फिर भी उसने अमरसिंह को अपने यहाँ आश्रय दिया और मुगल सेना में उसको एक अधिकारी के पद पर नियुक्त कर दिया। अमरसिंह पराक्रमी और युद्ध में कुशल था। इसलिये थोड़े ही दिनों में वादशाह के सामने ऐसे अवसर आये, जिनसे उसको अमर की योग्यता का परिचय मिला । उसने प्रसन्न होकर अमर को राव की उपाधि दी । तीन हजार सेना के ऊपर उसको मनसव वना दिया और नागौर का जिला उस अधिकार में दे दिया। अमर को राज्याधिकार से वंचित करने के चौथे वर्ष में, जैसा कि ऊपर लिखा जा चुका है, गजसिंह युद्ध में मारा गया और उसके बाद यशवन्तसिंह उसके सिंहासन पर बैठा। आरम्भ में वादशाह उससे प्रसन्न हुआ था। अमरसिंह मुगल वादशाह के यहाँ एक जागीर का अधिकारी हो गया परन्तु उसके स्वभाव और चरित्र में ऐसी निर्वलता थी, जिसके कारण अधिक समय तक वह वादशाह को प्रसन्न न रख सका। कर्त्तव्य पालन और उत्तरदायित्व का उसके जीवन में भयानक अभाव था। अमरसिंह शिकार खेलने का बहुत शौकीन था। अपनी इसी आदत के कारण एक वार वह मुगल दरवार में पन्द्रह दिनों तक बरावर अनुपस्थित रहा। उसका यह अपराध था। जिसका करते हुए वादशाह शाहजहाँ ने उसको जुर्माने की धमकी दी। परन्तु अमर पर इसका कोई प्रभाव न पड़ा । उसने स्वाभिमान के साथ उत्तर देते हुए कहा: “मैं केवल शिकार के लिये गया था और इसीलिये दरवार में मैं नहीं आ सका।" इसके बाद उसने अपनी तलवार को स्पर्श करते हुए कहा:- “जुर्माना अदा करने के लिये मेरी यह तलवार ही सम्पत्ति है।" अमर का यह उत्तर शिष्टाचार के विरुद्ध था। वादशाह ने उसकी अशिष्टता का अनुभव किया और उस पर जुर्माना कर दिया, जिसको वसूल करने के लिये वख्शी सलावत खाँ को आदेश दिया गया।2 उस जुर्माने को वसूल करने के लिये सलावत खाँ अमर के पास गया। अमर ने जुर्माना देने से इनकार कर दिया। सलावत खाँ ने बादशाह के पास पहुँच कर बताया कि अमर जुर्माना देने से इनकार कर रहा है। यह सुनकर बादशाहु ने अमर को बुलाया। अमर ने आम खास में पहुँचकर वादशाह से भेंट की। सलावत खाँ भी वहाँ पर मौजूद था। उस समय वादशाह ने जो कुछ कहा, उससे अमर ने अपना तिरस्कार अनुभव किया। उसकी समझ में यह भी आया कि मेरे इस अपमान का कारण सलावत खाँ वख्शी है। 1. अमर अपने क्रोध को रोक न सका । उसने तेजी के साथ सलावत खाँ पर आक्रमण किया और अपनी तलवार से उसने उसको घायल कर दिया। इसके बाद वह बादशाह की तरफ झपटा। बादशाह भयभीत होकर सिंहासन छोड़कर भागा और महल के भीतर चला गया। अमर के इस आक्रमण से वादशाह का दरवार आतंकित हो उठा। अमर उस समय एक उन्मादी की तरह सबके सामने मौजूद था और वह अपने कर्तव्य का ज्ञान भूल गया कुछ लेखकों ने अमरसिंह के उस प्रकार राज्य से निकाले जाने की घटना का उल्लेख दूसरे ढंग से किया । उनका कहना है कि गजसिंह की अनेक रानियाँ थीं । जसवन्तसिंह की माँ दूसरी थी और अमरसिंह की दूसरी ! जसवन्तसिंह की माँ के कहने पर अमरसिंह को मुगल बादशाह के यहाँ फौज में एक अधिकारी वनवा दिया था और ऐसी व्यवस्था कर दी थी जिससे वह राज्य से अलग रहे । वादशाह की तरफ से अमर को एक जागीर मिली थी। वहीं पर उसकी माता और स्त्रियों को भी भेज दिया गया था। यह सलावत खाँ वख्शी कहलाता था। उसका कार्य केवल वेतन वाँटना ही नहीं था। जैसा कि उसके पद से जाहिर होता है । वल्कि मुआयना करना और हिसाव की जाँच करना भी उसके अधिकार का काम था। वह वादशाह को तरफ से वसूलयावी का काम भी करता था। उसका स्थान मुगल कर्मचारियों में सम्मानपूर्ण था। उसके अधिकार में बहुत से कर्मचारी थे और उन सबके ऊपर अमरसिंह था। अमर और सलावत खाँ में पहले से ही द्वेष चला आ रहा था। इसका कारण कदाचित यह था कि अमरसिंह अपने व्यवहार में बहुत कठोर और उय था । 2. 401
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