अध्याय-24 महाराणा संग्राम सिंह द्वितीय और जगतसिंह सन् 1716 ईसवी में राणा अमरसिंह की मृत्यु हुई। उसने अपने जीवन में अंत तक मेवाड़ राज्य को उन्नत और सम्मानपूर्ण बनाने की चेष्टा की थी। उसके बाद संग्रामसिंह मेवाड़ राज्य के सिंहासन पर बैठा। लगभग इन दिनों में मुगल साम्राज्य का अंतिम बादशाह मोहम्मदशाह सिंहासन पर बैठा था। सन् 1716 से 1734 ईसवी तक - संग्रामसिंह के शासनकाल में विशाल मुगल साम्राज्य छिन्न-भिन्न हो गया। बादशाह फर्रुखसियर का थोड़े दिनों का शासन अपने अंतिम दिनों में चल रहा था। वह मुगल-सिंहासन पर था। परन्तु सैयद बन्धुओं के हाथों में वह कठपुतली हो रहा था। शासन में न तो उसका कुछ अधिकार था और न सम्मान था। उसने सैयद बन्धुओं के आधिपत्य को खत्म करने के लिए अनेक प्रयास किये थे, परन्तु किसी में उसको सफलता न मिली । उसने इनायत उल्ला को अपना मंत्री इसलिए मुकर्रर किया था कि उसकी सहायता से दोनों सैयद बन्धुओं का प्रभाव नष्ट हो जायगा परन्तु ऐसा न हुआ। इनायतउल्ला ने मन्त्री होने के पश्चात जजिया जैसे कर लगा कर हिन्दुओं के साथ जो असंगत और अन्यायपूर्ण व्यवहार किया, उससे बादशाह के साथ राजपूतों की जो सहानुभूति बाकी रह गयी थी, वह भी नष्ट हो गयी। जब बादशाह को अपने किसी प्रयत्न में सफलता न मिली तो उसने हैदराबाद राज्य की प्रतिष्ठा करने वाले निजामुल-मुल्क को अपनी सहायता के लिए बुलाया। इसके पहले निजामुल-मुल्क मुरादाबाद का सूबेदार था। वह शासन-सम्बन्धी कार्यों में बहुत चतुर था । इसीलिए बादशाह ने सैयद बन्धुओं से राहत प्राप्त करने के लिए उसको बुलाया और मालवा का राज्य उसे देने का वादा किया। सैयद बन्धुओं को निजामुल-मुल्क के बुलाये जाने की खबर मिल गयी। उन्होंने मराठों की दस हजार सेना लेकर बादशाह के विरुद्ध विद्रोह किया और फर्रुखसियर को सिंहासन से उतार दिया। उस समय आमेर और बूंदी के दो राजाओं के अतिरिक्त बादशाह का कोई सहायक न था। उस संकट के समय इन दोनों राजाओं ने बादशाह को जो परामर्श दिया, उस पर अमल करने की बादशाह की हिम्मत न पड़ी। इसलिए दोनों हिन्दू राजा उसको छोड़कर चले गये। बादशाह फर्रुखसियर बहुत कमजोर तबीयत का आदमी था। सैयद् बन्धुओं से घबरा कर वह जनानखाने में अपनी वेगमों के साथ रहने लगा। उस हालत में सैयद बन्धुओं ने बादशाह के पास संदेश भेजा कि “तुम राजपूतों का विश्वास छोड़ दो और हमारे सेनापति 265
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