अध्याय-32 राव सीहाजी व मरुभूमि में राठौड़ वंश का विस्तार कन्नौज के पतन के अठारह वर्षों के बाद सम्वत् 1268 सन् 1212 ईसवी में राजा जयचन्द के पौत्र सियाजी और सेतराम अपने राज्य की भूमि को छोड़कर मरुप्रदेश चले गये। उनके साथ दो सौ अन्य लोग भी वहाँ गये। सिहाजी और सेतराम के कन्नौज छोड़कर मरु प्रदेश चले जाने का कारण क्या था, इस पर जो ग्रन्थ मिलते हैं, उनका मत एक नहीं है। कुछ ग्रन्थों में लिखा है कि वे धार्मिक स्थानों के दर्शन करने के लिये कन्नौज से चले गये। उनका इरादा द्वारिका जाने का था, किसी का कहना है कि कन्नौज के पतन के बाद उन्होंने अपने सुख-सौभाग्य की खोज में मरु प्रदेश की यात्रा की थी। इस प्रकार के मतों में यद्यपि निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता कि सही बात क्या थी। परन्तु अनुमान के आधार पर सत्य की खोज की जाती है । सिहाजी राजा जयचन्द का पौत्र था। उसने स्वाभिमानी राठौड़ वंश में जन्म लिया था। शहाबुद्दीन गौरी के आक्रमण करने पर जयचन्द की मृत्यु हुई और उसके पूर्वजों के राज्य का पतन हुआ, उस समय सिहाजी की तरह किसी भी स्वाभिमानी मनुष्य का राज्य छोड़कर चला जाना ही उचित था। इस दशा में सिहाजी ने कन्नौज छोड़कर अच्छा ही किया । यदि उसने ऐसा न किया होता तो कन्नौज के पतन के बाद भारत के मरुप्रदेश में जिस प्रकार राठौड़ वंश का उत्थान और विस्तार हुआ, वह होता अथवा नहीं, यह नहीं कहा जा सकता। मरुप्रदेश में पहुँचकर सिहाजी ने जिस विस्तृत स्थान पर अपना आधिपत्य और प्रभाव कायम किया, वह जमुना, सिन्ध और गारा नदी तथा अरावली पहाड़ की ऊंची चोटियों से घिरा हुआ था। वहाँ पर विभिन्न जाति के लोग उन दिनों में रहा करते थे। कछवाहों ने उस समय तक कोई प्रतिष्ठा नहीं पायी थी। उनके वंश का राजा पजोन कन्नौज के में मुसलमानों के द्वारा मारा गया था। उसका बेटा मलैसी सिंहासन पर बैठा था। अजमेर, आमेर, साँभर और दूसरे चौहान राज्य मुसलमानों के अधिकार में चले गये थे। परन्तु अरावली के अनेक दुर्ग अब भी राजपूतों के अधिकार में थे। मुसलमानों के आक्रमण के बाद भी नाडोल नगर अपनी स्वाधीनता के साथ सुरक्षित था और बीसलदेव का एक वंशधर नाडोल में शासन करता था। मन्डोर नगर में अब भी परिहारों का गौरव प्रतिष्ठा पा रहा था। इंदाकुल परिहारों की एक शाखा है। मानसिंह इसी कुल में उत्पन्न हुआ था। 373
पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/३२७
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।