पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/२८८

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अध्याय-26 महाराणा भीमसिंह राणा हमीर की मृत्यु के बाद उसका छोटा भाई भीमसिंह आठ वर्ष की अवस्था में सम्वत् 1834 सन्1778 ईसवी में मेवाड़ के सिंहासन पर बैठा। चालीस वर्षों में जो चार राजकुमार इस राज्य के अधिकारी बने, भीम उनमें चौथा था। उसने मेवाड़ के सिंहासन पर बैठकर पचास वर्ष तक राज्य किया। इस अर्द्ध शताब्दी में जो अनर्थ और उत्पाद इस राज्य में पैदा हुए, उनके द्वारा इस राज्य की शेष शक्तियाँ भी छिन्न-भिन्न हो गयीं। भीमसिंह बाल्यावस्था में राज्य का अधिकारी हुआ था। वयस्क हो जाने के बाद भी बहुत समय तक उसको अपनी माता की अधीनता में रहना पड़ा । वह जन्म से ही अयोग्य और उत्साहहीन था। उसमें स्वयं समझने और विचार करने की शक्ति न थी। इसलिए दूसरे लोग आसानी से उसको अपने अधिकार में कर लेते थे। इन दिनों में विद्रोही रत्नसिंह का बहुत पतन हो चुका था और उसका जो कुछ प्रभाव वाकी रह गया था, उसमें कुछ शक्ति न थी। इसीलिए भट्ट ग्रंथों में आगे उसका कोई उल्लेख नहीं किया गया। मेवाड़ राज्य में चूंडावत और शक्तावत वंशों का पारस्परिक विरोध बहुत दिनों से चला आ रहा था। इस राज्य में ये दोनों वंश अत्यन्त प्रभावशाली थे। लेकिन अपनी-अपनी प्रधानता के लिए दोनों वंशों के सरदार एक दूसरे से वैमनस्य रखते थे। चूंडावत लोगों ने राणा पर प्रभाव डालकर अपनी प्रधानता कायम कर रखी थी। इन दिनों में राणा की निर्बलता के कारण दोनों वंशों के सरदारों का विरोध अधिक बढ़ गया था और सम्वत् 1840 सन् 1784 ईसवी में चूंडावत सरदार ने शक्तावत सरदारों के विरुद्ध आधिपत्य आरम्भ किये। राज्य में उनको प्रधानता मिली । उस प्रधानता का उन्होंने दुरूपयोग किया और शक्तावत वंश के लोगों को मिटाने की कोशिश की। कोरावाड का अर्जुनसिंह और आमेर का प्रताप सिंह सालुम्बर् सरदार का निकटवर्ती सम्बन्धी था।1 (संदर्भ) चूंडावत सालुम्बर सरदार ने अर्जुनसिंह और प्रतापसिंह के साथ शक्तावत सरदार मोहकम के भींडर दुर्ग को घेर लिया और उसके आस-पास तोपें लगवा दी। चन्दावत सरदार का यह आक्रमण अकस्मात हुआ। शक्तावत वंश की एक छोटी शाखा में संग्रामसिंह नाम का एक व्यक्ति हुआ, वह वीर और साहसी था। उसके द्वारा मेवाड़-राज्य में कई अच्छे कार्य हुए। भीडर दुर्ग के जगवत वंश में प्रतापसिंह का जन्म हुआ था। मराठों के साथ युद्ध करते हुए वह मारा गया । 1. 288