और उसके गोलंदाजों ने तोपों की मार आरम्भ कर दी। उससे थोड़े ही समय में बहुत से राजपूत मारे गये। लेकिन राजसिंह के उत्साह में किसी प्रकार की कमी न आयी। देवारी के संग्राम में बहुत समय तक भीषण मारकाट हुई । राजपूतों की तलवारों से मुगल सेना के गोलंदाजु मारे गये। इसी समय तेजी के साथ राजपूत सेना मुगलों के बीच में घुस गयी और उसके सैनिकों ने अपनी तलवारों से जो मारकाट को, उससे मुगल सेना पीछे हटने लगी और थोड़ी ही देर में औरंगजेब अपनी बची हुई सेना को लेकर वहाँ से भागा । उसकी तोपें और युद्ध का वहुत सा सामान जो मुगलों के शिविर में मौजूद था, राजपूतों ने पहुँचकर अपने अधिकार में कर लिया। वादशाह के बहुत से हाथी राजपूतों के कब्जे में आ गये। यह संग्राम सम्वत् 1737 सन् 1681 के मार्च महीने में हुआ था। इस युद्ध में राजसिंह की विजय हुई। युद्ध से भागने के बाद भी औरंगजेब का हृदय पराजित न हुआ । अपनी पराजय का बदला लेने के लिए अपनी सेना के साथ वह चित्तौड़ के निकट रुका और राणा पर आक्रमण करने के लिए कोई योजना बना रहा था, उस समय जयमल के वंशज श्यामलदास ने अपनी सेना के साथ वहाँ पहुँच कर आक्रमण किया। औरंगजेब उस समय घवरा गया और वह अपने लड़के अकवर और अजीम को युद्ध के लिए वहाँ छोड़कर अजमेर की तरफ चला गया और वहाँ से उसने अपने दोनों लड़कों की सहायता के लिए एक बड़ी सेना भेजी । अजमेर से औरंगजेब ने एक नयी सेना खाँ रोहेला नाम के सेनापति के साथ श्यामलदाल से युद्ध करने के लिए भेजी। श्यामलदास को जव मालूम हुआ तो वह अपनी सेना के साथ आगे बढ़ा और पुर मंडल नामक स्थान पर उसने शत्रु सेना पर आक्रमण किया। कुछ देर युद्ध करने के बाद मुगलों के साथ की सेना अजमेर की तरफ भाग गयी। राजकुमार भीम अपनी सेना के साथ अभी तक अपने स्थान पर मौजूद था। उसने गुर्जर राज्य पर आक्रमण किया और ईडर नामक नगर को वरबाद किया । हुसैन नामक वहाँ पर एक मुसलमान वादशाह था। उसे और उसकी सेना को भीम ने वहाँ से निकाल दिया। इसके बाद पट्टन नगर में पहुँचकर राजपूतों ने लूट-मार की और उसके बाद कई एक दूसरे स्थानों का विध्वंस किया। राणा राजसिंह की सेना में दयालदास नाम का एक अत्यन्त वहादुर आदमी था। मुगलों से लड़कर उसकी तबीयत अभी तक भरी न थी। सवारों की एक सेना लेकर वह रवाना हुआ और नर्मदा तथा वेडच नदी के किनारे तक फैले हुए मालवा राज्य पर आक्रमण क्रके उसको लूटा और उसके बाद सारंगपुर, देवास, सरोज, माण्डू, उज्जैन और चन्देरी नगरों को पराजित किया। दयालदासु ने इन नगरों की मुस्लिम सेना का सहार किया और कई स्थानों पर पहुंचकर लूट मार की । वहाँ के रहने वाले अपने घरों को छोड़ कर चले गये । राजपूतों ने उनके मकानों में आग लगा दी। दयालदास मुसलमानों से बहुत दिनों से चिढ़ा हुआ था और उसके द्वारा हिन्दुओं के जो नुकसान हुये थे,उनको वह भूला न था। आज उसने जी-भर मुसलमानों से वदला लिया। उसने मालवा राज्य को श्मशान के रूप में परिणत कर दिया। मालवा से चल कर अपनी सेना के साथ दयालदास राजकुमार जयसिंह के पास पहुँचा। उस समय बादशाह का लड़का अजीम अपनी फौज के साथ चित्तौड़ के करीव था। द्यालदास और जयसिंह ने अजीम पर आक्रमण किया। अजीम पराजित हो कर अपने कुछ सैनिकों के साथ रणथम्भौर भाग गया। राजपूतों ने उसका पीछा किया और उसके वहुत-से आदमियों का संहार किया। 253
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