राणा के आदेश का पालन करना पड़ा। राज्य से जाने के समय उसने राणा से कहा था-"आपकी आज्ञा से मैं जा रहा हूँ लेकिन इसका फल आपको और आपके परिवार को अच्छा न मिलेगा।" राणा के मारे जाने के सम्बन्ध में कई प्रकार के अनुमान लगाये जाते हैं। यह भी कहा जाता है कि मेवाड़ की सीमा पर विलौना नाम का एक ग्राम है। बूंदी के राजा ने उस ग्राम पर अधिकार कर लिया था। यह घटना भी झगड़े का एक कारण बनी । इस प्रकार के अनुमानों में राणा के वध का सही कारण क्या है, यह ठीक से नहीं कहा जा सकता । परन्तु जो अनुमान लगाये जाते हैं, उन्हीं में से किसी के कारण राणा अरिसिंह की हत्या की गयी। राणा के मारे जाने पर उसके साथ के सभी सरदार उसका साथ छोड़कर चले गये। केवल उसकी एक छोटी रानी रह गयी। उसने चिता बनवाकर उसमें आग लगवाई और राणा का मृत शरीर गोद में लेकर वह भस्मीभूत हो गयी। राणा अरिसिंह के दो लड़के थे। बड़ा लड़का हमीर और उससे छोटा भीमसिंह था। सम्वत् 1828 सन् 1772 ईसवी में हमीर मेवाड़ के सिंहासन पर बैठा। गुहिलोत वंश में हमीर नाम का पहले भी एक शूरवीर पुरुष हो चुका था। लेकिन उन दिनों का आज न तो मेवाड़ था और न आज का यह हमीर, वह हमीर था। इन दिनों में मेवाड़ की अवस्था बहुत गिर चुकी थी। सिंहासन पर बैठने के समय हमीर की अवस्था बारह वर्ष की थी। इसलिए राज्य का प्रबंध राजमाता के हाथ में रहा। राणा अरिसिंह के दिनों में ही मेवाड़ का पूर्ण रूप से पतन हो चुका था। उसके मरने के वाद जो शक्तियाँ वाकी रह गयी थीं, वे छिन्न-भिन्न हो गयीं। इन दिनो में कोई भी प्रतापी पुरुष मेवाड़ में न था, मराठों के उत्पात अब तक वरावर चल रहे थे, राज्य के सिंहासन पर एक बालक था और उसकी छोटी अवस्था के कारण राज्य का शासन एक स्त्री के हाथ में था। इन सभी वातों के कारण मेवाड़ राज्य इन दिनों में अनाथ हो रहा था। एक महान शक्ति के अभाव में पतन के सभी द्वार खुल गये। चूंडावत और शक्तावत सरदारों का विरोध इस राज्य में बहुत दिनों से चला आ रहा था। राज्य के इन पतन के दिनों में भी वे अपनी-अपनी प्रधानता के लिए एक दूसरे का खून बहाने के लिए तैयार हो गये। राज्य के लिए इतनी ही वात दुर्भाग्य की न थी। जितनी भी समस्यायें थीं,वे सब एक साथ आकर मेवाड़ राज्य को मिटाने में लगी थीं । सालुम्बर सरदार का अपमान राणा अरिसिंह ने किया था । इसीलिए अपने उस अपमान का बदला लेने के लिए सालुम्वर सरदार ने अपनी कमर कसी और स्वर्गीय राणा अरिसिंह की विधवा रानी के विरुद्ध उसने अपना विद्रोह आरंभ किया। इस विद्रोह ने सभी प्रकार से मेवाड़ राज्य को मिट्टी में मिला दिया । राज्य की शक्तियाँ समाप्त हो गयीं और अनाथ अवस्था में मेवाड़ निवासियों के दिन व्यतीत होने लगे। अमरचन्द ने जिन सिंधी लोगों का वेतन मेवाड़ के खजाने के द्वारा अदा किया था उन्हीं सिंधी लोगों ने मेवाड राज्य को निर्बल पाकर उसकी राजधानी पर आक्रमण किया और अपने बाकी वेतन के अदा करने की माँग की। राजधानी की रक्षा का भार सालुम्बर सरदार के ऊपर था। सिंधी लोगों ने उस सरदार के साथ भयानक अत्याचार आरंभ किये ।सालुम्बर सरदार के वेतन न दे सकने पर सिंधी लोगों ने भयानक अत्याचार किये और जलते हुए लोहे पर विठाने एवम् उसको दंड देने की वे व्यवस्था करने लगे। ऐसे समय पर अमरचन्द अपराधी को दंड देने के लिए राजपूत लोहे की एक चद्दर को गरम करते थे और उसी पर बिठाकर वे लोग अपराधी को दंड देते थे। 1. 284
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