बाद दिलीप का नाम है। इस प्रकार के नामों के सम्बंध में हिन्दुओं के सभी ग्रंथों का मत एक नहीं है। . इन वंशावलियों के सम्बंध में सही बातों की खोज करने के लिए मैंने कुछ वाकी नहीं रखा । हिन्दुओं के ग्रंथों के साथ-साथ, विदेशी लेखकों के ग्रंथों को भी मैंने भली प्रकार देखा है और छान-बीन के बाद जो सही मालूम हुई है, उसी को मैंने लिखने का प्रयास किया है। ऐसे स्थानों पर सबसे बड़ी कठिनाई यह पैदा हो जाती है कि हिन्दुओं के ग्रंथ स्वयं कहीं-कहीं पर एक दूसरे के प्रतिकूल हो जाते हैं । इस विषय में कोई भी ग्रंथ ऐसा नहीं है, जिसे प्रामाणिक माना जा सके और सही वंशावली प्राप्त की जा सके । इक्ष्वाकु की चौथी पीढ़ी के सम्बंध में बड़ा मतभेद है। मैंने विश्वस्त ग्रंथों के आधार पर उसकी चौथी पीढ़ी में अनपृथु का नाम लिखा है। लेकिन उनके स्थान पर दो नाम अनयास और पृथु के भी उल्लेख मिलते हैं। मैंने अपनी वंशावली में त्रिशंकु को तेईसवीं पीढ़ी में रखा है। परन्तु विलियम जोन्स ने छब्बीसवीं में उसको लिखा है। कुछ नाम ऐसे भी हैं, जिनको विभिन्न रूप में लिखा गया है। उनमें अक्षरों और मात्राओं की भूलें हो सकती हैं। राजवंशों के प्राचीन समय का निर्णय रामायण पुराणों और अन्य पुराने ग्रंथों के द्वारा ही किया गया है, जिससे किसी प्रकार की भूल न हो सके। सूर्यवंश का प्रसिद्ध राजा हुरिश्चन्द्र त्रिशंकु का बेटा था, जो अपने सत्य वचन के लिये इस देश में आज तक विख्यात है। अपने वंश का वह चौवीसवां राजा था और वह उस परशुराम का समकालीन था जिसने नर्मदा नदी के तौरवर्ती माहिष्मती के हैहय अर्थात् चंद्रवंशी राजा सहस्त्रार्जुन का वध किया था। परशुराम की कथा रामायण में लिखते हुए बताया गया है कि उसने क्षत्रियों का नाश किया था। सूर्यवंश का बत्तीसवां राजा सगर चंद्रवंशी सहस्त्रार्जुन की छठी पीढ़ी के तालजंघ का समकालीन था। परशुराम ने जव क्षत्रियों का विध्वंस किया था, उस समय सुहस्त्रार्जुन के पांच बेटे वच गये थे। भविष्य पुराण में उन पांचों बेटों के नाम लिखे गये हैं। सूर्यवंशी और चंद्रवंशी राजाओं के बीच लगातार युद्ध हुए थे, जिनके विवरण रामायण और पुराणों में मिलते हैं। सगर तालजंघ में होने वाली लड़ाई का वर्णन भविष्य पुराण में किया गया है। हस्तिनापुर के राजा हस्ती और अंगदिश, अंगवंश की प्रतिष्ठा करने वाले बुध के वंशज अंग का समाकालीन माना गया है । रामायण से प्रकट होता है कि सूर्यवंश का चालीसवां वंशज अयोध्या का राजा अम्बरीष कनौज की प्रतिष्ठा करने वाले राजा गाधी और अंगदेश 1 के राजा लोमपाद का समकालीन था। कृष्ण और युधिष्ठिर की समकालीनता महाभारत से सिद्ध है । उनके बाद द्वापर युग का अंत होता है और कलियुग का आरंभ होता है । सूर्यवंशी राम और चंद्रवंशी कृष्ण के बीच के समय का निर्णय करने के लिए हमें किसी ग्रंथ में कोई सामग्री नहीं मिली। कोष्टावंशी मथुरा का राजा कंस बुध से उनसठवां और उसका भांजा कृष्ण अट्ठावनवां वंशज था। पुरु के वंश में अजमीढ़ और देवीमीढ़ के वंश में शल्य, जरासंघ और युधिष्ठिर क्रमशः इक्यावन, त्रेपन और चौवन वंशज थे। महाभारत के युद्ध में लड़ने वाला अंगवंशी पृथुसेन बुध से तिरपनवां था। इस प्रकार बुध से लेकर कृष्ण और युधिष्ठिर तक पचपन पीढ़ियों का होना साबित होता है । उनमें प्रत्येक राजा के शासन का औसत वीस वर्ष रखने से यह समझ में आता है कि पचपन पीढ़ियों में उसके सभी राजाओं ने 1100 वर्ष शासन किया। यह समय यदि विक्रमादित्य तक सभी राजाओं के शासन काल में जोड़ दिया जाये, 1. अंगदेश तिब्बत के करीब है। उसके निवासी अपने को हुंगी कहते हैं। मालूम होता है कि चीनी ग्रंथों में वर्णन किये गये होंगनू हूण लोग थे और ये लोग चंद्रवंश से सम्बंध रखते थे। 27
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