पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/३७५

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इस युद्ध में जिस प्रकार नरसंहार हुआ, उसको देखकर शाहजादा अकवर घबरा उठा। उसकी समझ में न आया कि इस प्रकार का सर्वनाश किसलिये हो रहा है। उसने इस युद्ध में अपने नेत्रों से राजपूतों की वीरता का दर्शन किया। उसने सोचा, 'जो वीर राजपूत इतने शूरवीर हैं, क्या उनके साथ मिलकर इस नरसंहार को रोका नहीं जा सकता?' उसने सेनापति तहब्बर खाँ से बातें की और इस बात को स्वीकार किया कि इस सर्वनाश का कारण हम लोगों के सिवा कोई दूसरा नहीं हो सकता। शाहजादा अकबर की बात तहब्बर खाँ की समझ में आ गयी। उसने उसकी बातों का समर्थन किया। सेनापति के साथ परामर्श करके शाहजादा अकबर ने अपना दूत दुर्गादास के पास भेजकर कहा-"राज्य में शान्ति कायम होने के लिये यह जरूरी है कि आपके साथ मेरी मुलाकात हो और इस सिलसिले में बातचीत हो।"

शाहजादा अकबर के द्वारा वह संदेश पाकर दुर्गादास ने राठौड़ सरदारों को बुलाया और शाहजादा अकबर का संदेश सुनाकर उसने उनके साथ परामर्श किया। सभी लोगों ने इसके विरुद्ध सम्मतियाँ प्रकट कीं। किसी ने कहा-"यवनों का विश्वास करना किसी प्रकार ठीक नहीं हैं। उनकी विश्वासघातकता से राजपूतों का सर्वदा नाश हुआ है।" किसी ने कहा-"शाहजादा अकबर का संदेश किसी रहस्य से खाली नहीं है।"

दुर्गादास ने सब को समझाते हुए कहा-"आपकी सम्मतियाँ बिल्कुल ठीक हैं। हमें शत्रु का विश्वास न करना चाहिए। लेकिन यदि सच्चाई के साथ यह संदेश आपके पास भेजा गया है तो उससे आपको भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है। विश्वास करके हमको इतना निर्बल नहीं बन जाना चाहिये कि शत्रु हमारा विनाश कर सके। इसलिये यदि आप लोग मंजूर करें तो मेरा कहना यह है कि हम सब लोग सन्देश भेजकर अकबर के शिविर में चलें और उसके साथ परामर्श करें लेकिन इतना सतर्क और सावधान रहें कि शत्रु हमको क्षति न पहुँचा सके।"

सरदारों ने दुर्गादास की बातों को स्वीकार कर लिया। उसके बाद शाहजादा अकबर से भेंट हुई। किसी प्रकार का विवाद नहीं पैदा हुआ और संधि के रूप में सारी बातें तय हो गयीं। जो कुछ निर्णय हुआ, उससे दोनों तरफ के लोगों को सुख और सन्तोष मिला।

अकबर ने राठौड़ों के साथ संधि करके अपने नाम का सिक्का चलाया। मारवाड़ और मुगल राज्य की सीमायें निर्धारित हो गयीं। राठौड़ों ने अकबर को बादशाह माना। मुगल साम्राज्य के सभी प्रधान सामन्तों ने उसकी बादशाहत को स्वीकार किया। उसके बाद इस प्रकार के कार्य आरम्भ हुए, जिनसे राठौड़ों और मुगलों की इस मित्रता को आघात पहुँचने की सम्भावना न थी।

अजमेर में औरंगजेब को इन सब बातों का समाचार मिला। उसके हृदय को बहुत चोट पहुँची। वह एक साथ अधीर हो उठा। मिले हुए समाचारों से उसने विश्वास कर लिया कि शाहजादा अकबर दुर्गादास के साथ मिल गया है। इस विश्वास के कारण उसके हृदय में एक आग पैदा हो गयी। उसकी अशान्ति का कोई ठिकाना न रहा। दुर्गादास और शाहजादा अकबर के मिल जाने की बात चारों तरफ फैल गयी। लोग तरह-तरह की बातें आपस में करने लगे।

अगणित राजपूतों के साथ शाहजादा अकबर अपनी फौज लिए हुए अजमेर की तरफ रवाना हुआ। यह समाचार जब औरंगजेब को मिला तो वह घबरा उठा और सोचने लगा, "क्या अब मुझे राजपूतों को छोड़कर अकबर के साथ युद्ध करना पड़ेगा? क्या यह बात सही नहीं है कि शाहजादा अपनी और राजपूतों की विशाल सेना लेकर मुझे सिंहासन से

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