होलकर का अधिकार हो गया, राज्य के सरदारों के विद्रोह का मराठों ने अनुचित लाभ उठाया और होलकर ने सम्पूर्ण राज्य पर अधिकार कर लेने की चेष्टा की। मनुष्य के जीवन में किसी के उपकारों का प्रभाव अमिट होता है और मनुष्य अपनी कृतज्ञता के द्वारा सदा उसको स्वीकार करता रहता है। परन्तु राजनीति में उपकारों को भुला देना और कृतघ्न बन जाना आश्चर्यजनक नहीं होता । राजनीति में इस प्रकार के अपराध को पाप नहीं कहा जाता । आमेर के सिंहासन पर जिस माधवसिंह को विठाने के लिए मेवाड़ के राणा ने अपनी कोई शक्ति उठा न रखी थी, उसी माधवसिंह ने अपने मामा राणा के समस्त उपकारों को भुला कर मेवाड़ का श्रेष्ठ नगर-रामपुर का इलाका मल्हारराव होलकर को दे. दिया।1 मेवाड़ राज्य के साथ बाजीराव की जो संधि हुई थी, उसमें मेवाड़ के राणा ने कर देना स्वीकार किया था। उस कर को वसूल करने का कार्य होलकर को सौंपा गया था। होलकर ने निश्चित नियमों को तोड़कर कर वसूल करने का कार्य आरम्भ किया, जिससे वह संधि टूट गयी। संधि के विरुद्ध मराठों के व्यवहार करने से जो कर मेवाड़-राज्य को अदा करना चाहिये था, उसकी अदायगी न हुई। इसलिए मल्हारराव होलकर ने सेना लेकर मेवाड़ पर आक्रमण किया। इन दिनों में मेवाड़ के सरदारों का विद्रोह राणा के साथ चल रहा था। इसलिए राणा ने विवश होकर होलकर के साथ संधि कर ली और उस संधि के अनुसार इक्यावन लाख रुपये होलकर को दिये। इन दिनों में मेवाड़-राज्य की आर्थिक स्थिति बहुत निर्बल हो गयी थीं। ऐसे समय पर इस इक्यावन लाख की अदायगी राज्य के लिए भयानक हो उठी। इन्हीं दिनों में मेवाड़ राज्य में प्रकृति का प्रकोप आरंभ हुआ और भीषण दुर्भिक्ष के कारण राज्य में खाने पीने की समस्या अत्यंत भयानक हो उठी। इसके चार वर्षों के पश्चात् मेवाड़ राज्य में आपसी झगड़े आरम्भ हुए जिनसे राज्य की अवस्था और भी अधिक भयानक हो गयी। मेवाड़ के राणा अरिसिंह के विरुद्ध राज्य के सरदारों ने विद्रोह किया। विद्रोह का कारण क्या था, यह साफ-साफ समझ में नहीं आता। इसके सम्बन्ध में कई प्रकार के उल्लेख पाये जाते हैं। कुछ लोगों की धारणा है कि मराठों के आक्रमणों को न रोक सकने के कारण राणा सरदारों की आँखों में अयोग्य साबित हुआ । इसलिए वे राणा को सिंहासन से उतार देना चाहते थे और इसीलिए उन लोगों ने विद्रोह किया। कुछ अधिकारियों का कहना है कि सामन्तों की स्वार्थपरता के कारण यह विद्रोह उत्पन्न हुआ था। इसके सम्बन्ध में कहने वालों का अनुमान है कि राणा अरिसिंह ने अपने भतीजे राजसिंह को मारकर सिंहासन पर अधिकार किया था। कुछ लोगों का कहना यह है कि अरिसिंह राज्याधिकारी होने के पहले मेवाड़ राज्य का एक साधारण सामन्त था और राज्य की तरफ से उसको जो इलाका मिला था, उसकी आमदनी तीस हजार रुपये वार्षिक थी। उस समय कितने ही सामन्त उससे ऊँची श्रेणी के माने जाते थे। इस दशा में अरिसिंह के सिंहासन पर बैठने से और राज्याधिकारी हो जाने के बाद मेवाड़ के कई सामन्तों और सरदारों का उसके साथ ईर्ष्या भाव बढ़ गया था। इस प्रकार सामन्तों और सरदारों के विद्रोह के सम्बन्ध में विभिन्न प्रकार के मत पाये जाते हैं। इन मतों में सही क्या है, निश्चित रूप से यह नहीं लिखा जा सकता। सन् 1752 की यह घटना है । इस घटना के बाद रामपुर इलाके के कुछ गाँव मेवाड़ राज्य में रह गये थे रामपुर के झगड़े का उल्लेख पहले किया जा चुका है। बाजीराव के साथ जो संधि हुई थी, उसमें निश्चय हुआ था कि मेवाड़ पर आज के बाद मराठों के आक्रमण न होंगे। परन्तु मराठों ने स्वयं इस शर्त को भंग किया। 1. 1 2. 276
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