जसवंत सिंह ने औरंगजेब की सेना के आने पर असावधानी से काम न लिया होता। जसवंत सिंह अपनी अदूरदर्शिता के कारण विजय से वंचित हुआ।" 1 फतेहाबाद के इस युद्ध में राजपूतों ने वादशाह शाहजहाँ के प्रति अपनी राजभक्ति का पूरा परिचय दिया। इसमें राजस्थान के अनेक राजवंश विलकुल नष्ट हो गये। उनमें छः बूंदी के राजकुमार थे। इन राजकुमारों में छत्रसाल ने बड़ी बहादुरी के साथ युद्ध किया था। उसके अद्भुत शौर्य का वर्णन बूंदी के इतिहास में भली प्रकार किया गया है। खाफी खाँ और बर्नियर - दोनों इतिहासकार इन बातों को स्वीकार करते हैं। भट्ट कवियों ने मेवाड़ और शिवपुर के गुहिलोत और गौड़ राजपूतों का ही उल्लेख किया है। ये लोग उस युद्ध में प्रमुख थे। लेकिन वृद्ध शाहजहाँ बादशाह के सम्मान की रक्षा के लिए राजस्थानी अनेक वंशों के शूरवीर योद्धा जो इस युद्ध में आये थे, उनमें से अधिकांश मारे गये। फतेहाबाद के इस युद्ध में जिन राजपूतों ने अपनी वीरता का प्रदर्शन किया, उनमें रतलाम का रतनसिंह विशेष स्थान रखता हैं। सभी इतिहासकारों ने उसकी प्रशंसा की है। 'रासो राव रतन' रतन नामक ग्रंथ में उसकी वीरता का वर्णन विस्तार के साथ किया गया है। रतनसिंह ने राठौड़ वंश में जन्म लिया था और वह राठौड़ उदयसिंह का प्रपौत्र था । उसने इस युद्ध में भयानक रूप से शत्रुओं का संहार किया। इस युद्ध से लौटकर अपनी वची हुई सेना के साथ जसवंतसिंह अपनी राजधानी पहुँचा। उसकी रानी को जब मालूम हुआ कि वह पराजित होकर और से भागकर आया है तो उसने अपना फाटक बन्द करवा लिया और जसवंतसिंह को भीतर आने नहीं दिया। वह युद्ध में पराजित होकर भागने की अपेक्षा वहाँ पर युद्ध करते हुए मर जाना श्रेष्ठ समझती थी। इसका विस्तार से वर्णन दूसरे स्थान पर किया गया है। शाहजहाँ बादशाह ने जिस उद्देश्य से राजपूत राजाओं की सहायता ली थी, उसमें उसे कोई सफलता न मिली। उसके विरुद्ध उसके लड़कों के विद्रोह अव और भी भयानक हो उठे। उसकी इस विपद में राजपूतों के सिवा और कोई साथी न था। जिन राजपूतों ने बादशाह की सहायता करने का वचन दिया था और जिन्होंने फतेहाबाद के युद्ध में औरंगजेब की विशाल सेना के साथ युद्ध किया था, उनमें से बचे हुए राजपूतों ने एक बार फिर से बादशाह की सहायता करने का संकल्प किया और जाजाऊ नामक एक ग्राम के निकट औरंगजेब की फौज का सामना किया। परन्तु इस युद्ध से भी कोई अनुकूल परिणाम न निकला। राजपूतों की पुराजय हुई । शाहजहाँ सिंहासन से उतार कर बन्दी बना लिया गया और उसका बेटा दारा वहाँ से भाग गया। औरंगजेब ने पिता के विरुद्ध जो विद्रोह किया था, उसमें उसको पूर्ण रूप से सफलता मिली । बादशाह को बन्दी बनाकर वह सिंहासन पर बैठा। अब उसके सामने उसके भाई शुजा का प्रश्न था। इसलिये उसको दमन करने के लिये औरंगजेब ने तैयारी की। इन्हीं दिनों में उसने जसवंतसिंह को सन्देश भेजकर बुलवाया और आमेर के राजकुमार के द्वारा कहला भेजा कि हमारे विरुद्ध युद्ध अब तक जो कुछ आपने किया है, उसे क्षमा कर दिया जायेगा। परन्तु आपको शुजा के विरुद्ध युद्ध करना होगा। औरंगजेब के साथ-साथ मुगल सिंहासन का अधिकार प्राप्त करने के लिये शाहजहाँ के विरुद्ध शुजा ने भी विद्रोह किया था। बादशाह के बन्दी हो जाने पर और सिंहासन पर हार्नियर और खाफी खाँ-दोनों ही इस बात को स्वीकार करते हैं कि जसवंतसिंह के साथ सेना आयी थी, उसके सेनापति कासिमखाँ के औरंगजेब से मिल जाने के कारण जसवन्त सिंह की पराजय हुई। 1. जो मुगल 406
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