की लड़ाइयों में राजस्थान के सभी राजपूत मिलकर एक हो गये थे। इसका कारण मुगलों का अत्याचार था। इसलिये जो राजपूत एक, दूसरे के साथ कभी न मिल सके थे, वे भी इन दिनों में मिलकर एक हो गये। सम्वत् 1739 के आखिर में जैसलमेर के भाटी लोग भी राठौड़ों के साथ मिल गये थे और उन लोगों ने राठौड़ों की सहायता करने में अपने प्राणों को उत्सर्ग किया। सम्वत् 1742 के आरम्भ से मुसलमानों की नई तैयारियाँ आरम्भ हुईं। अब वे अपनी नवीन शक्तियों को लेकर युद्ध की तैयारियाँ करने लगे। आजम और असदखाँ भारत के दक्षिण में चले गये और वहाँ जाकर औरंगजेब से मिले। इनायत खाँ अधिकारी वनकर अजमेर में रहने लगा। उसे औरंगजेब ने आज्ञा दी थी कि राठौड़ों के साथ युद्ध वरावर जारी रहे और बरसात के दिनों में भी युद्ध वन्द न किया जाये। इनायत खाँ ने यही किया। इन दिनों में मारवाड़ के सभी नगर और ग्राम मुगलों के अधिकार में थे और उनके अत्याचार से मारवाड़ सभी प्रकार मिट चुका था। जो लोग उन गाँवों और नगरों में वाकी रह गये थे, वे मुगलों के नाम से घबरा रहे थे। अपनी इस निर्वलता में मारवाड़ के वे लोग मेरवाड़ा में पहुँचकर आश्रय लेने लगे और थोड़े समय के भीतर सभी राठौड़ अपने परिवारों को लेकर मेरवाड़ा के पहाड़ी स्थानों पर जाकर रहने लगे। यहाँ आकर उन लोगों ने फिर से अपना संगठन किया और भयानक कठिनाई में होने पर भी उन्होंने मुगलों पर आक्रमण आरम्भ कर दिये। वे किसी समय अपने स्थानों से निकल कर अचानक उन गाँवों और नगरों पर आक्रमण कर देते, जो मुगलों के अधिकार में थे। उन नगरों की लूट-मार कर वे फिर पहाड़ी और जंगली स्थानों में भाग जाते । मुगलों से वदला लेने के लिये जितने भी अवसर राठौड़ों को मिल सकते थे, उनको उन्होंने वेकार नहीं जाने दिया। राठौड़ों ने पाली, सोजत और गोडवाड आदि कितने ही नगरों और ग्रामों को लूट कर वरवाद कर दिया। प्राचीन मन्डोर नगर का अधिकार ख्वाजा सालह नाम के एक मुस्लिम सेनापति के हाथ में था। भाटियों ने उस पर आक्रमण किया और उसे वहाँ से निकाल दिया। वैसाख के महीने में वगड़ी नाम स्थान पर एक भयानक युद्ध हुआ। उसमें रामसिंह और सामन्तसिंह नाम के दो भाटी सरदारों ने हजारों मुसलमानों का अन्त किया और अपने दो सौ सैनिकों के साथ वे दोनों सरदार मारे गये। अनूपसिंह नाम का एक सरदार कुम्पावतों को लेकर लूनी नदी के समीप पहुँच गया और उसने वहाँ के मुसलमानों का संहार करना आरम्भ किया। उसके इस आक्रमण से उस्तराँ और गाँगणी नाम के दो दुर्गों से मुगलों के सैनिक भाग गये। मोहकमसिंह मेड़तिया सेना के साथ अपनी प्राचीन भूमि में आया और वहाँ के रहने वाले मुसलमानों पर उसने आक्रमण किया। मुगल सेनापति मोहम्मद अली ने अपनी फौज लेकर उसका सामना किया। दोनों ओर से मारकाट आरंभ हुई। अन्त में मोहम्मद अली ने राठौड़ों से युद्ध बंद करने की प्रार्थना की । उसके वाद सन्धि हुई । राठौड़ों ने युद्ध बन्द कर दिया था और मोहम्मद अली के साथ उनकी जो सन्धि हुई थी, उससे वे निश्चिन्त हो गये। उनको असावधान देखकर मोहम्मद अली ने सन्धि की उपेक्षा करके राठौड़ सेनापति पर आक्रमण किया और धोखे से उसे मार डाला। मुसलमानों के इस विश्वासघात का प्रभाव राठौड़ों पर बहुत बुरा पड़ा। उसका बदला लेने के लिये राठौड़ों ने इधर-उधर अपने आक्रमण आरंभ कर दिये । सुजानसिंह राठौड़ सेना को लेकर दक्षिण की तरफ चला गया। जोधपुर में जो मुस्लिम सेना मौजूद थी, उसके साथ राजपूतों के 427
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