औरंगजेब की जब यह चाल भी बेकार हो गयी तो उसने अकबर के विरुद्ध एक मुगल सेना रवाना की। उसके आने का समाचार सुनकर वह भयभीत हुआ। उसके मन में अनेक प्रकार की आशंकायें पैदा होने लगीं। उसे चिन्तित देखकर दुर्गादास ने सन्तोष देते हुए उससे कहा-"आपको किसी प्रकार की चिन्ता नहीं करनी चाहिए। जब तक मैं जिन्दा हूँ, बादशाह आपका कुछ बिगाड़ नहीं सकता।"
दुर्गादास ने राजकुमार अजीत की रक्षा का भार सोगनदेव को सौंपा और एक सेना लेकर वह दक्षिण की तरफ रवाना हुआ। शाहजादा अकबर की रक्षा के लिये दुर्गादास ने जिन विश्वासी राजपूतों को नियुक्त किया था, उनका वर्णन कवि कर्णीदान ने बड़ी सुन्दरता के साथ किया है। उन विश्वस्त राजपूतों में चम्पावतों की संख्या अधिक थी। जोधा, मेड़तिया, यदु, चौहान, भाटी, देवड़ा, सोनगरा और माँगलिया आदि बहुत से सरदार दुर्गादास के साथ गये थे। बादशाह ने दुर्गादास की सेना का पीछा किया। उसकी फौज ने राठौड़ सेना को चारों तरफ से घेर लिया। इस दशा में दुर्गादास ने एक हजार सैनिकों को साथ लेकर उत्तर दिशा की तरफ का रास्ता छोड़ दिया। औरंगजेब ने उसका पीछा किया और जब वह जालौर में पहुँचा तो उसे उस बात का ख्याल हुआ कि दुर्गादास जालौर की तरफ नहीं आया। वह गुजरात के दक्षिण की तरफ और चम्बल नदी की बायीं ओर अकबर को लिये हुए नर्मदा के किनारे पर पहुँच गया है।
इस समय औरंगजेब के क्रोध का ठिकाना न रहा। वह अपने नित्य के धार्मिक कामों को भी भूल गया और मन की उलझन में उसने कुरान को उठाकर फेंक दिया। उसके बाद उसने आजम से कहा: "उदयपुर को फतह करने के लिये मैं वहाँ पर रहूँगा। तुम्हारा सबसे पहला काम यह है कि राठौड़ों पर आक्रमण करके अपने भाई अकबर को गिरफ्तार करो।"
बादशाह औरंगजेब ने अजमेर पहुँचने के दस दिनों के बाद अपनी सेना जोधपुर और अजमेर में छोड़ दी और वह स्वयं आगे की तरफ रवाना हुआ। दुर्गादास ने अजीत की रक्षा का भार बहुत विश्वासी राठौड़ों को सौंपा था। इसीलिये बहुत कोशिश करने के बाद भी औरंगजेब को अजीत का पता न मिल सका। वह कहाँ पर, किस पर्वत की गुफा में छिपा कर रखा गया है, इसका पता तो मारवाड़ के लोगों को भी न था। बहुत से लोग यह जानना चाहते थे कि अजीत कहाँ है और उसकी रक्षा किस प्रकार हो रही है? परन्तु इन बातों का कोई पता न लगा सका। बादशाह औरंगजेब के इन दिनों के सारे अत्याचार मेवाड़ और मारवाड़ पर राजकुमार अजीत के कारण हो रहे थे। वह किसी प्रकार अजीत को जीवित नही देखना चाहता था। वह जानता था कि मारवाड़ के सरदारों और सामन्तों ने उसके प्राणों की रक्षा का भार अपने ऊपर लिया है इसीलिये उसने मारवाड़ के नौ हजार ग्रामों और नगरों में भयानक अत्याचार किया था और उनको लूटकर तथा आग लगा कर श्मशान बना दिया था। यही अवस्था उसने मेवाड़ की बनाई थी। इसलिये कि वहाँ के राणा ने अजीत को और उसकी रक्षा करने वालों को अपने यहाँ आश्रय दिया था। राणा के इस अपराध के बदले औरंगजेब ने मेवाड़ राज्य के दस हजार ग्रामों और नगरों का भयानक रूप से विनाश किया था। उसके इन अत्याचारों के कारण मारवाड़ के राठौड़ सरदार और सामन्त भयभीत नहीं हुए और उनकी इस निर्भीकता का कारण शूरवीर दुर्गादास था।
मेवाड़ और मारवाड़ का विध्वंस और विनाश करके इनायत खाँ ने दस हजार मुगल सेना के साथ जोधपुर में प्रवेश किया और वहाँ पर उसने मुकाम किया। जोधपुर इन दिनों में मुगलों के अधिकार में था। इस पराधीनता से जोधपुर को निकालने के लिये मारवाड़ के
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