नादिरशाह की फौज के सिपाहियों के द्वारा जो नरसंहार हुआ था, उसका उल्लेख कई ग्रंथों में पाया जाता है। हाजिन नाम के एक मुसलमान ने सर्वनाश के इस दृश्य को तथा अपनी आखों देखी हुई घटनाओं को एक पुस्तक में लिखा है । उसमें उसने बताया है कि नादिरशाह के अत्याचार बहुत बढ़ जाने पर हिन्दुस्तान के लोगों ने उसके साथ मार-काट की थी और उसमें नादिरशाह के सात हजार ईरानी आदमी मारे गये थे। दूसरी पुस्तकों में यह संख्या कुछ और ही पायी जाती है । लेकिन उसमें हाजिन का ग्रंथ इसलिए प्रामाणिक माना जाता है कि उस संहार को उसने स्वयं देखा था। इस सर्वनाश के समय जब नादिरशाह बड़े बाजार की रकमुद्धीला नामक एक मस्जिद में बैठा हुआ था, मोहम्मदशाह ने वहाँ पहुँचकर अपनी आँखों के आँसुओं को पोंछते हुए नादिरशाह से प्रार्थना की कि 'मेरी रैयत की जाँ बख्शी करवाई जावे। नादिरनामा नाम के एक ऐतिहासिक ग्रंथ में लिखा है कि नादिरशाह के हुक्म से शहर में दिन-भर कत्लेआम होता रहा और उसमें वेशुमार आदमियों की जाने ली गयीं। एक ऐतिहासिक ग्रंथ में लिखा है कि नादिरशाह की फौज के द्वारा जो लोग मारे गये,ठनकी संख्या एक लाख पचास हजार से कम नहीं हो सकती। इस कत्लेआम के समय नादिरशाह के सिपाहियों ने अपने हाथों में तलवारें लिए हुए शहर के घरों में जाकर लूट-मार की थी। प्रत्येक मकान से रोने और चिल्लाने की आवाजें आ रही थीं। घर के आदमियों को तलवारों से काटकर जो सम्पत्ति मिलती थी, सिपाही उसको लूट लेते थे और घर के किसी आदमी को जिन्दा न छोड़ते थे। इस प्रकार का हाहाकर सम्पूर्ण शहर में एक साथ आरंभ हुआ। अत्याचार का यह दृश्य देखकर वसंतराय नामक मुगल राज्य के एक हाकिम ने जब अपने परिवार को बचाने का कोई उपाय न पाया तो उसने स्वयं अपने परिवार को मार डाला और अपनी भी हत्या कर ली। मलिकयार खाँ नामक एक प्रसिद्ध, मुसलमान ने तलवार से अपने प्राणों का अन्त किया। न जाने कितने परिवारों में शर्वत की तरह विप-पान किया गया और प्राणों की आहुतियाँ दी गयीं । राज्य का एक बहुत बड़ा हाकिम पकड़ा गया और एक प्रसिद्ध चौराहे पर खड़ा करके बहुत देर तक उसको कोड़े लगवाये गये। इस प्रकार के अत्याचारों की कोई सीमा न रही और वहाँ का कोई भी मनुष्य इस अत्याचार और संहार से अपने आपको बचा न सका। राज्य के कर्मचारियों, अधिकारियों और हाकिमों पर इतना अधिक अत्याचार हुआ था कि वे मरने से भी अधिक बुरी अवस्था में पहुँच गये थे। वादशाह के फर्राशखाने में आग लगा दी गयी, जिससे उसका एक करोड़ रुपये का कीमती सामान जल गया। इस प्रकार नादिरशाह के जुल्म और सितम से सारा शहर श्मशान बन गया था। इस विनाश के बाद वहाँ की हालत बहुत खराव हो गयी थी। खाने-पीने की चीजों का विल्कुल अभाव हो गया। लोगों के पास खाने के लिए जो अनाज था, वह आग में जल गया था। रुपये के दो सेर मोटे चावल खाने के लिए मिलते थे। उस नर-संहार के समय और उसके बाद शहर की सफाई न होने के कारण भयानक बीमारियाँ पैदा हुई और उन बीमारियों में बचे हुए लोग बुरी तरह से मरे । जो लोग भाग कर कहीं जा सकते थे, वे चले गये। फैली हुई बीमारियों में इतनी अधिक संख्या में लोग एक साथ बीमार पड़े कि उनकी देखभाल करने वाला कोई न था। यह अत्याचार, संहार और सर्वनाश राज्य में बहुत दूर तक हुआ था और सब मिलाकर पाँच लाख से अधिक आदमी नादिरशाह के आक्रमण के फलस्वरूप मारे गये और मरे। 272
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