संघर्ष का वर्णन कविचन्द ने अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ में बड़े विस्तार के साथ किया है । उस ग्रन्थ में लिखा है कि पृथ्वीराज के द्वारा संयोगिता का अपहरण होने पर दिल्ली और कन्नौज की सेनाओं में पाँच दिनों तक भीषण युद्ध हुआ। इस संग्राम में भारत के प्रसिद्ध वीरों के मारे जाने पर यह देश निर्वल पड़ गया। इस अवसर का लाभ उठाकर शहाबुद्दीन गौरी ने भारत पर आक्रमण किया। इस युद्ध के परिणाम स्वरूप भारत की स्वाधीनता नष्ट हो गयी। महमूद के आने के पहले से और इस समय तक भारत का शासन चार प्रधान राज्यों में विभाजित था। (1) दिल्ली में तोमर और चौहानों का राज्य, (2) कन्नौज में राठौड़ों का राज्य (3) मेवाड़ में गहिलोतों का राज्य (4) अनहिलवाड़ा पट्टन में चावड़ा और सोलंकियों का राज्य। उन दिनों में सम्पूर्ण भारतवर्ष इन चार राज्यों में विभाजित था और उनमें से प्रत्येक राजा की अधीनता में बहुत से छोटे-छोटे राजा शासन करते थे। बड़े राजा की अधीनता में जो छोटे-छोटे राज्य थे, उनमें जागीरदारी प्रथा चलती थी। दिल्ली और कन्नौज दोनों स्वतन्त्र राज्य थे और दोनों एक, दूसरे से बहुत दूर न थे। इन दोनों राज्यों के बीच काली नदी बहती थी। यूनानी लोगों ने इस नदी का नाम कालिन्दी लिखा है । काली नदी से सिन्धु नदी के पश्चिमी किनारे तक और हिमालय पहाड़ के नीचे से मारवाड़ और अरावली पहाड़ तक दिल्ली का विशाल राज्य फैला हुआ था। इस राज्य में चौहानों के एक सौ आठ सूवे थे। उन पर बहुत से अधीन राजा शासन करते थे। इस विशाल राज्य का स्वामी अनंगपाल तोमर था। पृथ्वीराज चौहान ने दिल्ली का राज्य अनंगपाल से पाया था। कन्नौज़ का राज्य उत्तर में हिमालय पर्वत, पूर्व में काशी और चम्बल नदी को पार करके बुन्देलखण्ड तक फैला था। दक्षिण में यह राज्य मेवाड़ की उत्तरी सीमा तक पहुँच गया था और पश्चिम में उसकी सीमा अनहिलवाड़ा तक थी। भट्ट ग्रन्थों को पढ़ने से मालूम होता है कि इस देश के राजा सदा एक दूसरे के साथ लड़ते रहे हैं। गुहिलोतों और चौहानों में मित्रता और चौहानों तथा राठौड़ों में शत्रुता का भाव हमेशा से चला आ रहा है। राठौड़ों और तोमर राजपूतों की शत्रुता से इस देश को वहुत क्षति पहुँची है। वैवाहिक सम्बन्धों के कारण उनके कुछ संघर्ष कुछ दिनों के लिये शान्त हो गये थे, परन्तु उनके आन्तरिक वैमनस्य कभी मिट नहीं सके। यह फूट इस देश के विनाश की सदा कारण रही है। इस बात का प्रमाण यहाँ के प्राचीन इतिहास देते हैं। महमूद गजनवी के पश्चात् यदि किसी यात्री ने यूरोप के बाद गजनी होकर दिल्ली, कन्नौज और अनहिलवाड़ा की यात्रा की होती तो वह निश्चित रूप से राजपूतों की सभ्यता और योग्यता को स्वीकार करता । उसे स्वीकार करना पड़ता कि राजपूत लोग जीवन की अन्य बातों में किसी से कम न थे। पश्चिमी देशों की भाँति इस देश के राज्यों में भी शासन की व्यवस्था जागीरदारी प्रथा के द्वारा होती थी। लेकिन उनकी आपस की फूट ने उन्हें आपस में लड़ाकर निर्वल बना दिया था। बाहरी आक्रमणकारियों ने उनकी इस निर्वलता का सदा लाभ उठाया और शहाबुद्दीन गौरी ने दिल्ली के सम्राट पृथ्वीराज चौहान के साथ युद्ध करके उसको पराजित किया। इस पराजय का कारण राजपूत राजाओं की फूट थी। शहाबुद्दीन गौरी ने पृथ्वीराज को जीतकर दिल्ली पर अधिकार किया, उसके बाद उसने कन्नौज के राजा जयचन्द पर आक्रमण किया। जयचन्द इसके पहले पृथ्वीराज के साथ पृथ्वीराज चौहान अनंगपाल की लड़की का बेटा था । अनंगपाल पृथ्वीराज को अपना उत्तराधिकारी बनाकर 1. 371
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