सम्बन्ध कुछ लिखना बादशाह ने अभिलाषा थी, उसकी सफलता के लिये वह भी बराबर अपना कार्य करता रहा। औरंगजेब जसवन्तसिंह को समझता था और जसवन्तसिंह औरंगजेब को समझता था। दोनों ही अपने-अपने उद्देश्य की पूर्ति में लगे थे राजनीतिज्ञ औरंगजेब जसवन्तसिंह से जो कार्य लेना चाहता था, जसवंत सिंह उसी को अपने उद्देश्य की सिद्धी के लिए साधन बनाने की कोशिश करता था। औरंगजेब जिस अवसर की खोज में था, वह जसवन्तसिंह के काबुल जाने पर उसको मिल गया। उसने राजकुमार पृथ्वीसिंह को बुला कर उसका सर्वनाश किया और यह सर्वनाश जसवन्तसिंह की मृत्यु का कारण बना। पृथ्वीसिंह और जसवन्तसिंह की मृत्यु के बाद मारवाड़ के राठौड़ राजवंश पर किस प्रकार व्रजपात हुआ, उसका वर्णन करने से पहले राठौड़ सरदारों के में बहुत आवश्यक मालूम होता है। जो सामन्त और सरदार औरंगजेब के विरुद्ध जसवन्तसिंह की सदा सहायता किया करते थे, उनमें नाहर राव प्रमुख था। इसका नाम अनेक ग्रंथों में नाहर खाँ लिखा गया है। यह कुम्पावत वंश का शूरवीर सरदार था और उन दिनों में इसका स्थान बहुत श्रेष्ठ समझा जाता था। उसका वास्तव में नाम मुकुन्ददास था। नाहर खाँ नाम मुगल बादशाह का रखा हुआ था। उसकी घटना इस प्रकार है। मुकुन्ददास को दरबार में आने के लिये संदेश भेजा। जो बुलाने गया था, उसका व्यवहार और बातचीत का तरीका राजपूतों के योग्य न था। इसीलिये मुकुन्ददास ने कठोर उत्तर देकर उसे वापस कर दिया। बादशाह उसका उत्तर सुन कर बहुत अप्रसन्न हुआ और जब मुकुन्ददास दरबार में आया तो उसको दण्ड देने के लिए बादशाह ने बिना किसी अस्त्र के उसको बाघ के पिंजड़े में जाने की आज्ञा दी। इस कठोर आज्ञा को सुनकर मुकुन्ददास भयभीत नहीं हुआ और मुस्कराते हुए वह बाघ के पिंजड़े की तरफ रवाना हुआ, वहाँ पहुँच कर उसने देखा कि बाघ पिंजड़े के भीतर घूम रहा है। उसके समीप पहुँचकर और उसके सामने खड़े होकर मुकुन्ददास ने कहा- “ए मुगल के बाघ, आ और जसवन्तसिंह के बाघ का सामना कर।” मुकुन्ददास की इस बात को सुनकर बाघ चौकन्ना हुआ और मुकुन्ददास की तरफ देख कर उसने गरजते हुये भयानक आवाज की। मुकुन्ददास बाघ की तरफ देख रहा था। भीषण गर्जना करने के बाद बाघ ने अपना मुख दूसरी तरफ घुमा लिया और मुकुन्ददास के सामने वह पिंजड़े में दूसरी तरफ चला गया। यह देखकर मुकुन्ददास ने ऊंचे स्वर में कहा-“यह देखो, बाघ मेरे साथ युद्ध नहीं कर सका। रण से भागे हुए शत्रु पर आक्रमण करना राजपूतों के धर्म के विरुद्ध है।" बहुत से लोग खड़े होकर यह घटना देख रहे थे। औरंगजेब के विस्मय का ठिकाना न रहा। मुकुन्ददास के सामने गरज कर बाघ का दूसरी तरफ घूम जाना औरंगजेब की समझ भी एक आश्चर्य की बात थी। वह मुकुन्ददास के साहस और शौर्य पर बहुत प्रसन्न हुआ। उसी समय उसने मुकुन्ददास का नाम नाहर खाँ अर्थात् बाघ पति रखा और उसे बहुत-सा इनाम दिया। इसी अवसर पर शाहजादा औरंगजेब ने मुकुन्ददास की तरफ देखा और हँसकर कहा- “राठौड़ तुम्हारे अद्भुत पराक्रम को मैंने अपनी आँखों से देखा। अब यह तो बताओ कि तुम्हारे कितने लड़के हैं ?" मुकुन्ददास ने औरंगजेब के प्रश्न को सुना और मुस्कुराते हुए उत्तर दिया। “बादशाह जब आपने मेरी स्त्रा से जुदा करके अटक की दूसरी तरफ पश्चिम की ओर भेज दिया था तो फिर मेरे लड़के कैसे पैदा हो सकते हैं।" 412
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