सम्वत् 1572 सन् 1516 ईसवी में राजा सूजा के मर जाने पर उसका पौत्र गंगा मारवाड़ के सिंहासन पर बैठा। उसके चाचा साँगा ने उसका विरोध किया। उसने गंगा को सिंहासन से उतार कर उस पर अधिकार करने की कोशिश की। इसके फलस्वरूप मारवाड़ में एक भयानक उत्पात पैदा हो गया। मारवाड़ के राठौड़ दो भागों में विभाजित हो गये। कुछ लोग गंगा के पक्ष में थे और कुछ लोग साँगा के। साँगा ने दौलत खाँ लोदी से सहायता माँगी, जिसने कुछ दिन पहले राठौड़ों से नागौर को छीनकर अपने अधिकार में कर लिया था। उसकी सहायता से साँगा ने गंगा के साथ युद्ध करने की तैयारी की। दोनों ओर से युद्ध के बाजे बजे और भयानक मारकाट हुई। उस लड़ाई में साँगा मारा गया और दौलत खाँ लोदी पराजित होकर युद्ध से भाग गया। गंगा ने वारह वर्ष तक मारवाड़ में राज्य किया। उसके शासन में वावर और राणा संग्राम सिंह के बीच संघर्ष पैदा हुआ। वावर के आक्रमण को रोकने के लिए वावर और संग्राम सिंह के बीच संघर्ष हुआ। राणा संग्रामसिंह ने युद्ध की तैयारी की और उस समय राजस्थान के अन्यान्य राजाओं, सामन्तों और सरदारों के साथ-साथ मारवाड़ का राजा गंगा भी अपनी सेना के साथ मेवाड़ का सहायक बना। मारवाडू से जो सेना मेवाड़ की सहायता के लिए बाबर के साथ युद्ध करने गयी थी, राव गंगा का पौत्र रायमल उसका सेनापति था। वियाना के विस्तृत मैदान में वावर तथा संग्रामसिंह की सेनाओं भीषण युद्ध हुआ। राजपूतों का यह अन्तिम युद्ध था, जिसमें उन्होंने अपने राष्ट्रीय संगठन का परिचय दिया था। इस युद्ध में मारवाड़ का राजकुमार रायमल मेड़तिया के राठौड़ सरदार खैरातो और नवरल के साथ मारा गया। इसके चार वर्षों के बाद गंगा की मृत्यु हो गयी और सम्वत् 1588 सन् 1532 ईसवी में मालदेव उसके सिंहासन पर बैठा। उसके शासनकाल में मारवाड़ ने बड़ी उन्नति की थी। मेवाड़ के शक्तिशाली राणा संग्रामसिंह पर वावर विजय प्राप्त कर चुका था। लेकिन उसका कोई प्रलोभन मारवाड़ की तरफ न था। इसीलिये मालदेव को मारवाड़ की उन्नति करने का अवसर मिल गया था। दिल्ली और मारवाड़ की सीमा के कई दुर्गों पर मालदेव ने अधिकार कर लिया और मारवाड़ से दूरवर्ती ढूंढाड़ पर उसने राठौड़ों का झण्डा फहराया था। मारवाड़ की उन्नति में इस समय किसी प्रकार की रुकावट न थी। राणा संग्राम की मृत्यु और मेवाड़ राज्य का दुर्भाग्य राजस्थान के छोटे राजाओं के लिये अभिशाप हो गया और उत्तर की तरफ से मुगलों और गुजरात के बादशाहों ने आक्रमण आरम्भ कर दिये। लेकिन मालदेव को उनसे कोई आघात नहीं पहुँचा। इस अवसर पर उसने मित्र और शत्रु-दोनों से लाभ उठाया और विना किसी सन्देह के वह राजस्थान का उस समय एक श्रेष्ठ राजा बन गया। इन दिनों में मारवाड़ की परिस्थितियों की आलोचना करते हुये प्रसिद्ध मुस्लिम इतिहासकार फरिश्ता ने मालदेव को “हिन्दुस्तान का अत्यन्त शक्तिशाली राजा।" लिखा है.। मारवाड़ के सिंहासन पर बैठने के बाद उसने अपने पूर्वजों के प्राप्त किये हुये दो प्रधान नगरों नागौर और अजमेर को मुसलमानों से लेकर अपने अधिकार में कर लिया और आठ वर्षों के बाद सम्वत् 1596 में उसने सिधिलों के जालोर, सिवाना और भाद्राजुन नामक तीन नगरों को लेकर अपने राज्य में मिला लिया। वीका के वंशजों को बीकानेर से निकाल दिया। लूनी नदी के तटवर्ती जिन नगरों को सिहाजी ने अपने अधिकार में कर लिया था, उनके राजाओं ने राठौड़ों की अधीनता को ठुकरा कर अपने आपको स्वतन्त्र घोषित कर दिया था। मालदेव ने उन सवको पराजित करके फिर उन पर अधिकार कर लिया और उनको राठौड़ों की अधीनता में रहने के लिये मजबूर किया। मालदेव के प्रताप को इन दिनों में मरुप्रदेश के समस्त राजाओं ने स्वीकार 384
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