पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/३७२

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वह मुसलमान एक निश्चित स्थान पर टोकरा लेकर पहुँच गया और उसके कुछ समय के बाद दुर्गादास युद्ध में बचे हुए सरदारों को साथ में लेकर वहाँ पहुँचा। उसके शरीर में सैंकड़ों जख्म थे, जिनसे बराबर रक्त निकल रहा था। दुर्गादास ने उन जख्मों की परवाह न की। वह किसी प्रकार अजीत को सुरक्षित देखना चाहता था। उस मुसलमान से जिस स्थान का निश्चय हुआ था, वहाँ पर पहुँच कर जब दुर्गादास ने टोकरे में अजीत को सुरक्षित और सकुशल देखा तो उसे बहुत संतोष और सुख मिला। उस समय वह अपने शरीर के सैंकड़ों जख्मों की पीड़ा को भूल गया। जो मुसलमान अजीत को छिपा कर टोकरा लाया था, वह राठौड़ों का परम विश्वासी था। वह जानता था कि राजपूतों के साथ जो उपकार किया जाता है, वह कभी व्यर्थ नहीं जाता। अजीत के प्राणों की रक्षा करने वाले मुसलमान को उसके इस उपकार के बदले मारवाड़-राज्य की तरफ से जागीर दी गयी, जो अब तक उसके वंशजों में पायी जाती है। इसके साथ-साथ मारवाड़ के दरबार में उसको बहुत बड़ी प्रतिष्ठा मिली। अजीत जब बड़ा हुआ तो उसने उस मुसलमान का बहुत आदर किया और अंत तक अजीत उसको काका कह कर पुकारता रहा।

दुर्गादास अपने कुछ विश्वासी आदमियों के साथ राजकुमार अजीत को लेकर आबू पहाड़ पर चला गया और वहाँ एकान्त स्थान में रह कर वह उस बालक का पालन-पोषण करने लगा। दुर्गादास को वहाँ रह कर भी औरंगजेब का भय बना रहा। इसलिए उसने अपने एकान्तवास का समाचार शक्ति भर किसी को प्रकट नहीं होने दिया।

धीरे-धीरे बहुत दिन बीत गये। अजीत के साथ बहुत दिनों तक दुर्गादास का छिपकर रहना अप्रकट न रह सका। किसी प्रकार मारवाड़ के राजपूतों में यह अफवाह फैलने लगी कि जसवंत सिंह का पुत्र अजीत जीवित है। दुर्गादास के संरक्षण में उसका पालन-पोषण हो रहा है। इस अफवाह के फैलते ही वहाँ के अगणित राजपूत आपस में एक दूसरे से बातें करने लगे और इस बात की खोज में रहने लगे कि यह अफवाह सही कहाँ तक है। इस खोज में मारवाड़ के बहुत से राजपूत दुर्गादास का पता लगाने के लिए बाहर निकले। वे इधर-उधर घूमते हुए आबू पहाड़ पर पहुँच गये।

राजकुमार शिशु अजीत को बहुत पहले से दूनाड़ा का सरदार धनी के नाम से सम्बोधित किया करता था। जो राजपूत आबू पर्वत पर पहुँच गये थे, उन्होंने दुर्गादास और अजीत का पता लगा लिया और जब वे उस स्थान पर पहुँचे, जहाँ पर अजीत रहा करता था तो वे राजकुमार को देखकर बहुत प्रसन्न हुए और आपस में बातचीत करके उन लोगों ने मारवाड़ के सिंहासन पर अजीत को बिठाने का निश्चय किया।

आबू पहाड़ पर अजीत का वह एकान्त स्थान धीरे-धीरे मारवाड़ के दूसरे राजपूतों को भी मालूम हो गया, अब वहाँ पर बहुत-से राठौड़ भट्ट और चारण एकत्रित होने लगे। प्राचीन काल में ईदा नामक एक प्राचीन राजवंश मरुभूमि में राज्य करता था। ईदा परिहार राजपूतों की एक शाखा है। मारवाड़ में राठौड़ों का आधिपत्य कायम होने पर ईदा वंश के लोग अपने राज्य को छोड़कर दूर चले गये थे और अपना राज्य खोकर किसी प्रकार दिन बिताने लगे। परन्तु अपने राज्य के छूट जाने की वेदना अभी तक उस वंश के लोगों में थी। इस समय उनको मौका मिल गया और थोड़े ही दिनों में परिहारों का झंडा प्राचीन मन्ड़ोर में फ़हराने लगा।

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