अध्याय-23 महाराणा जयसिंह तथा दिल्ली में सैयद बन्धुओं का जाल राणा राजसिंह की मत्यु के पश्चात् उसका दूसरा लड़का जयसिंह सम्वत् 1737 सन् 1681 ईसवी में मेवाड़ के राज-सिंहासन पर बैठा । जयसिंह के जीवन की उस घटना का यहाँ पर उल्लेख करना आवश्यक मालूम होता है, जो राजस्थान के राजवंश में प्रचलित वहु-विवाह की प्रथा के प्रति संकेत करती है और उसके कारण होने वाले दुष्परिणाम को सव के सामने रखती है। जयसिंह के पैदा होने के कुछ दिन पहले राणा राजसिंह की दूसरी रानी से एक लड़का पैदा हुआ था, उसका नाम भीम था। राणा का प्रेम आरम्भ से ही जयसिंह के साथ अधिक था। दोनों लड़कों के बड़े हो जाने पर राणा को इस बात का ख्याल पैदा हुआ कि इन दोनों में आगे चल कर राज्याधिकार के लिए झगड़ा पैदा होगा। राणा के ऐसा सोचने का कारण यह था कि वह जयसिंह को अपना उत्तराधिकारी बनाना चाहता था। लेकिन अवस्था में वड़ा होने के कारण राज्य का अधिकारी भीम था। बहुत दिनों तक इसके सम्बन्ध में अनेक चिंताओं में रहकर एक दिन राणा राजसिंह ने अपने बड़े पुत्र भीम को बुलाकर और अपनी तलवार की तरफ संकेत करके कहाः “तुम इस तलवार को ले लो और उससे अपने छोटे भाई जयसिंह को मार डालो क्योंकि उसके जिन्दा रहने से राज्य में भयानक उत्पात होंगे।" भीम अपने पिता का आशय समझ गया। उसने नम्रता के साथ उत्तर देते हुए कहाः “पिताजी, आप विलकुल चिन्ता न करें। मैं आपके सिंहासन को स्पर्श करके कहता हूँ कि मैं आज से अपने राज्याधिकार को छोटे भाई जयसिंह को देता हूँ और आपके सामने शपथ पूर्वक कहता हूँ कि मैंने अपने अधिकार को आज से छोड़ दिया। इस समय के बाद मैं आपके राज्य में कहीं पर पानी पीऊं तो मैं आपका लड़का नहीं।” यह कह कर अपने नौकरों के साथ भीम उदयपुर से चला गया । गर्मी के दिन थे। उदयपुर से चल कर भीम ने अपने नौकरों और चाकरों के साथ देवारी के पहाड़ी मार्ग में प्रवेश किया और दोपहर की तेज धूप में कुछ देर विश्राम करने के उद्देश्य से एक घने वृक्ष की छाया में वह ठहरा । उस समय उसने घूम कर एक बार अपनी जननी जन्मभूमि उदयपुर की तरफ देखा। उसके बाद साथ के एक नौकर ने चाँदी के लोटे में सामने के झरने से ठन्डा पानी लाकर पीने को दिया। भीम ने उसे हाथ में लेकर पीना चाहा। लेकिन उसी समय उसे अपनी शपथ और प्रतिज्ञा का स्मरण हो आया। वह तुरन्त पानी को जमीन पर फेंककर चलने के लिए तैयार हो गया। वहाँ से चलकर भीम अपने 256
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