पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/३९३

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अध्याय-39 महाराजा अजीतसिंह अन्तिम दिन सम्वत् 1768 में वादशाह बहादुरशाह ने अजीतसिंह को कैलाश पर्वत के विद्रोही सामन्तों का दमन करने और नाह प्रदेश पर अधिकार करने के लिये भेजा। अजीतसिंह अपनी शक्तिशाली सेना लेकर बादशाह की तरफ से रवाना हुआ और नाहन प्रदेश में जाकर उसने विद्रोहियों को पराजित किया। वहाँ से विजयी होकर लौटने पर अपनी सेना के साथ अजीतसिंह ने गंगा में स्नान किया और दान-पुण्य करके बसन्त ऋतु में वह अपनी राजधानी लौट आया। सम्वत् 1769 में मुगल बादशाह को मृत्यु हो गयी। उसके लड़कों में सिंहासन पर बैठने का अधिकार प्राप्त करने के लिये आपस में संघर्ष हुआ। उस लड़ाई में अजीमुस्शान मारा गया। और मुईजुद्दीन सिंहासन पर बैठा। उस समय मारवाड़ के राजा अजीतसिंह ने बहुमूल्य उपहार के साथ भण्डारी खीमसी को नये वादशाह के पास भेजा। उस उपहार को पाकर नवीन मुगल बादशाह बहुत प्रसन्न हुआ और उसने अजीतसिंह को गुजरात का शासक बना दिया। सम्वत् 1769 के माघ महीने अजीतसिंह ने अहमदाबाद पर अधिकार करने के लिये अपनी सेना तैयार की। परन्तु इन दिनों में मुगल सिंहासन का फिर झगड़ा पैदा हुआ। दोनों सैयद भाइयों ने वादशाह मुईजुद्दीन को मार कर वहाँ के राजसिंहासन पर फर्रुखसियर को विठाया। उन्हीं दिनों में जुलफिकार खाँ भी मारा गया। इसके फलस्वरूप मुगलों की शक्ति बहुत कमजोर पड़ गयी। दोनों सैयद भाइयों ने मुगल दरवार में अपना आधिपत्य कायम किया। बादशाह फर्रुखसियर ने सैयद बन्धुओं के परामर्श से अजीतसिंह के पास सन्देश भेजा कि आप अपने वेटे अभयसिंह को राठौड़ सेना के साथ शीघ्र दिल्ली भेजिये। अभयसिंह की अवस्था इस समय सत्रह वर्ष की थी। इसी मौके पर अजीतसिंह को मालूम हुआ कि विश्वासघाती नागौर का राजा मोहकम मुगल दरवार में रहा करता है और बादशाह उसके प्रभाव में भी है ।1 इसलिये अजीतसिंह ने उस विश्वासघाती को संसार से विदा करने । के लिये अपने कुछ विश्वस्त आदमियों को दिल्ली भेज दिया। उन्होंने वहाँ पहुँचकर और मौका पाकर मोहकम को जान से मार डाला। इससे दिल्ली के मुगलों में आग भड़की । इस मुकुन्द को मूल पुस्तक में कहीं-कहीं पर भोकाम लिखा गया है। उसका सही नाम मोहकमसिं है। -- अनुवादक 1. 439