु के स्थानों को देखा, जो उसकी शिशु अवस्था में उसके प्राणों की रक्षा करने के लिए मुगल सेना के द्वारा मारे गये थे। उन स्थानों को देखकर स्वाभिमानी अजीतसिंह के हृदय में प्रतिहिंसा की आग एक साथ प्रज्वलित हो उठी। उसने उसी समय इस प्रकार के अत्याचारों का बदला लेने के लिये प्रतिज्ञा की। अजीतसिंह दिल्ली पहुंच चुका था। वह मुगल दरवार में उपस्थित हुआ। उसने वादशाह के विरुद्ध नीचे लिखे हुये चार अपराधों का आरोप कियाः - - 1- नौरोजाट 2- वादशाह के साथ राजाओं की लड़कियों का विवा संस्कार। 3- गौहत्या। 4. जजिया कर। सैयद वन्धुओं के मारवाड़ पर आक्रमण करने के बाद ऊपर लिखे हुये अजीत के जो चार प्रस्ताव बादशाह के सामने पेश किये गये थे। उनमें से दग्दशाह फर्रुखसियर के साथ अजीतसिंह की लड़की के विवाह का भी एक प्रस्ताव था। उसका उल्लेख इस ग्रन्थ में पहले किया जा चुका है। अजीतसिंह ने इच्छापूर्वक अपनी लड़की का विवाह वादशाह के साथ नहीं किया था, कठोर परिस्थितियों में जकड़ जाने के कारण उसको ऐसा करना पड़ा था.। ऐसा न करने पर उसका सर्वनाश उसके नेत्रों के सामने था। इसलिये जो अपराध उसे न करना चाहिए था उसके लिये उसे तैयार होना पड़ा। परन्तु उसके साथ-साथ उसने अपने मन राघड़ा लूनी नदी के पश्चिमी किनारे पर बसा हुआ है। वह मरुभूमि का एक प्रसिद्ध स्थान है। 2. नौरोजा का मेला प्रत्येक महीने के नवें दिन होता था। उस मेले में राजमहल और बड़े-बड़े अमीर-उमराओ के घरों के लोग अपनी-अपनी दस्तकारी की चीजें लाते थे और उनका क्रय-विक्रय होता था। इसी नौरोजा के नाम पर वर्ष में एक बार केवल स्त्रियों का मेला होता था, जिसमें प्रसिद्ध घरों की स्त्रियाँ ही शामिल होना थीं । वहाँ पर कोई पुरुष न जाता था। इस मेले को अकबर ने जारी किया था। 1. 440
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