पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/३१७

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है। दीवानखाने के द्वार पर पहुँचते ही हम लोगों के आने की सूचना वहीं से खड़े हुए भालेदार ने दी। उसी समय राणा ने सिंहासन से उठकर हमारी तरफ कदम बढ़ाये । राणा के उठते ही सरदारों ने भी खड़े होकर हम लोगों का स्वागत किया। यहाँ की सजावट किसी . प्रकार दिल्ली दरबार से कम न थी। सिंहासन के सामने ही हम लोगों को स्थान मिला। यह वही स्थान था, जो इस दरबार में किसी पेशवा को दिया गया था। इस दरबार का स्थान सूर्य महल के नाम से प्रसिद्ध है । राणा के बैठने का सिंहासन बहुत ही कीमती और सुदृढ़ बना हुआ है । दरबार के प्रधान सोलह सरदार राणा के दाहिने और बांये बैठते हैं। उनके नीचे एक तरफ राजकुमार जवानसिंह के बैठने का स्थान है। राणा के सामने राज्य के मन्त्री का स्थान है। राणा के पीछे की तरफ राज्य के प्रधान अधिकारी और विश्वासी लोग बैठते हैं। हम सब के पहुंचने पर राणा को जो प्रसन्नता हो रही थी, उसे हम लोगों ने सहज ही अनुभव किया। राणा ने कुछ देर तक अपने संकटों की बातें कहीं। उनकी बातों को सुनकर मैं बहुत प्रभावित हुआ और मन ही मन राणा की सहायता करने का संकल्प किया। राणा की बातों को सुनकर मैंने कहा - "हमारे गवर्नर-जनरल को आपके वंश की श्रेष्ठता मालूम है। आपके संकटों के साथ हम सब को पूरी सहानुभूति है। हमारे गवर्नर जनरल का इरादा है कि आपके संकटों को प्रत्येक अवस्था में दूर किया जाये और हम लोग आपकी सहायता करके गौरव की वृद्धि करें। बातें हो जाने के बाद राणा ने हमको और हमारे साथ के लोगों को भेंट में बहुमूल्य चीजें दीं। हमें राणा ने एक सजा हुआ हाथी, एक श्रेष्ठ घोड़ा, जवाहरात जड़े हुए आभूषण, मोतियों की एक माला, एक कीमती शाल और कुछ अन्य वस्त्र दिये। इसके बाद राणा से विदा होकर हम लोग अपने ठहरने के स्थान पर चले आये । हमारे लौटकर आ जाने के बाद राणा के साथ राज्य के मन्त्री और सरदार लोग हम लोगों से मिलने के लिए हमारे स्थान पर आये। मैं अपने स्थान से चलकर कुछ दूरी पर स्वागत के लिए गया और राणा के सम्मान में मैंने सेना से सलामी करायी। राणा के बैठने के लिये मैंने पहले से ही एक ऊँचे स्थान की व्यवस्था की थी। उसी पर राणा को मैंने बिठाया। राणा ने उस समय बहुत सी बातें की । अन्त में मैंने राणा को एक हाथी, दो घोड़े, उसकी कीमती झूलें और कुछ चीजें भेंट में दी। इनके सिवा मैंने बहुमूल्य रत्न भी राणा को भेंट में दिये । राजकुमार उमराव सिंह बीमार होने के कारण राणा के साथ नहीं आया था। मैंने उसके लिए एक उत्तम घोड़ा और कुछ कीमती चीजें भेंट में देते हुए राणा के सामने रखी । राणा का बेटा जवानसिंह राणा के साथ आया था। मैंने उसको भेंट में एक घोड़ा और कुछ कीमती सामान दिया। जो कर्मचारी राणा के साथ आये थे, मैंने उनको भी भेंट में रुपये दिये। उस समय राणा के सम्मान में मैंने बीस हजार रुपये खर्च किये। राणा की उदारता और महानता में कोई अन्तर नहीं है। राज्य के मंत्रियों में किशनदास बहुत समझदार और विचारशील था। उसने राज्य का सदा हित करना अपना कर्त्तव्य समझा था। परन्तु उस समय उसकी मृत्यु हो चुकी थी। राज्य के पतन के दिनों में बहुत से सरदार राणा के विरोधी हो गये थे। परन्तु अंग्रेजों के साथ संधि होने के कुछ दिन बाद विरोधी सरदारों में परिवर्तन हुआ और उनमें से कितने ही आकर राणा से मिल गये। अंग्रेजों की सहायता से अनेक कार्य राज्य की उन्नति के लिए किये गये। मराठों के अत्याचारों से राज्य के जो लोग भाग कर चले गये थे, उनको वापस बुलाने का राणा ने इरादा किया। परन्तु इसमें दो बाधायें भयानक थीं। एक तो यह कि जो लोग राज्य छोड़कर चले गये थे, वे दूसरे राज्यों में जाकर बस गये थे और उन्होंने अपने सम्बन्ध वहाँ के लोगों 317