राणा को पाँच लाख रुपये कर्ज लेने पड़े। उसके दूसरे वर्ष राजमाता की मृत्यु हो गयी। राणा के बालक पैदा हुआ और उदयसागर का बाँध टूट जाने से जल की वृद्धि से मेवाड़ की बहुत हानि हुई । राज्य की बहुत सी खेती नष्ट हो गयी। सिंधिया ने सम्वत् 1851 में अम्बाजी को मेवाड़ राज्य का अधिकारी बनाया और अम्बाजी ने अपनी तरफ से मेवाड़ का प्रबंध करने के लिए गणेशपंत नामक मराठा को मुकर्रर किया। सवाई और श्री जी मेहता नाम के राणा के दो कर्मचारी थे, जो राज्य में अधिकारी माने गये। वे दोनों गणेशपंत के साथ मिल गये और तीनों ने प्रजा के साथ अत्याचार आरंभ किया। अम्बाजी को जब यह मालूम हुआ तो उसने गणेशपंत को हटा कर उसके स्थान पर रायचन्द को मुकर्रर किया। रायचन्द राज्य में कुछ प्रवन्ध न कर सका । प्रजा से लेकर राणा के कर्मचारियों तक किसी के ऊपर उसका प्रभाव न पड़ा। लोगों में शासन का जो भय था, वह उस समय बिल्कुल ढीला पड़ गया। इसका परिणाम यह हुआ कि राज्य में फिर से उपद्रव और उत्पात आरम्भ हो गये। राज्य की शांति मिटने लगी और दुराचारियों ने प्रजा को लूटना आरम्भ कर दिया। राज्य की यह दुरावस्था देखकर मराठों, रुहेलों और दूसरे लोगों के दल मेवाड़-राज्य में घूमने लगे। उनको रोकने के लिए राज्य की तरफ से कोई व्यवस्था न थी। इसलिये उन दलों ने निर्भीक होकर राणा की प्रजा को लूटना शुरू कर दिया। चॅण्डावत लोग इधर बहुत दिनों से चुपचाप थे। अवसर पाकर वे सिंधिया से मिल गये और मेवाड़-राज्य में लूटमार करके भयानक अत्याचार करने लगे। राणा को राज्य की ये सभी बातें मालूम थीं। कुछ दिनों तक चुपचाप रह कर उसने चूँण्डावत लोगों के अत्याचार लगातार देखे और अन्त में विवश होकर उसने आदेश दिया कि चूण्डावत लोगों को राज्य की तरफ से जो जागीरें दी गयी हैं, वे जब्त कर ली जाये। राणा का यह आदेश मिलने पर राज्य की सेना ने कोरावाड को अपने कब्जे में कर लिया और सलुम्बर के दुर्ग पर आक्रमण करके उसके विध्वंस के लिए तोपें लगा दी। सिंधी लोग उन दिनों में वहीं रहते थे। राणा की सेना के आक्रमण करने पर वे लोग सालुम्बर को छोड़कर चले गये और देवगढ़ में जाकर आश्रय प्राप्त किया। मेवाड़ की सेना के आक्रमण करने पर चूंडावत लोग घबरा उठे। उन्होंने अपनी रक्षा का कोई उपाय न देखकर अम्बाजी के पास दूत भेजा और दस लाख रुपये देने के वादे पर सहायता के लिए उससे प्रार्थना की। अम्बाजी बहुत लोभी आदमी था। उसने चूंडावतों को सहायता देना स्वीकार कर लिया। उसने शिवदास और सतीदास को मन्त्री के पदों से हटाकर चूण्डावत लोगों के पक्ष का समर्थन किया। सलुम्बर सरदार को राणा के दरबार में फिर वही स्थान प्राप्त हुआ। श्रीजी मेहता को राज्य में मंत्री बनाया गया। चूँण्डावत लोगों ने अम्बाजी की सहायता प्राप्त करते ही शक्तावत लोगों के विरुद्ध अत्याचार आरम्भ किया और मौका पाते ही आक्रमण करके उन लोगों ने शक्तावत लोगों को पराजित किया। इसके साथ-साथ होता और सायमारी नामक शक्तावतों की जागीरों से दस लाख रुपये वसूल करके चूण्डावत लोगों ने अम्बाजी को दिये। माधव जी सिंधिया की इन्हीं दिनों में मृत्यु हो गयी। उसका भतीजा दौलतराव उसके सिंहासन पर बैठा । दौलतराव ने सिंहासन पर बैठने के बाद सिंधिया की विधवा पत्नियों के साथ अत्याचार करना आरम्भ किया। उसने शैनवी सरदारों को मरवा डाला। सिंधिया के लड़के के नाबालिग होने के कारण अम्बा जी को लाभ उठाने का बहुत मौका था। लेकिन कुछ लोगों ने सिंधिया की विधवा रानियों का पक्ष लिया और उन लोगों ने अम्बाजी के - 296
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