गोविन्ददास नामक एक भाटी राजपूत मारवाड़ का विदेशी सामन्त था। वह योग्य और दूरदर्शी था। इसलिये खुर्रम प्रायः उसके साथ परामर्श किया करता था। इन दिनों में उसने उससे सहायता करने के लिये कहा। परन्तु भाटी सरदार के ऊपर उसका कोई प्रभाव न पड़ा। इसके फलस्वरूप खुर्रम उससे नाराज हो गया और उसको इसका बदला देने के लिये किशनसिंह नाम के एक राजपूत को उसने नियुक्त किया। किशनसिंह ने अवसर पाकर उसको जान से मार डाला। गजसिंह के ह्रदय को इस दुर्घटना से बहुत आघात पहुँचा। खुर्रम के इस आचरण से उसको घृणा हो गयी और वह दक्षिण को छोड़कर अपने राज्य को चला गया। इसके थोड़े दिनों के बाद वादशाह जहाँगीर के साथ खुर्रम का विद्रोह बढ़ गया। इसीलिये उसने वादशाह को सिंहासन से उतार कर स्वयं वैठने का प्रयास किया। शहजादा खुर्रम ने जहाँगीर के विरुद्ध सैनिक आक्रमण की तैयारी की। उसकी वह चेष्टा जहाँगीर को मालूम हो गयी । इसलिये उसने राजपूत नरेशों से सहायता लेने का निर्णय लिया। उसका सन्देश पाकर मारवाड़, आमेर, कोटा, वृंदी के राजा अपनी सेनाओं के साथ वादशाह की सहायता के लिये आ गये। शहजादा खुर्रम भी अपनी सैनिक तैयारी कर चुका था। इन्हीं दिनों में बादशाह को समाचार मिला कि अपनी फौज के साथ खुर्रम आ रहा है। वह भयभीत हो उठा। राठौड़ राजा गजसिंह ने उस समय बादशाह को बहुत धैर्य दिया। गजसिंह के प्रोत्साहन को सुनकर वादशाह जहाँगीर को बहुत शान्ति मिली। प्रसन्न होकर उसने गजसिंह से हाथ मिलाया और उसके हाथ का चुम्बन लिया। जो राजपूत नरेश वादशाह की सहायता करने के लिये आये थे, वे वादशाह के आदेश से अपनी सेनाओं के साथ खुर्रम के विद्रोह का दमन करने के लिए रवाना हुये। बनारस के पास खुर्रम की फौज मौजूद थी। उसको देखकर हिन्दू राजाओं की सेनायें रुक गयीं और संग्राम करने के लिय श्रेणीवद्ध होकर खड़ी हो गयीं। बादशाह की तरफ से जो सेनायें आयी थीं, उनका नेतृत्व आमेर के राजा को दिया गया। यह नेतृत्व गजसिंह को मिलना चाहिये था। फिर वादशाह जहाँगीर ने ऐसा क्यों. किया। इसका निर्णय करते हुये मारवाड़ के एक भट् ग्रन्थ में लिखा है कि उस समय बादशाह की सहायता के लिये जो राजपूत नरेश गये थे, उनमें आमेर के राजा के साथ में बड़ी सेना थी। इसका जो भी कारण रहा हो । परन्तु जहाँगीर के द्वारा नेतृत्व का अधिकार आमेर के राजा को मिलने से राजपूत नरेशों में भयानक ईर्षा पैदा हो गयी। गजसिंह ने इससे अपना अपमान अनुभव किया। उसने बादशाह के शिविर को छोड़कर और कुछ दूर जाकर अपना एक अलग शिविर कायम किया। उसने निर्णय कर लिया कि इस समय जहांगीर और खुर्रम में जो युद्ध होने जा रहा है, उसमें मैं सम्मिलित न होकर दूर से तमाशा देबूंगा। परन्तु वह ऐसा न कर सका। राजा भीमसिंह ने उसकी उदासीनता का विरोध किया और अनेक प्रकार की बातें समझाकर उसने गजसिंह को वादशाह की सहायता करने के लिये विवश किया। सीसोदिया भीमसिंह के परामर्श को सुनकर गजसिंह ने अपना निर्णय बदल दिया और वह वादशाह की सहायता के लिये तैयार हो गया। उसको ऐसा करने के लिये भीमसिंह ने सभी प्रकार विवश किया। उसकी उदासीनता का विरोध करके भीमसिंह ने साफ-साफ शब्दों में उससे कहा था। "युद्ध-क्षेत्र में आकर आप संग्राम से दूर नहीं रह सकते। यदि किसी भी कारण से आप युद्ध में वादशाह की सहायता नहीं कर सकते तो आपको खुलकर शहजादा खुर्रम के । 399
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