बालाराव को धन देकर उसकी सहायता करने का वादा किया था इसलिए बालाराव युद्ध से इंकार कर रहा था। अम्बाजी ने नाना गणेशपंत की सहायता करने के लिये अपनी एक सेना देकर सदरलैंड नामक एक अंग्रेज को भेजा। लेकिन नानापंत को इस सेना की सहायता न मिल सकी। उस दशा में उसने जार्ज थॉमस नामक एक अंग्रेज सेनापति से सहायता माँगी और उसके बाद नाना गणेशपंत युद्ध के लिए तैयार हो गया। दोनों ओर की सेनाएं बनास नदी के दक्षिण की तरफ युद्ध के लिए खड़ी होकर समय की प्रतीक्षा करने लगी। इसको उस अवस्था में बरसात के छः सप्ताह बीत गये। राणा और उसके सरदार अभी तक लखवादादा के पक्ष में थे। लेकिन अब वे दोनों के पक्ष की बातें करने लगे। इसलिए कि दोनों दलों की तरफ से उनको इन दिनों में सम्मान मिल रहा था। बनास नदी के किनारे पर दोनों सेनाएं युद्ध के लिये तैयार थीं और दोनों की शक्तियाँ इस समय लगभग बराबर थीं। नाना गणेशपंत इस समय कोई बाहरी सेना की सुहायता प्राप्त न कर सके इसलिए खींची का राजा दुर्जनसाल मेवाड़ के सरदारों और पाँच सौ सवारों को लिए नानापंत के शिविर के इधर-उधर घूमने लगा ! परन्तु उसको अपने उद्देश्य में सफलता न मिली और जार्ज थामस शाहपुरा से एक सेना के साथ गणेशपंत की छावनी में पहुँच गया और कुछ समय के बाद लखवादादा को घेरने के उद्देश्य से वह अपनी छावनी से निकला । इस युद्ध के शुरू होने के पहले ही वहाँ पर एक भयानक आँधी आयी और बहुत तेजी के साथ वृष्टि हुई। इस भीषण आँधी और वृष्टि के कारण थामस की सेना अस्त व्यस्त हो गयी, उसके रहने का स्थान शाहपुरा कई स्थानों पर नष्ट हो गया और वहाँ के दुर्ग का फाटक टूटकर चकनाचूर हो गया ।। शत्रु-सेना के तितर-बितर हो जाने पर लखवादादा ने सवाड़ के सरदारों की सहायता से शत्रु सेना का पीछा किया और युद्ध की बहुत-सी सामग्री के साथ उसकी पन्द्रह तोपों पर अधिकार कर लिया ।आज के पहले शाहपुरा के राजा ने सेना और रसद से गणेशपंत की सहायता की थी। परन्तु इस अवसर पर उसने उसकी किसी प्रकार सहायता न की। इस दशा में नाना गणेशपंत सिंगनोर की तरफ भागा। इस भागने की अवस्था में उसकी सेना की बड़ी हानि हुई। उसके बहुत से सैनिक मारे गये। मेवाड़ के सरदारों ने नाना गणेशपंत को भयानक क्षति पहुँचायी। इसलिए नाना गणेशपंत मेवाड़ के सरदारों से बहुत अप्रसन्न हुआ और उनसे बदला लेने का निश्चय किया। बरसात बीत चुकी थी। रास्ते साफ हो चुके थे। गणेशपंत लखवादादा से युद्ध करने के लिए तैयारी करने लगा। इन दिनों में उसके क्रोध का ठिकाना न था। उसने चारों तरफ लूट-मार और मनुष्यों का वध आरम्भ किया। अरावली पहाड़ की तलहटी में चूँण्डावत लोगों की जो जागीरें थीं उनको घेरकर गणेशपंत ने भयानक अत्याचार आरम्भ किया। कितने ही गांवों में आग लगा दी गई, जिससे सैकड़ों और सहस्रों घर जल कर राख हो गये। उनमें रहने वाले मनुष्य कीड़ों और पंतगों की तरह मरे। भीषण रूप से लोग लूटे गये। जो लोग अपने घर-द्वार छोड़कर भागे, वे रास्ते में घेरकर मारे गये। बड़ी निर्दयता के साथ कर लगाया गया और लोगों से रुपये वसूल किये गये। जार्ज थामस ने सम्वत् 1956 सन् 1800 ईसवी में यह घटना घटी थी। लखवादादा ने जिहाजपुर का अपना इलाका शाहपुरा के राजा को दे दिया था इसके संबंध में पुराने उल्लेखों से पता चलता है कि राणा ने छिपे तौर पर के राजा से दो लाख रुपये लेकर अपनी मंजूरी दी थी। इसके लिए लखवादादा और मेवाड़ के सरदार लोग वहुत नाराज हुए। 1. शाहपुरा 1 299
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