राठौड़ों ने प्रतिज्ञायें कीं। कर्णोत, क्षेमकर्ण, जोधावंशी, महेचा, विजयमल, सूजावत, जैतमाल, शिवदान आदि और भी शूरवीरों ने अपनी सेनायें तैयार की। इन लोगों को जव मालूम हुआ कि वादशाह औरंगजेब ने अजमेर से आठ मील की दूरी पर आकर विश्राम किया है, तो उस समय राठौड़ सेना ने जोधपुर पहुँच कर उसकी फौज का सामना किया। परन्तु उसके बाद ही वीस हजार मुगल सेना इनायत खाँ की सहायता के लिये वहाँ पहुँच गयी। उस समय जोधपुर में मुगल फौज के साथ राठौड़ों का भयानक युद्ध हुआ और उस संग्राम में दोनों तरफ के बहुत से आदमी मारे गये। जोधपुर का यह संग्राम सम्वत् 1737 सन् 1681 आषाढ़ बदी की सप्तमी को हुआ था। इसके बाद दूसरा युद्ध राठौड़ों और मुगलों के बीच फिर हुआ। उस युद्ध में हरनाथ और कर्ण अपने परिवार के कई लोगों के साथ मारे गये । इस युद्ध का अन्त सम्वत 1738 के आरम्भ में हुआ। इन संग्रामों में सोनग ने जिस प्रकार अपने अद्भुत पराक्रम का परिचय देकर युद्ध किया था, उसको देखकर औरंगजेव आश्चर्य में आ गया। युद्ध के बाद वादशाह ने अपना दूत उसके पास भेजा और उसके साथ सन्धि की बातचीत शुरू की। इसके साथ-साथ उसने उसको सात हजारी की पदवी दी और उसके वंशजों को अजमेर देकर सोनग को वहाँ का अधिकारी बना दिया। इसके सम्बन्ध में एक सन्धि पत्र लिखा गया। उसमें औरंगजेव ने यह भी लिख दिया कि-"मैं भगवान की कसम खाकर इस सन्धि पत्र पर मुहर करता हूँ और वादा करता हूँ कि इसके विरुद्ध मैं कभी कोई कार्य न करूँगा।" इस संधि पत्र को लेकर दीवान असद खाँ वहाँ पर आया और राठौड़ों के बीच पहुँचकर उसने शपथ के साथ कहा – “इस सन्धि के विरुद्ध बादशाह कोई भी कार्य न करेगा।" शाहजादा अकवर के जीवन की परिस्थितियाँ इस समय भयानक हो उठीं। वह सैनिकों को लेकर दक्षिण की तरफ चला गया। असद खाँ अजमेर में और सोनग मेड़ता नगर में रहने लगा। औरंगजेब की दृष्टि मेड़ता पर गयी। वह सोनग के सम्बन्ध में विचार करने लगा। उसने राठौड़ों को जो अश्वासन दिया था, उसे उसने भुला दिया और एक ब्राह्मण को धन देकर उसने सोनग का अन्त करने के लिये रास्ता बनाया। भट्ट ग्रन्थों में लिखा गया है कि उस व्राह्मण के द्वारा सोनग की मृत्यु हो गयी। वहाँ पर यह वात स्पष्ट नहीं की गयी कि उसकी मृत्यु का कारण क्या हुआ। परन्तु इस बात का अनुमान किया जाता है कि उस ब्राह्मण के द्वारा सोनग को विष खिलाकर मारा गया। सोनग की मृत्यु का समाचार दीवान असद खाँ ने औरंगजेब के पास भेजा । उससे वादशाह को बहुत संतोष मिला। उसने उस ब्राह्मण को जो धन दिया था, सफल हो गया। राठौड़ों के साथ की गयी सन्धि को तोड़कर और सोनग को संसार से विदाकर औरंगजेब दक्षिण की तरफ रवाना हुआ। इन दिनों में मेड़ता निवासी कल्याण के पुत्र मुकुन्दसिंह को वादशाह की तरफ से एक उपाधि दी गयी थी। मुकुन्दसिंह ने उस उपाधि को ठुकराकर मुगलों के साथ युद्ध करने की तैयारी की। उसने मेड़ता के करीव दीवान असद खाँ की सेना से एक युद्ध किया। विट्ठलदास का वेटा अजवसिंह उस युद्ध में मारा गया। यह युद्ध सम्वत् 1738 कार्तिक सुदी 2 को हुआ था। इस युद्ध में शाहजादा आजम असद खाँ के साथ था। इनायत खाँ जोधपुर में रहने लगा और उसकी फौज जोधपुर के आस-पास भयानक अत्याचार करने लगी। अपने साथ 425
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