युद्ध करके अपनी शक्तियों का क्षय कर चुका था। गौरी के आक्रमण करने पर जयचन्द के सामने एक भयानक विपदा पैदा हो गयी। किसी प्रकार अपनी सेना लेकर वह युद्ध-क्षेत्र में पहुँचा और उसने शहाबुद्दीन गौरी को विजयी सेना का सामना किया। उस युद्ध में अपनी पराजय को देखकर जयचन्द ने गंगा को पार कर भाग जाने की चेष्टा की। परन्तु उसका दुर्भाग्य उसके सिर पर मँडरा रहा था। गंगा के अगाध जल में जयचन्द की नाव डूब गयी और वहीं पर उसकी मृत्यु हो गयी। इस प्रकार राजा जयचन्द का अन्त और कन्नौज राज्य का पतन सम्वत् 1249 सन् 1193 ईसवी में हुआ। इस पतन के बाद कन्नौज राज्य की अधीनता में जो छत्तीस राजा शासन करते थे और आवश्यकता पड़ने पर राठौड़ों के झण्डे के नीच एकत्रित होते थे, वे सभी कन्नौज के राज्य की अधीनता से पृथक हो गये। राठौड़ों का विशाल राज्य छिन्न-भिन्न हो गया। लेकिन राठौड़ वंश का अन्त नहीं हुआ। कन्नौज के पतन के बाद नयनपाल के वंशजों ने मरु प्रदेश में जाकर अपना अस्तित्व कायम किया। इस वंश की इकतीसवीं पीढ़ी में मानसिंह उत्पन्न हुआ, वह महान् प्रतापी हुआ। अपने शासन काल में उसने राठौड़ वंश के उस गौरव की फिर से प्रतिष्ठा की, जिसको नयनपाल ने कन्नौज जीतकर उन्नत बनाया था। 372
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