कोई रास्ता न था। इसलिए उसने हिन्दू धर्म छोड़कर इस्लाम धर्म मंजूर कर लिया। उसके ऐसा करने से बादशाह औरंगजेब ने उसके पिता रावगोपाल के चलाये हुए मुकदमे को खारिज कर दिया। इसके साथ-साथ बादशाह ने रावगोपाल का राज्य भी उसके लड़के को दे दिया। रावगोपाल को इस अन्याय से बहुत कष्ट पहुँचा। उसने अपनी छोटी-सी सेना लेकर अपने लड़के पर आक्रमण किया। परन्तु उसके लड़के को बादशाह की मदद मिलने के कारण रावगोपाल को सफलता न मिली । उस दशा में रावगोपाल ने राणा अमरसिंह के पास जाकर आश्रय लिया। औरंगजेब ने जब सुना कि राणा अमरसिंह ने रावगोपाल को अपने यहाँ आश्रय दिया है तो वह अमरसिंह से बहुत अप्रसन्न हुआ और उसने उसको मुगल-राज्य का एक विद्रोही मान लिया । बादशाह औरंगजेब ने एक मुगल सेना देकर शाहजादा अजीम को राणा अमरसिंह के विरुद्ध मालवा भेज दिया। अमरसिंह को जब मालूम हुआ तो उसने अजीम के विरुद्ध युद्ध की तैयारी की और उसकी सहायता के लिए मालवा का राजा युद्ध-क्षेत्र में गया। अजीम उस समय नर्वदा नदी के दूसरी तरफ था। वहाँ पर महाराष्ट्र लोगों ने मुगल-साम्राज्य के विरुद्ध विद्रोह कर रखा था। उस बगावत को शांत करने के लिए औरंगजेब ने राजा जयसिंह को एक मुगल सेना के साथ अजीम की सहायता के लिए भेजा। उन दिनों में मुगलों का शासन डाँवाडोल हो रहा था। साम्राज्य में चारों तरफ मुगलों के विरुद्ध विद्रोह हो रहे थे और कितने ही छोटे-छोटे राजा मुगलों से स्वतंत्र होने के लिए कोशिश कर रहे थे। दक्षिण में औरंगजेब के विरुद्ध शिवाजी ने विद्रोह कर रखा था। साम्राज्य की इस निर्बल अवस्था में औरंगजेब के लड़कों और भतीजों ने उसके विरुद्ध बगावत की। इससे औरंगजेब की कठिनाईयाँ भयानक हो उठीं। वह घबराकर अपने नाम पर बसाये हुए औरंगाबाद नामक नगर में चला गया और वहाँ पर सन् 1707 ईसवी में उसकी मृत्यु हो गयी। उसके मरते ही उसके लड़कों और भतीजों में सिंहासन पर बैठने के लिए भयानक झगड़ा पैदा हुआ। मुगल साम्राज्य की इस बगावत में औरंगजेब के दूसरे पुत्र अजीम ने साम्राज्य का अधिकार अपने हाथों में लिया। यह देखकर उसके बड़े भाई शाहजादा मुअज्जम ने अपनी सेना लेकर अजीम पर आक्रमण किया। अजीम दतिया और कोटा के राजपूतों की सहायता लेकर मुअज्जम से लड़ने के लिए आगरा पहुँचा । मेवाड़, मारवाड़ और राजस्थान के सभी पश्चिमी राजा मुअज्जम के साथ लड़ने के लिए आये थे। जाजौ नामक स्थान पर दोनों सेनाओं का सामना हुआ। दतिया और कोटा के राजाओं और अपने लड़के बेदारबख्त के साथ अजीम मारा गया। उसके पश्चात् शाहजादा मुअज्जम शाहआलम बहादुरशाह के नाम से मुगल सिंहासन पर बैठा। मुअज्जम के कुछ स्वाभाविक गुणों ने राजपूतों को अपनी ओर आकर्षित किया था। वह हिन्दुओं के साथ पक्षपातहीन व्यवहार करता था । एक विशेषता यह भी थी कि उसका जन्म एक राजपूत स्त्री से हुआ था । शाहजहाँ के बाद मुगल सिंहासन पर यदि मुअज्जम बैठा होता तो राजस्थान के राजाओं के साथ मुगल-साम्राज्य की शत्रुता न बढ़ती और मुगलों का शासन बहुत जल्दी कमजोर न पड़ जाता । परन्तु शाहजहाँ के बाद औरंगजेब दिल्ली के सिंहासन पर बैठा और उसने अपने जीवनकाल में हिन्दुओं के साथ जिस प्रकार घृणित और पक्षपातपूर्ण व्यवहार किया, उसके फलस्वरूप मुगलों के साथ राजपूतों के जो सम्बन्ध सुदृढ़ और सहानुभूतिपूर्ण बहुत दिनों से चले आ रहे थे,वे ढीले पड़ गये और उत्तरोत्तर वे कमजोर पड़ते गये। 260
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