एक बहुत बड़ी झील का निर्माण पहाड़ पर करवाया। भट्ट ग्रन्थों में लिखा गया है कि उस समय इस देश में जितनी झीलें थीं, जयसिंह की बनवाई हुई यह झील उनमें सबसे बड़ी और दर्शनीय थी। इसका घेरा पन्द्रह कोस से अधिक है। इस झील से यहाँ की खेती को बहुत लाभ पहुँचा और कृषकों ने उसका लाभ उठा कर अपनी आर्थिक उन्नति की। इस झील के समीप राणा जयसिंह ने अपनी रानी कमला देवी के लिए एक प्रसिद्ध महल वनवाया था। राणा जयसिंह में एक बहुत बड़ी कमजोरी थी। उसमें विलासिता की भावना थी और उस विलासिता ने उसे स्त्री-परायण बना दिया था। उसकी इस आदत के कारण उसके सम्मान को भयानक रूप से आघात पहुँचा । जयसिंह की बहुत-सी रानियाँ थीं। उन रानियों में अमरसिंह की माँ सबसे बड़ी थी। इसलिए उससे पैदा हुआ लड़का अमरसिंह राणा जयसिंह का उत्तराधिकारी था। उसकी माता बूंदी राज्य के हाड़ा वंश में पैदा हुई थी। राणा जयसिंह अपनी रानियों में कमला देवी से अधिक प्रेम करता था। इन सब बातों के कारण राणा जयसिंह के परिवार में ईर्ष्या-भाव की वृद्धि हुई और उस ईर्ष्या ने राणा के परिवार में शत्रुता पैदा कर दी इसके फलस्वरूप राणा जयसिंह के गौरव को धक्का ही नहीं पहुँचा, वल्कि परिवार की इस बढ़ती हुई शत्रुता के कारण मेवाड़-राज्य की मर्यादा का विनाश आरम्भ हुआ। इस विनाश का कारण राजस्थान के राजाओं में प्रचलित बहु-विवाह की प्रथा थी। राणा जयसिंह ने अपने परिवार में बढ़ती हुई कलह की परवाह न की । वह अपनी रानी कमला देवी से इतना स्नेह करता था कि उसके बदले में वह अपने जीवन में सब कुछ छोड़ने के लिए तैयार था, यही हुआ भी। राणा अपने अन्तःकरण की अशान्ति को दबा न सका और अपनी सभी रानियों को छोड़कर अपनी छोटी रानी कमला देवी के साथ कहीं अन्यत्र जाने का विचार किया। उसने अपनी राजधानी का उत्तरदायित्व अमरसिंह को सौंपा और अमरसिंह को पांचौली नामक मन्त्री के संरक्षण में देकर अपनी रानी कमला देवी के साथ जयपुर का रास्ता लिया। वहाँ के एक नगर में पहुँचकर वह एकान्त जीवन व्यतीत करने लगा। परन्तु वहाँ पर भी वह अधिक समय रह न सका और अपने लड़के के उपद्रवों के कारण उसे अपने नगर में फिर लौट आना पड़ा। अमरसिंह और मन्त्री पांचौली में झगड़ा पैदा हुआ। अमरसिंह का व्यवहार राज्य के हित के लिए अच्छा न था। मन्त्री ने उसको रास्ते पर लाने की कोशिश की । परन्तु उसको सफलता न मिली । मन्त्री के साथ अमरसिंह के बढ़ते हुए विरोध को सुन कर और अनेक प्रकार की आशंकायें करके राणा जयसिंह को उदयपुर में लौटकर आ जाना पड़ा। राणा के उदयपुर से चले जाने के बाद अमरसिंह विलकुल स्वतन्त्र हो गया और बिना किसी अंकुश के मनमानी करने लग गया। उसकी इस अनुचित स्वतन्त्रता में उसकी माँ सहायक होती थी। राणा जयसिंह के उदयपुर लौट आने पर अमरसिंह ने अपनी माता से परामर्श किया और उसकी सलाह से वह अपने मामा हाड़ा राजा के पास बूंदी पहुँचा और वहाँ से दस हजार सैनिक सवारों की सेना लेकर वह उदयपुर आ गया। राणा जयसिंह का विध्वंसकारी विरोध आरम्भ हुआ। राणा जयसिंह से मेवाड़ राज्य के सरदार और सामन्त प्रसन्न न थे। वे सभी राणा को अत्यन्त विलासी और आलसी समझते थे। इसलिए उन लोगों ने राणा का साथ न दिया । जीवन की यह परिस्थिति राणा के लिए अत्यन्त संकटपूर्ण बन गयी । इसके फलस्वरूप राणा उदयपुर से निकल कर गडवाड़ राज्य चला गया और वहाँ के सामन्त राजा को उसने अमरसिंह के पास भेजा । उसने पिता और पुत्र की बढ़ती हुई शत्रुता को मिटाने की कोशिश की। परन्तु वह सफल न हुआ। उदयपुर के सरदारों की सहायता पाकर वह 258
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