देवगढ़ और अमेर पर आक्रमण करके वहाँ के राजा को कर देने के लिये मजबूर किया। उसने कारवीतल और लुसानी के दुर्गों पर अधिकार कर लिया। लुसानी के रहने वालों ने उसके अत्याचारों का मुकावला किया । इसलिए सेनापति थामस ने उस नगर का भयानक रूप से विनाश-किया। इस प्रकार के अत्याचार नाना गणेशपंत अम्वा जी की सहायता के बल पर कर रहा था। सिंधिया को जब अम्बाजी के द्वारा होने वाले इन अत्याचारों के समाचार मिले तो उसने मेवाड़ राज्य से उसको अलग करके उसके स्थान पर लखवादादा को नियुक्त किया।1 अम्बाजी के पदच्युत होने पर नाना गणेशपंत की सभी आशायें मिट्टी में मिल गयीं। उसने जितने स्थानों पर अधिकार कर लिया था, उन सबको उसने लौटा दिया। सिंधिया के इस कार्य का लाभ मेवाड़ को न हुआ बल्कि उसकी प्रतिष्ठा को आघात पहुँचा। इसलिए कि उस समय से सिंधिया मेवाड़ को अपना एक अधीन राज्य समझने लगा। लखवादादा सिंधिया के आदेश से मेवाड़ का अधिकारी मुकर्रर हुआ। वह एक वड़ी सेना के साथ मेवाड़ की तरफ चला। अग्रजी मेहता फिर से मेवाड़ के मंत्री बनाया गया और चूंडावत लोगों ने अपने पहले के पदों को पाकर राणा के प्रति अपना सम्मान प्रकट किया। यह पहले लिखा जा चुका है कि लखवादादा ने अपना इलाका जिहाजपुर शाहपुरा के राजा को दे दिया था। लखवादादा ने उससे जिहाजपुर वापस ले लिया। उस इलाके में छत्तीस ग्राम थे। इन ग्रामों को गिरवी रखकर लखवादादा ने छ: लाख रुपये एकत्रित करने की चेष्टा की। ये रकम जालिमसिंह ने अदा की और जिहाजपुर इलाके के सभी ग्रामों पर उसने अधिकार कर लिया। लखवादादा की रुपये की भूख अव बढ़ गयी थी। छः लाख रुपये पाने के बाद भी उसुकी भूख मिटी नहीं। उसने चौवीस लाख रुपये की एक दूसरी माँग की। उसकी यह माँग राणा से थी और उसके न दे सकने पर उसने राज्य से इस लम्बी रकम को वसूल करने का निश्चय किया। इस समय वह पहले का लखवादादा न था। शक्तियों के बढ़ जाने पर मनुष्य, मनुष्य नहीं रह जाता। लखवादादा के अधिकार में इस समय मराठों की एक बड़ी सेना थी। मेवाड़ राज्य से चौवीस लाख रुपये वसूल करने के लिए उसने अपनी सेना को आज्ञा दी। मराठे सैनिक राज्य में चारों तरफ दौड़ पड़े और वहाँ पर जैसे जो रकम मिली, उसे वसूल करके चौवीस लाख रुपये जमा किये गये। इन दिनों में लखवादादा की शक्तियाँ महान हो रही थीं। उसके पास अब रुपये का कोई अभाव न था। उसने यशवंतराव भाऊ नामक मराठा को अपनी तरफ से मेवाड़ राज्य का अधिकारी बनाया और उसको मेवाड़ में छोड़कर जयपुर की तरफ चला गया। भाऊ ने मेवाड़ राज्य का प्रबंध अपने अनुसार शुरू किया। अग्रजी मेहता राणा का मन्त्री था और मौजीराम उपमंत्री के स्थान पर काम रहा था। राज्य की दुरवस्था देखकर दोनों ही बहुत चिंतित हो रहे थे। इन दिनों में यूरोप के कई दल भारत में आ गये थे। उनकी शासन प्रणाली का प्रभाव इस देश के राजाओं पर पड़ रहा था । मन्त्री अग्रजी मेहता के मनोभावों पर भी उनका असर पड़ा। उसने भी मेवाड़ राज्य में उनका अनुकरण करने की चेष्टा की और उसने यह भी सोच डाला कि उनकी सहायता लेकर वालोवा तातिया और बकसी नारायण राव दोनों ही सिंधिया के मंत्री थे और दोनों ही शैनवी ब्राह्मण मराठा , थे। लखवादादा के साथ उनका वंशगत समवन्ध था। इसका लाभ लखवादादा को मिला और इसलिए वह सिंधिया के द्वारा अम्बाजी के स्थान पर नियुक्त किया गया। 1. 300
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