मतभेद उसके सिंहासन पर बैठने के सम्बन्ध में पाये जाते हैं। इसमें सही क्या है, यह नहीं कहा जा सकता। उदयसिंह जोधाराव का अयोग्य वंशज था और अपनी अयोग्यता के कारण ही उसकी स्वतंत्रता नष्ट हुई। उसमें स्वाभाविक रूप से विलासिता थी। राजपूतों में जो तेज और प्रताप प्राय: पाया जाता है, उसके जीवन में इस प्रकार के गुणों का पूर्ण रूप से अभाव था। अपनी अकर्मण्यता के कारण वह स्वाभिमान को खोकर सब कुछ कर सकता था। उसने अपनी बहन का विवाह मुगल राजघराने में करके अपने पूर्वजों के गौरव को नष्ट कर दिया। इससे प्रसन्न होकर अकवर ने मारवाड़ राज्य का अजमेर नगर अपने अधिकार में रखकर राज्य का शेष भाग उदयसिंह को लौटा दिया था। इसके अतिरिक्त उदयसिंह ने मालवा के कई नगरों का अधिकार भी वादशाह से प्राप्त कर लिया था। वह बादशाह अकवर की अधीनता में था। परन्तु उसके राज्य की आमदनी पहले से वहुत अधिक हो गयी थी। उसको मुगलों की सैनिक सहायता भी प्राप्त थी, जिससे उसने दूदा के वंशजों से समस्त भूमि लेकर अपने अधिकार में कर ली और कुछ नगर दूसरों से भी उसने छीन थे। वादशाह अकवर से उदयसिंह को बहुत-सी सुविधायें प्राप्त थीं। अकवर उसे मरुप्रदेश का राजा कहा करता था। उसके चौंतीस सन्तानें थीं। उसके द्वारा कितने ही नये वंशों की स्थापना हुई और उसके लड़कों ने गोविन्दगढ़ तथा पीसांगन आदि कई एक जागीरें कायम की थीं। कुछ जागीरें उसके राज्य की सीमा से बाहर थीं और उनके नाम संस्थापकों के नाम पर रखे गये थे। इनमें से कुछ किशनगढ़ और रतलाम में हैं। उदयसिंह का शरीर मोटा था और उसकी बुद्धि भी मोटी थी। उसे लोग मोटा राजा कहा करते थे। स्थूल शरीर के कारण वह घोड़े पर नहीं चढ़ सकता था। उसने तेरह वर्ष राज्य किया। मृत्यु से पहले उसकी एक घटना का उल्लेख मिलता है। यों तो भट्ट ग्रन्थों से पता चलता है कि राठौड़ राजकुमारों को छोटी आयु में नैतिक शिक्षा दी जाती थी और उससे प्रत्येक राजकुमार चरित्रवान बनने की चेष्टा करता था। उदयसिंह को नैतिक शिक्षा मिली थी अथवा नहीं, इसका कोई उल्लेख नहीं मिलता। उसके सत्ताईस रानियाँ थीं। उनके अतिरिक्त बुढ़ापे में उसने एक ब्राह्मण की लड़की से विवाह करने की चेष्टा की थी। उस घटना का उल्लेख इस प्रकार मिलता हैं :- 'ख्यात' नामक एक भट्ट ग्रन्थ में लिखा है कि उदयसिंह एक दिन वादशाह अकबर के दरवार से लौटकर अपने राज्य को आ रहा था। रास्ते में वीलाड़ा नामक एक ग्राम के निकट उसने एक अत्यन्त रूपवती लड़की को देखा । उदयसिंह ने उस लड़की से बातचीत की। उसे मालूम हुआ कि आयापन्थी सम्प्रदाय के किसी ब्राह्मण की वह लड़की है। इस पन्थ के ब्राह्मण लोग किसी देवी के उपासक होते हैं और तान्त्रिक विद्या पर विश्वास करते हैं। वे लोग मदिरा और मांस के द्वारा अपनी आराध्य देवी की पूजा करते हैं। उदयसिंह ने उस सुन्दरी युवती को अपने साथ लाकर विवाह करने का निश्चय किया। उदयसिंह ने उस लड़की के पिता को बुलाकर उससे अपनी अभिलाषा प्रकट की। ब्राह्मण उदयसिंह की बात को सुनकर बहुत दुःखी और लज्जित हुआ। उसने सोच डाला कि मैं अपनी लड़की को मार डालूंगा, परन्तु इस प्रकार का कलंकित कार्य न करूंगा। उसने एक वड़ा होमकुण्ड खोदकर तैयार किया और एक तलवार लेकर उसने अपनी लड़की को मार डाला। उसने उसके शरीर के कई टुकड़े किये और उनको उसने जलते हुये होमकुण्ड में डाल दिया। कुण्ड में वहुत-सी लकड़ियों के साथ घी डाला गया था। इसलिये उसमें से 394
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