इसी समय विष का दूसरा प्याला तैयार किया गया। राजकुमारी ने उसे लेकर बिना किसी भय के उसको पी लिया और प्याला खाली कर दिया। प्याला हाथ में लेते हुए उसके शरीर का एक भी रोम काँपा नहीं। उसके मुख पर किसी प्रकार की घबराहट पैदा नहीं हुई। राजकुमारी के आस-पास एक अपूर्व दृश्य था। दो बार विष का प्याला कृष्णकुमारी पर असफल हो चुका था। तीसरी बार उस विष को अधिक भयानक बनाया गया। अफीम के साथ कुसुम्बे को मिलाकर विष तैयार किया गया। जिस समय वह प्याले में भरा जा रहा था, राजकुमारी समझ गयी कि यह मेरे जीवन का अंतिम प्याला है। प्याला सामने आते ही मधुर मुस्कान के साथ उसने अपने हाथ में उसे ले लिया और अपने आस-पास के दृश्य पर एक बार दृष्टिपात करते हुए-मानो वह संसार से विदा हो रही थी- प्याले को उसने मुख से लगाया और पीकर उसने फिर किसी की तरफ नहीं देखा । राजकुमारी लेट गयी और सदा के लिए सो कर वह संसार से विदा हो गयी ! कृष्णकुमारी की इस प्रकार की मृत्यु के बाद उसकी माता अधिक दिनों तक जीवित नहीं रही। अपनी बेटी के शोक में उसने भोजन छोड़ दिया और उन सभी बातों का परित्याग कर दिया, जो मनुष्य को जिन्दा रखती है। इस दशा में कुछ ही दिनों के बाद उसकी मृत्यु हो गयी। अमीर खाँ ने जिस समय अजितसिंह से यह समाचार सुना, उसने उसको बहुत धिक्कारा और कहा-"क्या यह कार्य शूरवीर राजपूतों के योग्य था? सीसोदिया वंश में इस प्रकार का लज्जापूर्ण कार्य कभी नहीं हुआ था। इस समाचार को मुझसे कहते हुए तुमको लज्जा नहीं मालूम हुई?" राजकुमारी की मृत्यु के चार दिन बाद शक्तावत संग्रामसिंह राजधानी में आया। वह अजितसिंह का विरोधी था। संग्रामसिंह स्वभाव से ही बहादुर और स्वाभिमानी था । उसको न तो अपने राजा का भय था और न शत्रुओं की तलवारों का। निर्भीकता के साथ वह उस स्थान पर पहुंचा, जहाँ पर अजितसिंह बैठा हुआ था। उसको देखते ही आवेश में आकर उसने कहा-"नीच सीसोदिया वंश को कलंकित किसने किया? राजस्थान के जिस वंश ने अपनी पवित्रता को बनाये रखने के लिए भयानक संकटों का सामना करते हुए सैंकड़ों वर्ष बिताये थे, उसके माथे पर यह कलंक का टीका किसने लगाया? राजकुमारी का वध करके आज इस वंश ने जो अपराध किया है, उसके जीवन से इसको कभी मिटाया नहीं जा सकता। अपनी इस कायरता के कारण यह वंश भविष्य में कभी भी अपना मस्तक ऊँचा न कर सकेगा। यह ऐसा पाप हुआ है, जिसकी समानता के लिए दूसरा कोई उदाहरण नहीं दिया जा सकता। इस वंश के मिटने का समय अब समीप आ गया है। बप्पा रावल के वंश की सम्पूर्ण कीर्ति इस पाप के साथ-साथ मिट चुकी है। यह अपराध इस वंश के सर्वनाश का सूचक है !” क्रोध के आवेश में जिस समय संग्रामसिंह इस प्रकार की बातें कह रहा था, राणा अपने दोनों हाथों की हथेलियाँ मुख पर रखे हुए चुपचाप सुन रहा था। संग्रामसिंह ने फिर कहा-"नराधम, तेरा यह कार्य सीसोदिया वंश के माथे पर अटल कलंक है। इससे सम्पूर्ण राजपूत जाति का नाम तेरी मृत्यु के साथ-साथ मिट जायेगा। क्या सोचकर तूने राणा से यह अधर्म कराया, किस भय ने ऐसा करने के लिए तुझे विवश किया था? जिस शत्रु का भय था; उसका आक्रमण होने क्यों नहीं दिया? अच्छा होता, यदि इस प्रकार के किसी आक्रमण से इस वंश के एक-एक बच्चे का सर्वनाश हुआ होता और इतिहास के पन्नों में हमारे पूर्वज बप्पा रावल का नाम अमिट अक्षरों में लिखा जाता । तूने इस वंश के लोगों को राजपूतों की मौत मरने क्यों नहीं दिया-उस प्रकार, जैसे हमारे पूर्वज अब तक मरे हैं? उन सबने संकटों का सामना करके अपने प्राणों का बलिदान देकर अपनी श्रेष्ठता और 311
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